Rajasthan water shortage: थार रेगिस्तान का प्रवेश द्वार (Gateway of Thar Desert) कहे जाने वाला जोधपुर और बात जब थार के रेगिस्तान की आती है तो जहन में सुखा, अकाल और पानी की किल्लत की परिकल्पनाएं आना भी स्वाभाविक है. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के समय में भी राजशाही शासन व्यवस्था के दौर में राजा-महाराजाओं की दूरदृष्टि सोच के साथ शहर में बनवाए गए प्राचीन जलाशय आज भी जोधपुर में जल संकट नहीं आने देते हैं.
सूर्यनगरी की इस भीषण गर्मी में जहां जलापूर्ति के लिए सरकारी सिस्टम भी असफल हो रहा है तो वही राजशाही शासन के दौर में बने परंपरागत कुएं-बेरिया व तालाब आज भी लोगों की प्यास बुझा रहे हैं. जोधपुर के अति प्राचीन मेहरानगढ़ किले के पास बसे भीतरी शहर में आज भी सैकड़ो वर्ष पुरानी 50 से अधिक ऐसे ऐतिहासिक कुएं-तालाब और बावडिया हैं, जिन्हें आज भी बेहतर तरीके से संरक्षित किया गया है.
सरकारी पानी सप्लाई का हाल
मेहरानगढ़ किले के पास शहर परकोटे में बने प्राचीन रानीसर और पदमसर तालाब से लेकर मात्र 2 किलोमीटर के दायरे में करीब 50 के करीब कुएं और बावड़िया हैं, जो आज भी जीवन रेखा का कार्य कर रही है. वहीं जहां सरकारी सिस्टम से सप्लाई होने वाला पानी नियमित रूप से सप्लाई न होकर एक दिन छोड़कर एक दिन सप्लाई होता है. इन प्राचीन जल स्रोतों के पानी का प्रतिदिन उपयोग शहर के बाशिंदे करते है.
राजशाही शासन में पानी की व्यवस्था
आम लोगों से बातचीत के दौरान 400 वर्ष पुराने 'जेता बेरा' को संरक्षित करने वाले 90 वर्षीय गोविंद सिंह ने बताया कि राजशाही शासन के समय राजा महाराजा अपनी प्रजा का विशेष ध्यान रखते थे. इसी आधार पर मेहरानगढ़ के पास ही 2 बड़े तालाब का निर्माण उसे दौर में करवाया गया था. जिसमें एक रानीसर तालाब और एक पदमसर तालाब है और इन तालाब के आसपास भी कुएं और बावड़िया भी बनी हुई है.
कई रूम से कारगर है ये प्राचीन जलाशय
इतिहास की बात करें तो राज शाही शासन के समय से ही अन्य कुएं के पानी की तुलना में इस जेता बेरे के पानी को अधिक गुणकारी माना गया था. वहीं कुछ दूरी पर ही एक अन्य प्राचीन कुआं जिसे 'नीमला कुआं' कहते हैं, उसका पानी चर्म रोग के निवारण के लिए भी उपयुक्त माना गया है. राजशाही शासन से लेकर आज के लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था के दौर में राजा-महाराजाओं और पुरखों के द्वारा बनाया गया यह प्राचीन जलाशय कई रूप में कारगर है.
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