Rajasthan: पूर्व मंत्री शांति धारीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जारी किया नोटिस, 237 करोड़ रुपए के सरकारी विज्ञापन घोटाले का है आरोप

Rajasthan News: मामला उस वक्त का है, जब शांति धारीवाल तत्कालीन नगरीय विकास मंत्री थे.  

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शांति धारीवाल (प्रतीकात्मक तस्वीर)

Supreme Court notice to Shanti Dhariwal: सुप्रीम कोर्ट ने आज भजनलाल सरकार द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) पर नोटिस जारी किया है. पूर्ववर्ती गहलोत सरकार के कार्यकाल में कथित तौर पर सरकारी विज्ञापन घोटाले मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका पर नोटिस जारी किया. न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने मामले की सुनवाई की और आगे सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया. इस पूरे विवाद के केंद्र में वे सभी निर्णय हैं, जो राजस्थान भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) की जांच के दायरे में आए थे और जो उस समय लिए गए थे. मामला उस वक्त का है, जब शांति धारीवाल तत्कालीन नगरीय विकास मंत्री थे और जीएस संधू (सेवानिवृत्त आईएएस) राजस्थान सरकार में प्रमुख सचिव के पद पर कार्यरत थे. 

सुप्रीम कोर्ट में मामला फिर से सामने आने के बाद यह जांच का विषय बना है कि क्या इन दोनों के कार्यकाल में सरकारी पदों का दुरुपयोग करते हुए खरीद प्रक्रियाओं की अनदेखी कर भारी वित्तीय निर्णय लिए गए? राज्य सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) शिव मंगल शर्मा, अधिवक्ता निधि जसवाल और वरिष्ठ अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने मजबूत दलीलें दीं. 

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बिना किसी टेंडर के फर्जी बिल बनाकर निकाल ली राशि

उन्होंने कहा कि नवनिर्वाचित भजनलाल सरकार ने इस मामले में पुराने रुख को बदलते हुए जनता के धन के दुरुपयोग की गंभीर सामग्री के आधार पर यह याचिका दाखिल की है. यह घोटाला 2014 में दर्ज की गई 4 एफआईआर (संख्या 404, 406, 407 और 408) पर आधारित है. इस एफआईआर में आरोप लगाया गया कि क्रेयॉन्स एडवर्टाइजिंग लिमिटेड और इसके निदेशक अजय चोपड़ा ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग, स्थानीय निकाय विभाग और निवेश एवं संवर्धन ब्यूरो के अधिकारियों के साथ मिलकर फर्जी विज्ञापन बिल तैयार किए. बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के राज्य सरकार से करोड़ों रुपए की राशि निकाल ली.

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राज्य को भारी वित्तीय नुकसान

जांच में यह सामने आया कि 2008 से 2013 के बीच कुल विज्ञापन कार्य का लगभग 90% हिस्सा क्रेयॉन्स एडवर्टाइजिंग को सौंपा गया, जो कि स्पष्ट रूप से खरीद नियमों का उल्लंघन था. इसके चलते राज्य को भारी वित्तीय नुकसान हुआ.

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ACB द्वारा 2017 में दायर चार्जशीट में चयन समिति पर इसकी जिम्मेदारी तय की गई है. इसमें रामप्रसाद जात (तत्कालीन जनसंपर्क अधिकारी), ताराचंद मीणा (निदेशक), श्याम सिंह (अतिरिक्त निदेशक), मनीष गोयल (प्रोजेक्ट डायरेक्टर, स्थानीय स्वशासन विभाग) और राजेन्द्र विजयवर्गीय (सीनियर टाउन प्लानर) का नाम भी शामिल किया गया है. इस चयन को तत्कालीन प्रमुख सचिव जीएस संधू और तत्कालीन मंत्री शांति धारीवाल द्वारा स्वीकृत किया गया था.

2017 में दायर की गई थी चार्जशीट

2017 में निजी व्यक्तियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी, 2019 में एक क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की गई. इसमें कुछ सार्वजनिक अधिकारियों और अन्य व्यक्तियों को जांच से बाहर कर दिया गया. फिर भी पूर्व में दाखिल चार्जशीट और पूरक चार्जशीट को अंतिम चार्जशीट माना गया. 10 दिसंबर 2021 को राज्य सरकार ने एक आदेश पारित कर चारों एफआईआरों के संबंध में CrPC की धारा 321 के तहत अभियोजन समाप्ति के लिए आवेदन दाखिल करने का निर्णय लिया. 2022 में यह आवेदन दाखिल किए गए, जिन्हें ACB के विशेष न्यायाधीश ने खारिज कर दिया. 

2024 में सरकार बदलने के बाद बीजेपी सरकार ने इन पुनरीक्षण याचिकाओं को वापस लेने का आवेदन दायर किया. हालांकि, राजस्थान हाई कोर्ट ने यह याचिकाएं खारिज कर दीं और राज्य सरकार पर प्रति याचिका ₹1 लाख का जुर्माना लगाया. अब सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या कोई नवनिर्वाचित राज्य सरकार भ्रष्टाचार जैसे आपराधिक मामलों में पूर्व सरकार के रुख को बदल सकती है?  

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