Jodhpur Agricultural Cafeteria: कैफेटेरिया का नाम आते ही जहन में होटल और रेस्टोरेंट की कल्पना आना स्वाभाविक है. लेकिन जोधपुर में कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन आने वाले केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान 'काजरी' के वैज्ञानिकों ने अनूठा नवाचार करते हुए विभिन्न प्रकार की फसलों का एक ऐसा अनूठा कैफेटेरिया विकसित किया है, जो 2 हेक्टेयर के क्षेत्र में तैयार किया गया. किसानों को उत्तम गुणवत्ता की फसलों को तैयार करने और फसलों की बुवाई से लेकर हार्वेस्टिंग तक की वैज्ञानिक जानकारी को उपलब्ध करवाने के साथ ही उन्हें आर्थिक नुकसान नहीं झेलना पड़े उस उद्देश्य से इस अनूठे कैफेटेरिया को डेवलप किया गया है. इसे संबंधित कृषि कैफेटेरिया के नाम से जाना जाता है.
फसलों की ग्रोथ से जुड़ी सभी
कृषि कैफेटेरिया में एक ही स्थान पर 80 से अधिक किस्म को न सिर्फ तैयार किया गया है, बल्कि खरीफ और रबी की फसलों के अनुरूप इसको विकसित भी किया गया है. यहां किसानों को वैज्ञानिकों के जरिए फसलों कि सभी प्रकार की जानकारी को भी उपलब्ध करवाया जाता है. साथ ही किसान को यहां पर फसलों से संबंधित वैरायटी की ग्रोथ इसकी पैदावार और उसमें लगने वाली डिजीज और खरपतवार संबंधी हर जानकारी को भी उपलब्ध करवाया जाता है.
हाल ही में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इस अनूठे कैफेटेरिया का निरीक्षण कर यहां के वैज्ञानिकों को भी इस नवाचार को लेकर सहना भी की थी. जहां वर्तमान में इस कैफेटेरिया में जीरा, राजगीर, क्युनोवा, चीया, इसबगोल, रायड़ा, सरसो सहित विभिन्न प्रकार की क्रॉप्स को तैयार किया गया है और किसानों को यहां नियमित रूप से वैज्ञानिकों के द्वारा प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है.
2 हेक्टेयर में विकसित किया गया कैफेटेरिया
कृषि वैज्ञानिक डॉ. हंसराज मेहला ने बताया कि 'हमने 2 हेक्टेयर में इस कैफेटेरिया को विकसित किया है. सभी का एक ही स्थान पर इंटीग्रेशन करना हमारा मुख्य उद्देश्य है. इसमें पशुओं के चारे से लेकर किसानों को हर प्रकार की कृषि संबंधित जानकारी उपलब्ध करवाना है. विशेष रूप से पश्चिमी राजस्थान कृषि के क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पशुधन आधारित अर्थव्यवस्था भी है.'
कृषि वैज्ञानिक डॉ. कुमावत ने बताया कि पश्चिम राजस्थान में पानी की बहुत किल्लत रहती है. हमने 2 हेक्टर के क्षेत्र में यह प्रयास किया है कि किसानों को प्रतिवर्ष कितना मुनाफा हो सकता है. इस उद्देश्य से यह एक अनूठा मॉडल हमने प्रस्तुत भी किया है. साथ ही यहां वैज्ञानिकों से चर्चा कर अपनी सुविधा के अनुरूप क्रॉप्स को अडॉप्ट कर कृषि और खेती भी कर सकते हैं. डॉ. कुमावत ने बताया कि पश्चिमी राजस्थान में अधिक पशुपालन भी होता है, इसलिए इसमें हमने कुछ भाग पशुधन के लिए भी रखा है.
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