चित्तौड़गढ़ के मंडफिया में स्थित श्रीसांवलियाजी सेठ मंदिर में लगे सुरक्षा गार्डों ने रविवार को श्रद्धालुओं के साथ मारपीट और अभद्रता की. नीमच जिले के कुकड़ेश्वर निवासी प्रियांशु मालवीय अपने साथियों के साथ दर्शन कर मंदिर परिसर से बाहर निकल रहे थे. कॉरिडोर में लगी जाली से बाहर हाथ निकालकर मंदिर का फोटो लेने के प्रयास पर एक सिक्योरिटी गार्ड ने गाली-गलौज शुरू कर दी. जब श्रद्धालु ने आपत्ति जताई तो गार्ड ने उसे धमकाना शुरू कर दिया.
सीसीटीवी कैमरे से दूर ले जाकर पीटा
स्थिति उस समय और बिगड़ गई जब श्रद्धालु ने घटना का वीडियो बनाना शुरू किया. आरोप है कि इसके बाद गार्ड ने अपने अन्य साथियों को बुला लिया और प्रियांशु को जबरन पकड़कर घसीटते हुए कैमरों से दूर एक स्थान पर ले गया. 4-5 सुरक्षा गार्डों ने उसकी बेरहमी से पिटाई कर दी, जिससे उसकी नाक और पैर से खून बहने लगा. मना करने और रहम की गुहार लगाने के बावजूद मारपीट की.
फर्श पर फैला खून तो उसी के रूमाल से कराया साफ
जब घायल श्रद्धालु की नाक से खून फर्श पर फैल गया, तो सुरक्षा गार्डों ने उसी के रूमाल से खून साफ करवाया. इसके बाद मोबाइल फोन में मौजूद फोटो और वीडियो जबरन डिलीट कराए गए. फिर एंबुलेंस बुलाकर उसे उपचार के लिए भेज दिया. घटना के दौरान मंदिर कार्यालय के बाहर काफी देर तक हंगामा होता रहा, लेकिन किसी भी जिम्मेदार अधिकारी ने मौके पर पहुंचकर स्थिति संभालने की कोशिश नहीं की.
श्रद्धालु पर समझौते का बना रहे थे दबाव
जब वह मंदिर कार्यालय पहुंचा तो आरोपित सुरक्षा गार्ड को अंदर छिपा दिया गया, और बाहर नहीं आने दिया गया. श्रद्धालु पर कार्यालय के अंदर बैठकर समझौते की बात करने का दबाव बनाया गया, जिससे साफ है कि मामले को दबाने की कोशिश की जा रही थी.
मंडपिया थाना पुलिस मौके पर पहुंची. मामले को शांत कराया. श्रद्धालु ने आरोप लगाया कि इस संबंध पुलिस को तहरीर दी, लेकिन पुलिस ने शिकायत लेने मना कर दिया. पुलिस का पक्ष जानने के लिए संपर्क करने के लिए फोन किया, लेकिन जवाब नहीं आया.
पहले भी हो चुकी है मारपीट
यह कोई पहली घटना नहीं है. इससे पहले भी श्री सांवलियाजी मंदिर में श्रद्धालुओं के साथ मारपीट के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुके हैं, जिनमें सुरक्षा गार्ड सरेआम लाठियों से श्रद्धालुओं को पीटते दिखाई दिए थे. तब भी मंदिर प्रशासन ने कठोर कार्रवाई करने के बजाय मामले को रफा-दफा कर दिया. लगातार हो रही ऐसी घटनाओं से यह स्पष्ट होता जा रहा है कि राजनीतिक दबाव और प्रशासनिक उदासीनता के चलते दोषियों के हौसले बुलंद हैं.
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