BSP in Rajasthan: राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने फिर से एंट्री मार ली है. पिछले चुनाव में बसपा के 6 विधायकों ने जीत हासिल की थी. लेकिन रिजल्ट के बाद इन सभी को सीएम अशोक गहलोत ने अपने साथ कर लिया था. जिससे प्रदेश में बसपा का आधार समाप्त हो गया था. लेकिन अब 2023 के चुनाव में पार्टी फिर से अपने जनाधार वाले क्षेत्रों में प्रत्याशियों को उतार रही है. पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी में बहुजन समाज पार्टी लगातार अपने प्रत्याशी घोषित कर रही है. आज बसपा ने अपनी चौथी लिस्ट जारी करते हुए 2 और उम्मीदवार विधानसभा चुनाव के लिए घोषित किए. अब तक 12 उम्मीदवार बसपा घोषित कर चुकी है. राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी ने आज दो और उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं.
चौथी लिस्ट में दो उम्मीदवारों के नाम
बसपा की चौथी लिस्ट में दौसा जिले की बांदीकुई विधानसभा सीट से भवानी सिंह गुर्जर को उम्मीदवार बनवाया है. जबकि चूरू जिले की सादुलपुर सीट से मनोज न्यांगली को टिकट मिला है. भवानी सिंह गुर्जर जाति से आते हैं, जबकि मनोज न्यांगली राजपूत हैं. उम्मीदवार घोषित करते हुए जारी की गई सूची में जाति का उल्लेख खास तौर पर किया गया है. क्योंकि बसपा के लिए कास्ट इक्वेशन काफी महत्व रखता है. बसपा प्रदेशाध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष कुमारी मायावती के निर्देश पर ये उम्मीदवार घोषित किए हैं.
पायलट समर्थक विधायक खटाणा की मुश्किलें बढ़ाएंगे भवानी सिंह
बांदीकुई से सचिन पायलट के समर्थक कांग्रेस विधायक जीआर खटाणा हैं. बसपा से भवानी सिंह गुर्जर को उम्मीवार बनाए जाने से उनकी मुश्किलें बढ़ गई हैं. क्योंकि जाति आधारित वोट दोफाड़ हो सकता है. साथ ही दलितों के वोटों पर भी बसपा की नजर रहती है. दौसा में भी सचिन पायलट का अच्छा प्रभाव माना जाता है। सचिन पायलट ने पिछले दिनों यहां बड़ी सभा भी की थी.
मनोज राजपूत और दलित वोट बैंक के बूते पूर्व में भी बन चुके विधायक
सादुलपुर से मनोज कुमार न्यांगली को बसपा ने उम्मीदवार बनाकर राजपूत और दलित वोट बैंक साधने की कोशिश की है. सादुलपुर से कृष्णा पूनियां कांग्रेस विधायक हैं. जो जाट समाज से आती हैं। ऐसे में राजपूत और दलित वोटों का ध्रुवीकरण करने की कोशिश बसपा की जाट कैंडिडेट के सामने है। जातीय समीकरणों को देखते हुए ही बसपा ने ये उम्मीदवार घोषित किए हैं.
पिछली बार जीते सभी विधायक कांग्रेस में हुए थे शामिल
पिछली बार बसपा के टिकट पर जीतकर आए 6 विधायक- उदयपुरवाटी विधायक राजेंद्र गुढ़ा, नदबई विधायक जोगेंद्र सिंह अवाना, नगर विधायक वाजिब अली, करौली विधायक लाखन सिंह मीणा, तिजारा विधायक संदीप यादव और किशनगढ़ बास विधायक दीपचंद खैरिया कांग्रेस में शामिल हो गए थे. बसपा के पूरे विधायक दल के कांग्रेस में विलय से कांग्रेस विधायकों की संख्या 106 हो गई थी. इससे गहलोत सरकार बहुमत में आ गई. इससे पहले तक गहलोत सरकार को बसपा बाहर से समर्थन दे रही थी. पूर्व में 2009 में भी विधानसभा चुनाव के बाद बसपा के सभी 6 विधायक कांग्रेस में सीएम अशोक गहलोत ने शामिल कर लिए थे.
मायावती हुई थीं नाराज, कोर्ट और ईसी में मामला पेंडिंग
मायावती अपनी पार्टी के विधायकों के कांग्रेस में दल बदल के बाद दोनों बार इस घटनाक्रम से बुरी तरह नाराज हुई थीं. क्योंकि दोनों बार उन्हें अपने विधायकों और कांग्रेस से यह घटना धोखा लगी और उनका विधायक दल यानी हाथी सीएम गहलोत और कांग्रेस का साथी हो गया.
विधायक इस तरह बने हाथी मेरा साथी
बसपा में कांग्रेस में शामिल होने के दो साल बाद विधायक राजेंद्र गुढ़ा मंत्री बनाए गए थे. जबकि अन्य विधायकों को भी बोर्ड और अन्य पदों पर सीएम गहलोत ने सेटल किया. राजेंद्र गुढ़ा सैनिक कल्याण, होमगार्ड और नागरिक सुरक्षा विभाग के राज्यमंत्री बनाए गए थे, जो पद पिछले दिनों उनसे छीन लिया गया था.
दीपचंद खैरिया को किसान आयोग उपाध्यक्ष बनाया गया. वाजिब अली को राजस्थान राज्य खाद्य आयोग अध्यक्ष बनाया गया। जोगेंद्र सिंह अवाना को देवनारायण बोर्ड अध्यक्ष, संदीप यादव को राजस्थान सब रीजन (एनसीआर) इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट बोर्ड (आरएसआरआईडीबी) अध्यक्ष, विधायक लाखन सिंह मीणा डांग क्षेत्रीय विकास बोर्ड के अध्यक्ष बनाए गए थे.
राजेंद्र गुढ़ा अब थाम चुके शिवसेना का दामन
इनके क्षेत्र में विकास के काम भी खूब काम करवाए. लेकिन राजेंद्र गुढ़ा राज्य मंत्री बनाए जाने से नाराज ही रहे. वह सचिन पायलट के पाले में चले गए और विधानसभा के अंदर और बाहर लाल डायरी का मुद्दा उठा दिया और सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा दिए. जो उन्हीं के लिए गलफांस बन गए। पार्टी और सरकार के खिलाफ बोलने पर राजेंद्र गुढ़ा का मंत्री पद छीनकर उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद राजेंद्र गुढ़ा ने शिवसेना का दामन थाम लिया. उदयपुर वाटी में उनके समर्थकों ने शिवसेना पार्टी बड़ी संख्या में जॉइन कर ली। जिसका विधानसभा चुनाव में नुकसान हो सकता है.
राजेंद्र गुढ़ा इससे पूर्व में 2008 में भी बसपा से विधायक रहे थे. तब भी उन्होंने सीएम गहलोत का साथ देकर कांग्रेस का दामन थाम लिया था। इसके बाद 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गुढ़ा को उदयपुरवाटी से टिकट देकर चुनाव लड़ाया , तो गुढ़ा हार गए थे। इस कारण 2018 में कांग्रेस ने उनका टिकट काटा था, लेकिन बसपा से गुढ़ा टिकट पाकर जीत गए थे और फिर कांग्रेस में शामिल कर लिए गए थे.
पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी में ही अब तक उम्मीदवार क्यों उतारे?
पूर्वी राजस्थान और शेखावाटी में ही बसपा ने अब तक 12 उम्मीदवार 4 सूचियों में जारी किए हैं। यहां इसलिए क्योंकि पिछले चुनावों में यहां बसपा उम्मीदवारों ने चुनाव जीता है और कास्ट इक्वेशन बसपा के पक्ष में रहा है। इन्हीं क्षेत्रों में बसपा 6-6 सीटें जीतने में कामयाब रही है.
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