राजस्थान छात्रसंघ चुनाव: सरकार के जवाब पर याचिकाकर्ता की 10 आपत्ति, 22 अगस्त को हाईकोर्ट में अगली सुनवाई

छात्रसंघ चुनाव को लेकर हाईकोर्ट में सरकार के जवाब पर याचिकाकर्ता ने आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्य सरकार ने कुल गुरुओं की एक्सपर्ट कमेटी बनाकर जवाब पेश किया. लेकिन जब विश्वविद्यालय इस मामले में पक्षकार है तो कुलगुरु भी मामले के पक्षकार हुए. ऐसे में उन्हें विशेषज्ञ नहीं माना जा सकता.

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सरकार के जवाब पर याचिकाकर्ता की 10 आपत्ति

Rajasthan News: राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव बहाल करने के मामले में सोमवार को याचिकाकर्ता की ओर से रि-जॉइन्डर पेश किया गया है. याचिकाकर्ता जय राव की ओर से रि-जॉइन्डर पेश करते हुए सरकार के जवाब पर 10 आपत्तियां उठाई गई. अब हाईकोर्ट में 22 अगस्त को मामले की अगली सुनवाई होगी. जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता ने विश्विद्यालयों के कुलगुरुओं को एक्सपर्ट बनाने पर आपत्ति जताई है.

कुल गुरुओं को एक्सपर्ट बनाने पर आपत्ति

याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट शांतनु पारीक ने बताया कि राज्य सरकार ने कुल गुरुओं की एक्सपर्ट कमेटी बनाकर जवाब पेश किया. जवाब में कुलगुरुओं की राय को विशेषज्ञ सलाह मानकर छात्र संघ चुनाव न करने का फैसला लिया है, लेकिन जब विश्वविद्यालय इस मामले में पक्षकार है तो कुलगुरु भी मामले के पक्षकार हुए. ऐसे में उन्हें विशेषज्ञ नहीं माना जा सकता. ना ही कोर्ट ने कुल गुरुओं को विशेषज्ञ बनाने का आदेश दिया था. 

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याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि सरकार ने नई शिक्षा नीति का हवाला देकर चुनाव न करने का फैसला लिया है. इसमें हमने आपत्ति लगाई है कि नई शिक्षा नीति 2020 में लागू हुई थी. इसके बाद भी 2022 में छात्रसंघ चुनाव हुए थे तो अब ऐसा क्यों किया जा रहा है? साथ ही नई शिक्षा नीति के तहत 90 कक्षाओं को करवाने का हवाला दिया गया है, लेकिन अगर सत्र पिछड़ा तो इसमें प्रशासन की गलती है ना कि छात्रों की. 

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'छात्रों को अपना प्रतिनिधि चुनना मौलिक अधिकार'

इसके अलावा राज्य सरकार ने 1994 के सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का जिक्र करते हुए ऐसा कहा है कि छात्रसंघ चुनाव मौलिक अधिकार नहीं है, जबकि वह मामला छात्रसंघ चुनाव में नामांकन रद्द होने का था. याचिकाकर्ता की ओर से 2006 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के हवाले से बताया गया कि छात्रों का अपना प्रतिनिधि चुनना मौलिक अधिकार है. राज्य सरकार ने लिंगदोह समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि 6 से 8 सप्ताह के भीतर चुनाव कराए जाने चाहिए. वकील शांतनु पारीक ने कहा कि चुनाव समय पर नहीं हुए, क्योंकि प्रशासन ने पहले ही उसके लिए कोई मीटिंग नहीं की.

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