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अंगूठा काटकर खून से होगा विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक, चित्तौड़ दुर्ग में पगड़ी दस्तूर होगा कार्यक्रम

Mewar Royal Family: मेवाड़ की ऐतिहासिक परंपरा का निर्वहन एक बार फिर किया जा रहा है, जब महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बेटे विश्वराज सिंह का राज तिलक होने जा रहा है.

अंगूठा काटकर खून से होगा विश्वराज सिंह मेवाड़ का राजतिलक, चित्तौड़ दुर्ग में पगड़ी दस्तूर होगा कार्यक्रम
विश्वराज सिंह मेवाड़

Vishwaraj Singh Raj Tilak: शौर्य, त्याग और बलिदान की धरती मेवाड़ में ऐतिहासिक परम्परा का निर्वहन होने जा रहा है. मेवाड़ राज परिवार के वरिष्ठ सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके बेटे और नाथद्वारा विधायक विश्वराज सिंह का मेवाड़ की गद्दी के लिए राज तिलक होने जा रहा है. मेवाड़ की गद्दी के लिए कई दस्तूर किए जाएंगे,जिसने राज तिलक के रक्त से किया जाएगा. तलवार की धार से अंगूठे को काटकर तिलक लगाया जाएगा. इस परम्परा का निर्वहन सलूंबर ठिकानेदार द्वारा किया जाएगा. दस्तूर का यह कार्यक्रम चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित फतह प्रकाश महल में किया जाएगा. अब सवाल खड़ा होता है कि रक्त से ही क्यों राजतिलक होगा और सलूंबर ठिकानेदार ही क्यों करेंगे.

सफेद पाग हटाकर होगा शोक भंग

वैसे कार्यक्रमों की बात करे तो सुबह 10 बजे चित्तौड़गढ़ में राजतिलक होगा. 2 से 3 घंटे के बीच यह कार्यक्रम पूरा होगा उसके बाद 2 बजे तक विश्वराज सिंह उदयपुर पहुंचेंगे. सिटी पैलेस स्थित धूणी के दर्शन करने के बाद एकलिंग जी महादेव जिन्हें ही मेवाड़ का राजा माना जाता है,विश्वराज सिंह वहां पहुंचेंगे. एकलिंग जी में शोक भंग होगा. इसके बाद अपने निवास स्थान समोर बाग में में पाग दस्तूर होगा जिसमें शोक की सफेद पाग को हटाकर गुलाबी पाग पहनाई जाएगी. इसके बाद कार्यक्रम समाप्ति होगी.

महाराणा प्रताप के राजतिलक से शुरू हुई रक्त की परंपरा

मेवाड़ राजवंश शिवरती घराने के सदस्य डॉ आजात शत्रु शिवराती ने बताया कि उदयपुर को बसाने वाले महाराणा उदय सिंह देवलोक गमन के बाद उनकी भटयानी रानी का पुत्र जगमाल जो ज्येष्ठता, वरिष्ठता क्रम मे छोटा था. पिता अंत्येष्टि क्रिया में सम्मिलित न होकर सिंहासन पर बैठ गया और महाराणा बन बैठा. जबकी महाराणा उदय सिंह का ज्येष्ठ पुत्र/धर्म पुत्र जो महाराज कुंवर प्रताप (महाराणा प्रताप) जो सुयोग्य होकर नियम और परम्परा के अनुसार मेवाड महाराणा बनने का हकदार थे.

इस प्रकार की संकट की घड़ियों में अपनी भक्ति, त्याग के लिए प्रसिद्ध मेवाड़ के भीष्म युवराज रावत चुण्डा को मेवाड़ के संचालन का अधिकार था. रावत चुण्डा और उसके वंशजों को ये विशेषाधिकार वर्ष 1870 अंग्रेजों के प्रभावी होने से पहले तक चलते रहे.

महाराणा उदयसिंह के निधन पर मेवाड़ की ऐसी विकट परिस्थितियों में सलूंबर के रावत किसनदास ने गोगुंदा में बावड़ी के पास महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक किया. पुजा के थाल, कुमकुम उपलब्ध नहीं होने पर रावत किसनदास ने कुमकुम की जगह अपना अंगूठा चीरकर अपने खून से महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक कर मेवाड़ का महाराणा घोषित किया. तब से आज तक मेवाड महाराणा का राज्याभिषेक सलूंबर के रावत चुण्डा के वंशज ही करते हैं. विश्वराज का राजतिलक सलूंबर रावत देवरत सिंह करेंगे.

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