डीग के जलमहल क्यों खोने लगे हैं अपना अस्तित्व, प्रशासन की उदासीनता से मडराने लगा है ये संकट 

पहले जल महल के जो झरोखों तक पानी भरा रहता था और चारों तरफ हरियाली नजर आती थी. लेकिन अब पानी तलहटी में पहुंच चुका है. प्रशासन की उदासीनता के कारण यह जलमहल अपना अस्तित्व खोने के कगार पर पहुंच रहा है.

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Jalmahal status: राजस्थान का एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगर जहां के जलमहल अपनी अद्वितीय सुंदरता और ऐतिहासिक महत्त्व के लिए जाने जाते हैं. इन जलमहलों ने सदियों से पर्यटकों को आकर्षित किया है और शहर की पहचान बनाए रखी है. लेकिन हाल के वर्षों में डीग के जलमहलों की स्थिति में उल्लेखनीय गिरावट आई है, जो कि जल की कमी और प्रशासन की अनदेखी के कारण हो रही है. स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर प्रशासन ने इस मामले को गंभीरता से नहीं लिया तो एक दिन यह ऐतिहासिक धरोहर अपनी पहचान खो देगी.

डीग के जलमहलों की स्थिति

एक समय था जब देशी विदेशी पर्यटकों का तांता लगा रहता था. लेकिन अब यहां आस पास के लोग भी आने से कतराते हैं. जल महल के दोनों ओर तालाब बने हुए है. इन दोनों तालाबों में उत्तर प्रदेश से पानी आता था. लेकिन अब इन तालाबों में गंदगी का अंबार है और पानी की कमी के चलते महलों की दीवारों में दरार पड़ने लगी है. प्रशासन की अनदेखी ने इस स्थिति को और भी बदतर बना दिया है. जल स्रोतों का पुनर्भरण और जलमहलों की नियमित देखभाल जैसे उपायों की आवश्यकता है, लेकिन इन पर ध्यान देने की कमी ने डीग के जलमहलों की स्थिति को और भी गंभीर बना दिया है.

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1730 में शुरू हुआ था निर्माण

डीग जल महल की नींव महाराजा सूरजमल के पिता बदन सिंह के द्वारा रखी गई थी. इसका निर्माण 1730 में शुरू हुआ, जब डीग को भी भरतपुर राज्य की दूसरी राजधानी के रूप में स्थापित किया गया था. महल का अधिकांश भाग राजा सूरजमल द्वारा 1756-1763 तक बनवाया गया था. डीग के जल महलों के तालाबों में पानी लाने के लिए रियासत काल में नाला बनाया गया था, जो बरसात के पानी को तालाबों तक पहुंचाता था. उसके बाद उत्तर प्रदेश से नाले के द्वारा पानी तालाब में लाया जाता था और जलापूर्ति की जाती थी.

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पर्यटकों का आना हुआ बंद

स्थानीय निवासी पंकज भूषण गोयल ने बताया कि करीब 20 साल पहले यहां उत्तर प्रदेश से समझौते के तहत नाले के द्वारा पानी आता था. लेकिन अब लोगों ने नाले पर अतिक्रमण कर लिया गया है. यही वजह है कि जल महलों को पानी नहीं मिल रहा है और पानी की कमी के चलते महलों की दीवारों पर दरारे आ चुकी हैं. जिससे इनका अस्तित्व खतरे में है. केंद्र और राज्य सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन का भी इस ओर कोई ध्यान नहीं है. देशी और विदेशी पर्यटकों ने भी आना बंद कर दिया है.

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लुप्त हो रहा असली स्वरूप 

आनंद प्रकाश पटेल ने बताया कि इस महल की पहचान ही जल से है. लेकिन जिला प्रशासन और जलदाय विभाग की उदासीनता के चलते यह ऐतिहासिक धरोहर अपनी पहचान खोने के कगार पर पहुंच गई है. जल महल के दोनों और गोपाल सागर और रूप सागर तालाब हैं. जिन में पानी की कमी के चलते जल महल का जो स्वरूप है वह धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है. तालाबों में रहने वाले जीव जंतु भी पानी की कमी के चलते दम तोड़ रहे हैं.

चारों तरफ नजर आती थी हरियाली

राकेश खंडेलवाल एडवोकेट ने बताया कि महलों के संबंध में न्यायालय में 7 साल पहले याचिका दायर हुई थी. न्यायालय ने सिंचाई विभाग को आदेशित किया था कि जल महल के रूप सागर और गोपाल सागर तालाबों के साथ अन्य तालाबों में पानी भरने का काम करेगा. लेकिन न्यायालय के आदेश के बाद भी सिंचाई विभाग के द्वारा सिर्फ एक बार ही पानी इन तालाबों में भरा गया है. महलों के जो झरोखों तक पानी भरा रहता था और चारों तरफ हरियाली नजर आती थी. लेकिन अब पानी तलहटी में पहुंच चुका है.

इस मामले को लेकर के जब जिला प्रशासन के अधिकारियों से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने इस मामले को लेकर कुछ भी बोलने से मना कर दिया.

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