IAS Neha Byadwal Success Story: सपने देखने की कोई उम्र नहीं होती, बस हौसला होना चाहिए, उड़ने के लिए पंख अपने आप मिल जाते हैं. यह कहावत राजस्थान के जयपुर की नेहा ब्याडवाल की है, जिन्होंने 25 साल की उम्र में यूपीएससी क्रैक कर देश की ब्यूरोक्रेसी में अपनी जगह बनाई. नेहा ऐसी ही एक युवा आईएएस हैं, जो हमेशा अंधेरे में रोशनी की एक हल्की किरण पर विश्वास करती हैं और अपने हौसले के दम पर आज के समय में कई युवाओं के लिए प्रेरणा बन गई हैं.
हिंदी से नहीं था दूर दूर तक नाता
साल 2023 में UPSC क्रैक कर नेहा ने उन चुनिंदा आईएएस अफसरों में अपनी जगह बनाई है जिसमें कुछ ही जगह पा पाते हैं. नेहा का जन्म राजस्थान की गुलाबी नगरी में हुआ लेकिन उनकी पढ़ाई-लिखाई छत्तीसगढ़ के रायपुर में हुई. उनकी जीवन यात्रा उतार-चढ़ाव से भरी रही है. उनका ज्यादातर समय अपने दादा-दादी के साथ बीता है.
चौथी क्लास तक वह उनके साथ रहीं. वहां हिंदी तो दूर अंग्रेजी भाषा भी कोई आसानी से नहीं समझ पाता था. क्योंकि उनके एक तो उनके घर का माहौल राजस्थानी था. दूसरा रायपुर में हिंदी भाषा का चलन कम था. ऐसे में उनके घर के लोग भी ज्यादातर राजस्थानी भाषा में ही बात करते थे. लेकिन हिंदी का ज्ञान उन्हें घर के स्कूल से तीन साल की उम्र से ही मिलना शुरू हो गया था. जब वह पहली बार स्कूल गईं तो वह बिल्कुल नहीं रोईं, जिसे याद कर आज भी उनकी मां हैरान रह जाती हैं.
हिंदी बोलने पर स्कूल में लगता था जुर्माना
एक इंटरव्यू में नेहा बताती हैं कि शुरू से ही उन्हें पढ़ाई से ज़्यादा लोगों से मिलने-जुलने का शौक था. स्कूल में उनकी गिनती अच्छे छात्रों में होती थी. उसके बाद वो आगे की पढ़ाई के लिए अपने पिता के साथ भोपाल आ गईं. जहां उनका एडमिशन एक अंग्रेजी स्कूल में हुआ. जिसकी किताबें देखकर उन्हें कुछ समझ नहीं आता था. वो कुछ भी पूछने से डरती थीं क्योंकि हिंदी बोलने पर जुर्माना लगता था। एक बच्ची जो बिना बोले नहीं रह सकती थी, अब चुप रहने लगी। जिसकी वजह से वो 5वीं क्लास में फेल हो गईं.
हारने की नहीं थी आदत
फेल होने के बाद उन्हें स्कूल में हिंदी सेक्शन में जाने के कई विकल्प दिए गए. लेकिन हार न मानने की आदत और कुछ नया करने के दृढ़ संकल्प ने उन्होंने इसे चुनौती के रूप में स्वीकार किया. जिसका नतीजा यह हुआ कि उन्होंने 6वीं से 10वीं तक अच्छा प्रदर्शन किया. उसके बाद एक बार फिर 11वीं और 12वीं करने के बाद टीनेज में वह फिर लड़खड़ा गईं. उस दौरान वह कई बार प्रिंसिपल के ऑफिस में खड़ी रहीं. उन्हें डांट भी पड़ी, लेकिन आज भी उन्हें लगता है कि वह उनकी सफलता की सीढ़ी का वह पहला कदम था. क्योंकि स्कूल में करियर को डगमगाता देख उन्होंने ग्रेजुएशन को सिरियस लिया.
कॉलेज में टॉप करना उनके लिए झटका लगने जैसा था क्योंकि वह एक हिंदी भाषी कॉलेज था. जिसके बाद वहां पढ़ने वाली छात्राएं उनसे पढ़ने के टिप्स मांगती थीं. उसी समय से उनके अंदर एक आत्मविश्वास पैदा हुआ कि कि वह किसी का मार्गदर्शन कर सकती है. और उन्होंने इसी तर्ज पर आगे बढ़ने की राह चुनी. उन्होंने रायपुर के डीबी गर्ल्स कॉलेज से ग्रेजुएशन किया.
आगे बढ़ने की हमेशा से रही है चाहत
वह मुखर थीं लेकिन उन्हें स्टेज फियर था, लेकिन उन्होंने अपने सपनों की बदौलत इस पर काबू पा लिया. यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास करने से पहले नेहा ने कई बार SSC परीक्षा पास की थी. लेकिन उन्होंने कभी सरकारी नौकरी ज्वाइन नहीं की. उनका लक्ष्य केवल सिविल सेवा में शामिल होना था . जिसे उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और उचित मार्गदर्शन से हासिल किया. अपने सपनों को हासिल करने के लिए उन्होंने दिल्ली का रूख भी किया. इसके लिए 19 साल की उम्र में नेहा ने दिल्ली में वाजीराम और रवि से कोचिंग ली. लेकिन इसके बाद वह रायपुर लौट आईं. फिर यहीं रहकर उन्होंने सेल्फ स्टडी की. उन्होंने यूपीएससी परीक्षा के अपने चौथे प्रयास में 569वीं रैंक हासिल कर अफसर बनने का सपना पूरा किया.
किसी भी चीज को लक्ष्य के बीच नहीं बनने दिया बाधा
नेहा ब्याडवाल ने इंटरव्यू में बताया कि यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करते समय उनके सामने कोई चुनौती नहीं थी. उन्हें पता था कि उन्हें सिविल सर्विस में ही जाना है. उनका उत्साह इतना ज्यादा था कि उसने किसी भी चीज को लक्ष्य के बीच में बाधा नहीं बनने दिया. वह जब असफल हुईं तो उन्होंने दोगुनी मेहनत की. वह मानती हैं कि अगर कोई समस्या है तो उसका समाधान भी जरूरी होगा.
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