
Pratapgarh News: प्रतापगढ़ जिले के धरियावद क्षेत्र के आक्याखेड़ा राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में पिछले 10 सालों से एक बंद पड़े कमरे में सैकड़ों आदिवासी स्कूली बालिकाओं के लिए आई सहायता सामग्री खराब हो रही है. NDTV के संवाददाता जब विद्यालय पहुंचे और कार्यवाहक प्रधानाचार्य गजराज सिंह राठौड़ से इस बंद कमरे के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि 2016 से इसमें बालिकाओं के लिए आए जूते रखे हुए हैं, जो आज तक वितरित नहीं किए गए.
जब तत्कालीन प्रधानाचार्य कुरचंद लबाना से फोन पर संपर्क किया गया, तो उन्होंने बताया कि 2016 में कुछ बच्चियों को जूते वितरित किए गए थे, लेकिन अन्य विद्यालयों में बची हुई सामग्री भेजने से पहले ही 2017 में उनका तबादला हो गया और बाद में वे रिटायर हो गए.
जरूरतमंद बच्चों तक नहीं पहुंच पाई सामग्री
जब संवाददाता ने इस मामले पर धरियावद ब्लॉक शिक्षा अधिकारी वीरेंद्र सिंह शक्तावत से बात की, तो उन्होंने कहा कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं थी और यह मामला पहली बार उनके संज्ञान में आया है. उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द ही स्कूली छात्राओं को यह सामग्री वितरित की जाएगी. लेकिन बड़ा सवाल यह उठता है कि ऐसे कितने और सरकारी विद्यालय होंगे, जहां NGO द्वारा भेजी गई सहायता सामग्री सालों से धूल खा रही होगी और जरूरतमंद बच्चों तक नहीं पहुंच पा रही होगी.
'नन्ही कली योजना' के तहत NGO ने दिए थे स्कूल किट
'नन्ही कली योजना' एक गैर-सरकारी संस्था की पहल है, जो भारत में वंचित लड़कियों की शिक्षा के लिए कार्यरत है. इस योजना की स्थापना आनंद महिंद्रा ने 1996 में की थी, जिसका उद्देश्य लड़कियों को स्कूली शिक्षा पूरी करने में मदद करना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है. इस योजना के तहत, कक्षा 1 से 10 तक की सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को हर साल एक सहायता सामग्री किट दी जाती है.
इसके अतिरिक्त, इस योजना के अंतर्गत किशोर लड़कियों को जीवन कौशल और डिजिटल शिक्षा का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. कोविड-19 के दौरान भी इस योजना ने डिजिटल शिक्षा के माध्यम से लड़कियों की सहायता की थी. 'नन्ही कली योजना' समुदाय के सहयोग से लड़कियों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए काम करती है, ताकि वे आत्मविश्वासी और सशक्त युवा महिलाओं के रूप में विकसित हो सकें.
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