
Samandar Hilorane: समय के साथ भले ही जीवनशैली में बदलाव आया हो, लेकिन भारतीय समाज की कई पुरानी परंपराएँ आज भी अपनी जड़ें मजबूत बनाए हुए हैं. पश्चिमी राजस्थाने में रक्षा बंधन के साथ भाई-बहन के प्रेम और अटूट रिश्ते का प्रतीक और परम्परा है, जिसे ‘समंदर हिलोरने' कहते हैं. आज भी इस परम्परा को श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाई जाती है.
इस परम्परा के तहत भाई और बहनें तालाब की पूजा अर्चना करते हैं. रिवाज के मुताबिक बहनें सिर पर मटका रख कर तालाब की परिक्रमा करती हैं और तालाब के पानी में मटका डालकर भाई और बहन उसे उसे हिलाते हैं और मटके पानी से भरते है ,जिसके बाद भाई और बहन एक दूसरे को पानी पिलाते हैं.
चुनरी ओढ़ाकर भाई लेते हैं बहन का आर्शीवाद
यहां तालाब पर घुघरी-मातर (उबले हुए गेंहू व चना के साथ आटे से बना प्रसाद) का भोग लगाया जाता है. उसके बाद भाई अपनी बहनों से उपहार देकर और चुनरी ओढ़ाकर आर्शीवाद लेते हैं और एक दूसरे की जीवन मे खुशहाली की कामना करते है.
जल संरक्षण का भी मिलता है सन्देश
इस अनूठी परम्परा को जल संरक्षण से भी जोड़ कर देखा जा सकता है, इलाके में जेठ और आषाढ़ के महीनों की गर्मी में भी गांवों में महिलाएं अपने ससुराल में तालाब से मिट्टी खोद कर बाहर डालती हैं, मान्यता के अनुसार साल के 365 दिन के हिसाब से इतनी ही तगारी भरकर मिट्टी तालाब किनारे डाली जाती है.
बरसात में इन तालाब में पानी भर जाता है, तब पीहर से भाई उसके गांव आता है और उसके लिए चुनरी समेत अन्य उपहार भेंट करते हैं. इस तरह तालापरंपरा के अनुसार इसे समंदर हिलोरा कहा जाता है. बालोतरा जिले के कई गांवो में आज भी तालाबों और नाड़ियों पर इसी परंपरा के तहत अलग-अलग समाजों द्वारा आयोजन होता है.
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