Rajasthan Politics: राजस्थान में 'वन स्टेट वन इलेक्शन' के मुद्दे पर छिड़ी सियासी जंग, कांग्रेस बोली- 'अगर बिल लाए तो पूरे नहीं कर पाएंगे 5 साल'

One State One Election: राजस्थान सरकार अगर विधानसभा में बिल लाकर एक्ट में बदलाव भी करती है, तब भी जिन निकायों और पंचायतों कार्यकाल बाक़ी होगा. उनको कैसे एडजस्ट किया जाएगा. यह एक बड़ी प्रैक्टिकल दिक़्क़त आने वाली है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

Rajasthan News: देश में वन नेशन वन इलेक्शन (One Nation One Election) के मुद्दे पर सालों से चर्चा हो रही है. लेकिन राजस्थान (Rajasthan) ऐसा पहला राज्य बनने जा रहा है, जहां वन स्टेट वन इलेक्शन चुनाव प्रणाली धरातल पर उतरेगी. राजस्थान की भाजपा सरकार ने बजट (Rajasthan Budget 2024) में ऐलान के बाद अब इस दिशा में गंभीरता से प्रयास में शुरू कर दिया है. राजस्थान का UDH विभाग इस नई प्रणाली के लिए बिल का मसौदा तैयार करने में जुटा है. माना जा रहा है कि वर्तमान बजट सत्र के बाद एक विशेष सत्र (Special Session) बुलाकर राजस्थान में ये बिल पारित करवाया जाएगा. हालांकि इस मुद्दे पर राजस्थान में सियासत अभी से तेज हो गई है. 

कांग्रेस की चुनौती, मंत्री का पलटवार

वन स्टेट वन इलेक्शन का मुद्दा जब राजस्थान विधानसभा में उठा तो कांग्रेस के पूर्व मंत्री और वरिष्ठ विधायक शांति धारीवाल ने राजस्थान सरकार को चैलेंज किया कि अगर संविधान के साथ कोई छेड़छाड़ हुई 5 साल भी पूरे नहीं कर पाओगे. वहीं नेता नेता प्रतिपक्ष की टीका राम जूली ने कहा है कि संविधान के अंदर प्रावधान है कि 5 साल का समय आपको पूरा करना पड़ेगा. 5 साल से अगर काम कार्यकाल होगा तो चुनाव कैसे संभव है. उधर, राजस्थान के UDH मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने भी साफ़ कर दिया है कि दुनिया की कोई भी ताक़त राजस्थान की भाजपा सरकार को ये बिल लाने से नहीं रोक सकती. सरकार के अन्य मंत्री भी मानते हैं कि इससे आर्थिक भार कम होगा और बार बार लगने वाली आचार संहिता की वजह से रुकने वाले विकास कार्यों से भी निजात मिलेगी.

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इतना भी आसान नहीं है एकसाथ चुनाव

बहरहाल, राजस्थान सरकार आगामी निकाय और पंचायत चुनाव में एक राज्य एक चुनाव का प्रावधान लागू करने की तैयारी कर रही है. हालांकि पंचायत और निकाय के चुनाव एक साथ करवाना इतना भी आसान नहीं है. राजस्थान सरकार अगर विधानसभा में बिल लाकर एक्ट में बदलाव भी करती है, तब भी जिन निकायों और पंचायतों कार्यकाल बाक़ी होगा. उनको कैसे एडजस्ट किया जाएगा. यह एक बड़ी प्रैक्टिकल दिक़्क़त आने वाली है. राजस्थान एक विशाल और विविधतापूर्ण प्रांत है. यहां 33 जिला परिषद, 352 पंचायत समिति और 252 निकाय हैं. ऐसे में राजस्थान में वन स्टेट, वन इलेक्शन का आइडिया आर्थिक मितव्ययता के हिसाब से सही लग सकता है, लेकिन लोकतंत्र के संघीय स्वरूप की दृष्टि से न तो उचित है और न ही व्यवहारिक है.

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'यह आइडिया व्यावहारिक नहीं लगता'

संवैधानिक व्यवस्था के जानकार मानते हैं कि भारत में अलग अलग चुनाव में अलग अलग मुद्दे होते हैं, जिसके आधार पर मतदाता अपनी राय तय करते हैं. अभी पंचायत के चुनाव दलीय आधार पर नहीं होते हैं, लेकिन अगर एक राज्य, एक चुनाव के कारण यह चुनाव विधानसभा के साथ हुए तो ग्राम पंचायतों की मूल भावना दलीय बहुमत या राजनीतिक दलों के प्रभाव में आ जाएगी. इसलिए यह आइडिया व्यावहारिक नहीं लगता है. लेकिन सरकार की अपनी दलील है और सियासी जानकारों की अपनी. मगर, एक सच ये भी है कि प्रथम दृष्टया एक स्टेट एक इलेक्शन का प्रारूप ठीक लगता है. लेकिन सच ये भी है कि एक चुनाव के खर्च से आर्थिक बोझ कैसे कम होगा? 1991 के निजीकरण के बाद सरकार पर बोझ वैसे ही बहुत कम हुआ है तो लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने के लिए इलेक्शन का बोझ तो उठाना ही होगा. इलेक्शन को अगर बोझ माना जाए तो बिना इलेक्शन वाली राजनीतिक व्यवस्था, प्रजातंत्र या एकाधिकार वाली व्यवस्था का भी हम समर्थन नहीं कर सकते हैं.

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