Rajasthan News: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सोमवार को जयपुर टाउन हॉल विवाद (Jaipur Town Hall Controversy) पर नोटिस जारी किया है, लेकिन राजस्थान हाई कोर्ट (Rajasthan High Court) के फैसले पर कोई स्थगन आदेश या यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश देने से इनकार कर दिया है.
क्या है पूरा मामला?
यह मामला पिछली अशोक गहलोत सरकार में पुरानी विधानसभा को हेरिटेज म्यूजियम में बदलने के निर्णय से संबंधित है. राजमाता पद्मिनी देवी और अन्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने तर्क दिया है कि पुरानी विधानसभा भवन का इस्तेमाल केवल आधिकारिक कार्यों के लिए किया जा सकता है, और इसका व्यावसायिक या हेरिटेज टूरिज्म के लिए उपयोग करना 1949 के करार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा, 'यह एक महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न है, जिसे हम तय करेंगे.' हालांकि उन्होंने 17 अप्रैल 2025 के हाई कोर्ट के आदेश पर रोक लगाने या स्थिति यथावत रखने की याचिका को स्वीकार नहीं किया.
राज्य सरकार की दलील
राजस्थान सरकार का पक्ष रखते हुए अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने दलील दी कि स्थगन याचिका पर सुनवाई राज्य के तरफ से जवाब प्रस्तुत किए जाने के बाद ही होनी चाहिए, और यह भी आश्वासन दिया कि राज्य सरकार इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में लंबितता का सम्मान करेगी.
1949 में हुआ था कॉन्ट्रैक्ट
याचिकाकर्ताओं का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने तर्क दिया कि यह विवाद केवल निजी संपत्ति के स्वामित्व और सिविल अधिकारों से जुड़ा है, जिसे 1949 में किए गए एक करार के तहत केवल आधिकारिक कार्यों के लिए राज्य को सौंपा गया था. उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि अब विधानसभा अन्य भवन में स्थानांतरित हो चुकी है, राज्य द्वारा संपत्ति का किसी अन्य उद्देश्य, विशेष रूप से व्यावसायिक या हेरिटेज टूरिज़्म के लिए उपयोग, उक्त करार की स्पष्ट शर्तों का उल्लंघन है.
'हाई कोर्ट का फैसला सही'
इस पर पलटवार करते हुए एएजी शर्मा ने कहा कि यह विवाद पूर्व-संविधानकालीन करारों से संबंधित है, जिन पर अनुच्छेद 363 के तहत अदालत का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है. इसीलिए हाई कोर्ट द्वारा शासक परिवार की याचिकाओं को खारिज करना पूर्णतः उचित था.
कॉन्ट्रैक्ट में क्या लिखा था?
इस विवाद की पृष्ठभूमि 1949 में महाराजा सवाई मानसिंह द्वितीय और भारत सरकार के बीच किए गए करार से जुड़ी है, जिसके अंतर्गत कुछ संपत्तियां व्यक्तिगत रूप में शासक के पास बनी रहीं और अन्य को केवल सरकारी उपयोग के लिए राज्य को सौंपा गया था. टाउन हॉल भी ऐसी ही एक संपत्ति थी, जिसे राजस्थान विधानसभा के रूप में उपयोग में लाया गया. 2022 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा इस इमारत को “वर्ल्ड क्लास राजस्थान हेरिटेज म्यूजियम” में बदलने का निर्णय लिया गया, जिसके बाद शाही परिवार ने आपत्ति दर्ज कराई.
कब्जा और मुआवजे की मांग2014 से 2022 के बीच कई बार प्रतिनिधित्व और कानूनी नोटिस दिए जाने के बावजूद जब कोई हल नहीं निकला, तब याचिकाकर्ताओं ने सिविल कोर्ट में वाद दायर किया, जिसमें उन्होंने संपत्ति पर कब्जा, निषेधाज्ञा, और मुआवजे की मांग की. राज्य सरकार ने अनुच्छेद 363 का हवाला देते हुए इस वाद को प्रारंभिक चरण में ही खारिज करने हेतु आदेश VII नियम 11 के अंतर्गत आवेदन दिया, जिसे ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया.
हाई कोर्ट ने पलटा था फैसलाबाद में राज्य सरकार की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई करते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को पलट दिया और कहा कि उक्त वाद अनुच्छेद 363 के तहत बाधित है. हाई कोर्ट ने अपने निर्णय के पैरा 43 में यह स्वीकार किया कि करार के अनुसार राज्य को केवल आधिकारिक कार्यों हेतु संपत्ति का उपयोग करना था, और यदि कोई सरकारी अधिकारी इसका उल्लंघन करता है तो उसके विरुद्ध वैधानिक कार्यवाही की जा सकती है. फिर भी, कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि ऐसे करारों से उत्पन्न विवादों पर दीवानी अदालतों का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है.
आगे होगी सुनवाईयाचिकाकर्ताओं ने अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. उन्होंने तर्क दिया कि अनुच्छेद 363 की व्याख्या सीमित रूप में की जानी चाहिए और यह संविधान के अनुच्छेद 14, 21, और 300A में प्रदत्त मौलिक और संपत्ति के अधिकारों को निरस्त नहीं कर सकता—विशेषकर 26वें संविधान संशोधन के बाद जब शासकों को मान्यता समाप्त कर सामान्य नागरिक घोषित किया गया. सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मामले में नोटिस जारी कर दिया है और भविष्य में विस्तृत सुनवाई करते हुए यह जांच करेगा कि अनुच्छेद 363 की सीमा और पूर्व-संविधानकालीन करारों के तहत उत्पन्न अधिकारों की संवैधानिक स्थिति क्या है.
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