Rajasthan News: वक्त बदलता है, लेकिन कोटा में जेठी समाज की रावण दहन की परंपरा आज भी वही है. अखाड़े की माटी से बने रावण को पैरों से कुचलकर बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मनाते हैं. नवरात्र में इन अखाड़ों पर विशेष आयोजन होते हैं. अखाड़ा परिसर में रोज पारंपरिक गरबा चलता है. इसके बाद देर रात तक गरबा खेला जाता है. दशहरे के दिन सुबह रावण से कुश्ती लड़कर उसे पैरों तले रौंदा जाता है. ज्वारों को बुजुर्ग एक-दूसरे को वितरित करते हैं. लोग बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेते हैं.
अखाड़े की मिट्टी से बनाते हैं रावण की प्रतिमा
कोटा के नांता और किशोरपुरा क्षेत्र स्थित जेठी समाज के अखाड़ों पर यह परंपरा वर्षों से निभाई जा रही है. समाज के लोग अखाड़े की मिट्टी से रावण की प्रतिमा बनाते हैं. इस पर मिट्टी से ही रावण का चेहरा उकेरा जाता है. नवरात्र के प्रारंभ होने से एक दिन पूर्व अखाड़े की मिट्टी का ढेर लगाकर इसे तैयार करते हैं. इस पर ज्वारे उगाए जाते हैं.
नवरात्र में होते हैं आयोजन
किशोरपुरा व नांता स्थित अखाड़े पर नवरात्र में विशेष आयोजन होते हैं. अखाड़ा परिसर में रोज पारंपरिक गरबा चलता है, लेकिन इससे पहले देवी की महिमा के 11 भजन विशेष रूप में गाए जाते हैं. इसके बाद देर रात तक गरबा खेला जाता है. दशहरे के दिन सुबह रावण से कुश्ती लड़कर उसे पैरों तले रौंदा जाता है. ज्वारों को बुजुर्ग एक-दूसरे को वितरित करते हैं. लोग बड़े-बूढ़ों का आशीर्वाद लेते हैं.
जेठी समाज का इतिहास
जेठी गुजराती ब्राह्मण हैं, जो गुजरात के विभिन्न क्षेत्रों से आए हैं. समाज की कुल देवी लिम्बा माता है. कोटा के पूर्व महाराजा उम्मेद सिंह ने इन समाज के लोगों को यहां बसाया था. उन्हें कुश्ती दंगल का शौक था. उन्होंने ही किशोरपुरा और नांता में अखाड़े बनवाए. समाज के लोग पहले नौकरियां नहीं करते थे, सिर्फ पहलवानी करते थे. परिवार का सारा खर्चा दरबार ही उठाया करता था. कोटा में वतर्मान में नांता व किशोरपुरा क्षेत्र में जेठी समाज के करीब 200 परिवार हैं. रियासत काल में दशहरे के मौके पर बृजनाथजी की सवारी के साथ सुरक्षा के लिए जेठी समाज के लोग चलते थे.
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