पॉस्को दोषी को पैरोल देने को लेकर राजस्थान हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 'पीड़िता के गांव में नहीं जाएगा दोषी'

राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉस्को मामले में सजा काट रहे एक आरोपी को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं करते हुए पीड़िता के भावनात्मक पहलू को देखते हुए सशर्त पैरोल दी है.

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राजस्थान हाईकोईट ने पॉस्को दोषी के पैरोल पर लिया बड़ा फैसला.

Rajasthan High Court: राजस्थान हाईकोर्ट ने पॉक्सो के दोषी को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने गुरुवार (29 फरवरी) को एक आदेश दिया कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम, 2012 के तहत दोषी ठहराया गया व्यक्ति उसी शहर या गांव में पैरोल की अवधि नहीं गुजार सकता जहां पीड़िता रहती है. कोर्ट ने पॉस्को मामले में सजा काट रहे एक आरोपी को उसके वैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं करते हुए पीड़िता के भावनात्मक पहलू को देखते हुए सशर्त पैरोल दी है.

कोर्ट ने बताया फैसले का कारण

न्यायमूर्ति दिनेश मेहता और न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रकाश सोनी की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि ऐसे मामलों में जहां दोषी और पीड़ित एक ही शहर या गांव में रहते हैं, उनमें दोषी को पैरोल अवधि कहीं और गुजारनी होगी. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि दोषी और पीड़िता को आमने-सामने नहीं आना चाहिए क्योंकि इससे पीड़िता को अपनी आपबीती याद आएगी जिसे वह भूलना चाहती है.

बलात्कार के आरोपी को मिला पैरोल

तीन वर्षीय बच्ची से बलात्कार के दोषी सहीराम ने जिला स्तरीय पैरोल समिति, नागौर द्वारा उसके प्रथम पैरोल आवेदन को अस्वीकार किए जाने को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय का रुख किया था. वह अजमेर जेल में सज़ा काट रहा है. उसके वकील ने दलील दी कि समिति ने प्रथम पैरोल के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन को खारिज करके कानूनी त्रुटि की है और कहा कि अस्वीकृति के लिए लिया गया आधार प्रासंगिक नहीं है.

पीड़ित पक्ष ने किया विरोध

राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल जोशी ने प्रथम पैरोल का विरोध करते हुए कहा कि 3 साल की बच्ची से रेप के मामले में आरोपी सहीराम अजमेर जेल में सजा काट रहा है. पीड़िता का पक्ष रखते हुए आरोपी की पैरोल खारिज करने की मांग की थी. उन्होंने कहा, पैरोल जारी करने से आरोपी पीड़िता के सामने जाएगा और पीड़िता के सामाजिक व मनोवैज्ञानिक स्तर पर गलत प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि कैदी पीड़िता का पड़ोसी है.

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अदालत ने सहीराम को 50,000 रुपये के निजी मुचलके और पांच-पांच हजार रुपये की दो जमानत पर 20 दिनों के लिए प्रथम पैरोल पर रिहा करने का आदेश दिया और शर्त लगाई कि वह पीड़िता के गांव नहीं जाएगा, भले ही वहां उसका घर या परिवार क्यों न हो.

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