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Rajasthan: बेटी से जुदाई के चंद घंटों बाद ही थम गई रणथंभौर की रानी एरोहेड की सांसें, जानें कैसे तीन पीढ़ियों से यहां चल रहा बाघिन का राज

Ranthambore National Park: रणथंभौर की सबसे मशहूर और ताकतवर बाघिन एरोहेड (टी-84) ने 19 जून को अंतिम सांस ली.बाघिनों का यह वंश दशकों से इस पार्क पर राज कर रहा था, तो आइए जानें कि वन्यजीव प्रेमी एरोहेड के जाने को एक सदी का अंत क्यों मानते हैं.

Rajasthan: बेटी से जुदाई के चंद घंटों बाद ही थम गई रणथंभौर की रानी एरोहेड की सांसें, जानें कैसे तीन पीढ़ियों से यहां चल रहा बाघिन का राज
रणथंभौर की रानी बाघिन एरोहेड

Ranthambore Queen Arrowhead: सवाई माधोपुर का रणथंभौर नेशनल पार्क जहां 70 बाघ-बाघिन एक साथ रहते हैं, जिनमें से पार्क की सबसे मशहूर और ताकतवर बाघिनों में से एक एरोहेड (T-84) जो एक सदी से राज कर रही थी, उसने 19 जून को आखिरी सांस ली. उसकी मौत पर ऐसा लगा जैसे रणथंभौर की धड़कनें थम गई हों. हर किसी की आंखों से आंसू बह रहे थे. सोशल मीडिया पर सामने आई बाघिन एरोहेड की अंतिम विदाई की तस्वीरें अंदर से रुला रही थीं. वह चार साल तक बोन कैंसर से जूझती रही, लेकिन रानी की तरह जीती रही. उसके जाने से ऐसा लगा जैसे रणथंभौर में एक सदी खत्म हो गई.

लेडी ऑफ द लेक मछली

लेडी ऑफ द लेक मछली
Photo Credit: website

बाघिन मछली की पोती थी एरोहेड

एरोहेड का असली नाम T-84 था, लेकिन उसके माथे पर तीर के आकार के निशान बने होने के कारण उसे 'एरोहेड' नाम मिला.  वह मशहूर बाघिन मछली (Machali) की पोती थी, जिसे 'लेडी ऑफ द लेक' और 'मगरमच्छों को मारने वाली' के नाम से भी जाना जाता था. मछली रणथंभौर की सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाली और सबसे ज्यादा फोटो खिंचवाने वाली बाघिनों में से एक थी, जिसने रणथंभौर को विश्व मानचित्र पर लाने में अहम भूमिका निभाई थी. एरोहेड की दादी को भारत सरकार नेलाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड से भी सम्मानित किया था. 

दादी और मां दोनों की शिकारी प्रवृत्ति

दादी और मां दोनों की शिकारी प्रवृत्ति
Photo Credit: website

मां और दादी जैसा ही शान से रही

 एरोहेड की मां टी-19, जिसे कृष्णा (Krishna) या लेडी कृष्णा के नाम से भी जाना जाता था, वह भी रणथंभौर की एक प्रमुख बाघिन थी. 26 साल उसने रणथंभौर के जंगलों में राज किया. जबकि एक बाघिन बाघ की औसत आयु 25 साल तक ही बताई जाती है. एरोहेड ने अपनी दादी और मां दोनों की शिकारी प्रवृत्ति और राजसी अंदाज को विरासत में पाया था. वह रणथंभौर के ज़ोन 3, 4 और 5 में अपना वर्चस्व रखती थी और अक्सर पर्यटकों को दिखाई देती थी. यह अधिकार उसने कमाया था क्योंकि वह बाघिन मछली की पोती थी, जिसे खुद अपनी टेरिटरी बनाई थी. 

एरोहेड का जीवन और संघर्ष

बचपन से ही मां और दादी के गुण आने के कारण एरोहेड ने रणथंभौर के जोन 3, 4 और 5 में अपना प्रभुत्व बड़ी ही शान से स्थापित किया था. उसने कई शावकों को जन्म दिया और उन्हें सफलतापूर्वक पाला, जिससे रणथंभौर में बाघों की आबादी बढ़ाने में उसका महत्वपूर्ण योगदान रहा. वन्यजीव फोटोग्राफरों और प्रेमियों के बीच वह काफी लोकप्रिय थी, और उसकी तस्वीरें अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होती रहती थीं.

बेटी रिद्धि के साथ अक्सर टेरिटरी वॉर के लिए होती थी भिड़ंत

हाल ही में, एरोहेड और उसकी बेटी रिद्धि (Riddhi) के बीच इलाके को लेकर संघर्ष चल रहा था. वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, यह स्वाभाविक है कि युवा बाघिनें बड़ी होने पर अपने लिए नए क्षेत्र की तलाश करती हैं, और अक्सर अपनी मां के साथ संघर्ष करती हैं. बताया जा रहा है कि जिस दिन  बेटी रिद्धि को रणथंभौर से ट्रैंकुलाइज कर अलवर के मुकुंदरा लाया उसके ही दो घेंटे बाद एरोहेड ने आखिरी सांस ली. लेकिन फिर भी  रणथंभौर के जंगलों में इस बाघिन का परिवार तीन पीढ़ियों तक राज रहा है.

तीन पीढ़ियों का 'बाघिन राज'

रणथंभौर में, बाघिनों की यह वंशावली दशकों से इस पार्क पर राज कर रही थी:

बाघिन मछली( दाएं) एरोहेड( बीच में) बाघिन कृष्णा (बाएं)

बाघिन मछली( दाएं) एरोहेड( बीच में) बाघिन कृष्णा (बाएं)
Photo Credit: website

  •   मछली (T-16): रणथंभौर की सबसे प्रतिष्ठित बाघिन, जो 20 से अधिक वर्षों तक जीवित रही, रणथंभौर के 350 वर्ग मील के क्षेत्र की एकमात्र मालिक थी, जो पार्क का सबसे बड़ा और सबसे सुंदर क्षेत्र है। उसकी दो मादा शावकों को सरिस्का टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित कर दिया गया ताकि उसे बड़ी बिल्लियों से फिर से आबाद किया जा सके। उसके कई शावक हुए, जिससे रणथंभौर और आसपास के इलाकों में बाघों की आबादी बढ़ गई।
  •   कृष्णा (T-19):.बाघिन कृष्णा उर्फ ​​टी-19 रणथम्भौर की प्रसिद्ध बाघिन मछली उर्फ ​​टी-16 की बेटी है तथा कृष्णा की बेटी एरोहेड उर्फ ​​टी 84 है तथा एरोहेड की बेटियां रिद्धि उर्फ ​​टी-124 और सिद्धि उर्फ ​​टी-125 हैं।
  •   एरोहेड (T-84): कृष्णा की बेटी और इस शाही वंश की नवीनतम सदस्य. उसने भी अपनी विरासत को आगे बढ़ाया और रणथंभौर के पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
  • एरोहेड का निधन रणथंभौर के लिए एक बड़ी क्षति है. हालांकि, उसकी बेटी रिद्धि और अन्य शावक इस विरासत को आगे बढ़ाएंगे, जिससे रणथंभौर में बाघों का यह 'राज' आने वाली पीढ़ियों तक जारी रहेगा. एरोहेड की स्मृति रणथंभौर के वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के इतिहास में हमेशा जीवित रहेगी.
मगरमच्छ का शिकार करते हुए एरोहेड

मगरमच्छ का शिकार करते हुए एरोहेड
Photo Credit: Instagram

मौत से ठीक पहले का हैरतअंगेज़ शिकार

एरोहेड के निधन को लेकर जो बात सबसे ज़्यादा हैरत में डाल रही है, वह यह कि उसकी मौत से ठीक एक दिन पहले उसने अपनी अविश्वसनीय शक्ति और शिकारी कौशल का प्रदर्शन करते हुए एक विशाल मगरमच्छ का शिकार किया था. प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, एरोहेड ने मगरमच्छ को अपने जबड़ों में जकड़कर पानी से बाहर घसीट लिया था. यह घटना उसकी शारीरिक क्षमता और शिकार पर उसकी मज़बूत पकड़ का प्रमाण थी.आमतौर पर बाघ ऐसे बड़े मगरमच्छों का शिकार बहुत कम करते हैं, जो एरोहेड की असाधारण ताकत को दिखाता है.

रणथंभौर के जंगल में  छाया खालीपन का पहरा

एरोहेड सिर्फ एक बाघिन नहीं थी, वह रणथंभौर के जंगल का अभिन्न हिस्सा थी,  उसने हमेशा अपनी दादी और मां की विरासत को जिंदा रखा. वह भले ही चार साल तक बोन कैंसर से जूझती रही, लेकिन अपने आखिरी दौर में उसने मगरमच्छ का शिकार कर यह साबित कर दिया कि क्यों उसे बाघिन मछली की उत्तराधिकारी माना जाता है. शिकार के बाद उसकी चाल में जरा भी लड़खड़ाहट नहीं थी, क्योंकि उसके खून में मां कृष्णा और दादी मछली का खून था. वह आधी मरी हुई थी, लेकिन गरिमा के साथ मरी. उसकी चाल के आखिरी दौर ने हमें यह एहसास कराया कि उसका आखिरी दिन था, उसके पास चंद पल बचे थे, लेकिन उसकी आंखों में मौत का कोई डर नहीं था. उसके जाने से रणथंभौर के जंगल में एक खालीपन जरूर आ गया.

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