जैसलमेर में 'इको सेंसेटिव जोन' नहीं बनाने पर राजस्थान हाई कोर्ट ने सरकार को दिया नोटिस

अभ्यारण घोषित किए जाने के बाद साल 1981 को लगभग 300 वर्ग किलोमीटर के इलाके को राष्ट्रीय मरू उद्यान घोषित किया गया था. जिसकी वजह यह थी कि इस इलाके में मौजूद गोडावण को संरक्षित किया जा सके. लेकिन गोडावण को बचाने की कोशिश पूरी तरह कामयाब नहीं सकीं.

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Jaisalmer News: राजस्थान उच्च न्यायालय जोधपुर ने 11 अगस्त 2023 को राष्ट्रीय मरु अभयारण्य के संरक्षण के लिए दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए नोटिस जारी कर राज्य सरकार, जैसलमेर कलेक्टर और DNP DFO से जवाब तलब किया है. वहीं अदालत ने अभी सरकार द्वारा लाये गए प्लान पर भी स्टे लगा दिया है. याचिका हेमसिंह राठौड़ ने दायर की थी. जिसमें वन्यजीवों को बचाने के लिए एक 'इको सेंसेटिव जोन' बनाये जाने की बात कही गई थी.

याचिकाकर्ता ने लगाया मिलीभगत का आरोप 

हेमसिंह राठौड़ ने याचिका में कहा कि पहले तो 'इको सेंसेटिव जोन' सरकार ने बनाया नहीं और उसके बाद जब उसका प्रस्ताव लाये तो ऐसा प्रस्ताव लाये जिसमें जिससे वन्य जीवों को कोई फायदा नहीं होगा. याचिका में कहा गया है कि यह सब अधिकारियों की मिलीभगत से हो रहा है. जिसमें पैसे वाले और राजनीतिक लोग शामिल हैं. 

कई मरुस्थलीय जीवों के जीवन की लड़ाई 

याचिका में कहा गया था कि राष्ट्रीय मरु अभयारण्य जैसलमेर भारत का एकमात्र उद्यान और अभयारण्य है. जिसमें मरुस्थलीय वन्य जीव, प्राणी और प्रजातियां पाई जाती हैं. भौगोलिक स्थिति के अनुसार कई तरह के कीड़े, उभयचर, सरीसृप, पक्षियों और जानवरों की सैकड़ों प्रजातियां है जोकि अब अब विलुप्त होने की कगार पर आ चुकी हैं. इनमें राज्य पक्षी गोडावण, गहरे पीले रंग का गरुड़, छाबेदार गरुड़, बाज शामिल है.

सुप्रीम कोर्ट भी कर चुका है बफर जोन बनाने की बात 

उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा वन्य जीव संरक्षण अधिनियम की सूची संख्या 1 में कई मरुस्थलीय वन्य जीवों को शामिल किया गया है जो आज विलुप्त होने के कगार पर हैं. इनमें राज्य पक्षी गोडावण भी शामिल है. जिसे संरक्षित किए जाने के लिए तुरंत प्रभाव से ज़रूरी कदम नहीं उठाए गए तो भविष्य में यह प्रजातियां विलुप्त हो जाएंगी 

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6 अगस्त 1980 में राज्य सरकार ने राष्ट्रीय मरू अभ्यारण के तहत करीब 5 हजार वर्ग किलोमीटर इलाके को शामिल किया था. जिसमें जैसलमेर और बाड़मेर के 73 गांव शामिल हैं. 

रज्य सरकार ने किया था ESZ बनाने का वादा 

अभ्यारण घोषित किए जाने के बाद साल 1981 को लगभग 300 वर्ग किलोमीटर के इलाके को राष्ट्रीय मरू उद्यान घोषित किया गया था. जिसकी वजह यह थी कि इस इलाके में मौजूद गोडावण को संरक्षित किया जा सके. लेकिन गोडावण को बचाने की कोशिश पूरी तरह कामयाब नहीं सकीं. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान के पास बफर जोन यानी 'इको सेंसेटिव जोन' बनाने की बात कही थी.

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WLII ने की थी 157 KM के बफर जोन बनाने जाने की बात 

वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने गत 10 सितंबर 2018 को विलुप्त होने की व की कगार पर पहुंचे वन्य जीवों का सर्वे कर प्रजनन् क्षेत्र, उड़ान क्षेत्र, प्रवास और भौगोलिक दशा को ध्यान में रखते हुए 157 किलोमीटर का इको सेंसेटिव जोन घोषित किए जाने का प्रस्ताव भेजा है. प्रस्तावित इको सेंसेटिव जोन का क्षेत्र सम, सलखा, कुछड़ी, हाबुर, मोकला, नाचना, लोहारकी से रामदेवरा की ओर फैला हुआ है. जिसमें पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज शामिल नहीं है.