Rajasthan News: राजस्थान के झालावाड़ जिले में एक अनूठी परंपरा मनाई जाती है. यह परंपरा इतिहास से जुड़ी हुई है. यहां पर हर साल दो बार रावण दहन की प्राचीन परंपरा निभाई जाती है. यह परंपरा लगभग 182 वर्षों से चली आ रही है, जिसकी शुरुआत महाराजा मदन सिंह के शासनकाल में हुई मानी जाती है.
चैत्र नवरात्र की दशमी पर राड़ी के बालाजी मंदिर परिसर में इस अनोखी परंपरा को देखा जा सकता है. इसे महावीर सेवा दल द्वारा आयोजित किया जाता है, जहां पहले 9 दिनों तक रामकथा, भजन, कवि सम्मेलन और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इसके बाद दशमी के दिन राम बारात के साथ रावण दहन किया जाता है.
मुस्लिम परिवार निभा रहे परंपरा
इस आयोजन की खास बात यह है कि रावण का पुतला बनाने का कार्य पिछले 60-70 वर्षों से मुस्लिम कारीगरों द्वारा किया जा रहा है. बारां जिले के छीपाबड़ौद कस्बे का एक परिवार इस परंपरा को लगातार निभा रहा है. पहले मुन्ना मंसूरी यह कार्य करते थे, अब उनके वंशज इसे आगे बढ़ा रहे हैं. महावीर सेवा दल के सदस्य इसे कौमी एकता की मिसाल मानते हैं.
भव्य आयोजन और जनसमूह
इस वर्ष, चैत्र नवरात्रों की विजयदशमी पर झालावाड़ में 35 फीट लंबे रावण के पुतले का भव्य दहन किया गया. कार्यक्रम में हजारों लोगों ने भाग लिया. जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ और अन्य प्रशासनिक अधिकारी भी इस आयोजन में मौजूद रहे. रावण दहन से पहले भव्य आतिशबाजी हुई, जिसने लोगों को आकर्षित किया.
परंपरा का महत्व
झालावाड़ में दो बार रावण दहन की परंपरा न केवल धार्मिक आस्था को दर्शाती है, बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक विविधता की भी मिसाल पेश करती है. यह आयोजन हर साल हजारों लोगों को जोड़ता है और क्षेत्र की अनूठी पहचान को बनाए रखता है. आयोजन समिति के अध्यक्ष संजय जैन ने इसे निरंतर निर्वाह करने का संकल्प जताया.
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