![Acharya Satyendra Das: अयोध्या के वे संत जिनसे प्रभावित होकर सत्येंद्र दास ने ले लिया था संन्यास, रामलला की मूर्ति प्रकट होने का किया था दावा Acharya Satyendra Das: अयोध्या के वे संत जिनसे प्रभावित होकर सत्येंद्र दास ने ले लिया था संन्यास, रामलला की मूर्ति प्रकट होने का किया था दावा](https://c.ndtvimg.com/2025-02/nepp2r1o_ayodhya-shri-ram-_625x300_12_February_25.jpg?im=FitAndFill,algorithm=dnn,width=773,height=435)
Acharya Satyendra das: अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास का निधन हो गया है. उन्होंने 85 साल की आयु में लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में अंतिम सांस ली जहां वह 3 फरवरी से भर्ती थे. भारत में अयोध्या के राममंदिर आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले आचार्य सत्येंद्र दास ने निर्मोही अखाड़े के वैरागी महंत अभिराम दास से प्रभावित होकर संन्यास का मार्ग चुना था. अभिराम दास ने विवादित ढांचे में रामलला के प्रकट होने का दावा किया था. सत्येंद्र दास के पिता अभिराम दास के आश्रम जाते थे. सत्येंद्र दास भी अभिराम दास के आश्रम जाने लगे. उनके इस दावे और रामलला के प्रति सेवा देखकर बहुत प्रभावित हुए और सत्येंद्र दास ने संन्यास ले लिया.
वरिष्ठ पत्रकार रामप्रकाश त्रिपाठी ने अपनी पुस्तक 'रामभक्त मजिस्ट्रेट' में रामलला के प्रकट होने वाले दिन के घटनाक्रम का ब्यौरा बड़े विस्तार से लिखा है. उन्होंने लिखा है कि 22 दिसंबर 1949 की एक रात, कड़ाके की ठंड और चारों तरफ कोहरे की चादर में रामनगरी अयोध्या लिपटी हुई थी. संतरी ठंड में ठिठुरते कभी नींद में, तो कभी जागकर विवादित ढांचे के पहरे में लगे हुए थे.
पुजारी रामलला के प्रकट होने की खुशी में चिल्लाने लगे पुजारी
रात के करीब तीन बजे होंगे कि पुजारी ने खुशी से चिल्लाना शुरू किया कि रामलला प्रकट हो गए. साधु-संत जुटने लगे और रामकीर्तन शुरू हो गया. अयोध्या और आसपास के लोग जिसे भी सूचना मिली भारी भीड़ श्रीरामलला के दर्शन करने श्रीरामजन्मभूमि पर पहुंचने लगी. पुलिस चौकी पर तैनात एक मुस्लिम संतरी अब्दुल बरकत ने अगले दिन घोषणा कर दी कि मैंने बाबरी ढांचा में गजब की रोशनी देखी. मैं सुध-बुध खो बैठा. मैं बेहोश हो गया.
श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए महंत अभिराम दास सक्रिय थे
1949 में श्रीराम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए महंत अभिराम दास और धर्मनगरी के अन्य संत सक्रिय थे, उसी समय निर्मोही अखाड़े के वैरागी, साधु-संतों ने जो अखंड कीर्तन प्रारंभ किया तो वह श्रीराम जन्म भूमि मुक्ति तक अखंड रूप से जारी रहा. श्रीराम जन्मभूमि पर विवादित ढांचे में श्रीरामलला सपरिवार प्रकट हुए हैं, इसकी सूचना देश के साथ ही विदेशों तक पहुंच गई और वरिष्ठ पत्रकार रामप्रकाश त्रिपाठी अपनी पुस्तक 'रामभक्त मजिस्ट्रेट' में लिखते हैं कि इस घटना की सूचना पाकिस्तान रेडियो बढ़ा-चढ़ा कर पेश करने लगा, उसकी भाषा इतनी भड़काऊ थी कि वह दुनिया भर में प्रचार करने लगा कि भारत में मुस्लिमों के धर्मस्थल पर कब्जा किया जा रहा है, उनके साथ अत्याचार किया जा रहा है.
पाकिस्तान में होने लगा हल्ला-गुल्ला
जबतक इस घटना पर रेडियो पाकिस्तान पर हंगामा हुआ तब तक दिल्ली के हुक्मरान भी अनजान थे. पाकिस्तान के हल्ला गुल्ला और भारत में अस्थिरता फैलाने के प्रयास आरंभ हो गए, इस घटना को लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीीन मुख्यमंत्री पंडित गोंविद बल्लभ पंत को निर्देशित किया कि घटना से देश का मुस्लिम समाज नाराज है, स्थिति बिगड़ सकती है और वह कांग्रेस से भी नाराज हो जाएगा, ऐसी स्थिति में किसी भी परिस्थिति में पूर्व की स्थिति बहाल की जाए.
मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत खुद ही अयोध्या चल पड़े
प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का आदेश था कि पूर्व की स्थिति बहाल की जाए, जिसके लिए मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत ने फैजाबाद के जिलाधिकारी केके नैयर को आदेश दिया. जिलाधिकारी और नगर मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने आपस में विचार विमर्श किया. दोनों ने आपस में तय किया कि किसी भी हालात में पूर्व स्थिति को बहाल नहीं किया जा सकता. ऐसा करने पर देश में जो होगा वह होगा ही, घटना स्थल पर भयानक रक्तपात से इंकार नहीं किया जा सकता, जैसी स्थिति थी, उसकी सूचना मुख्यमंत्री पंत को भेज दी गई.
सिटी मजिस्ट्रेट ने सीएम को जाने से कर दिया था मना
जिलाधिकारी की रिर्पोट में प्रधानमंत्री नेहरू की इच्छा पूरी होती न देखकर तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत खुद ही अयोध्या की ओर चल पड़े. जिले की सीमा पर प्रोटोकाल के तहत जिला प्रशासन को मुख्यमंत्री की अगवानी करनी होती है. जिला प्रशासन की ओर से मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत की अगवानी करने सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह पहुंचे. मुख्यमंत्री ने उनसे पूर्व स्थिति बहाल करने का दबाव बनाया और घटना स्थल पर जाने की बात कही लेकिन सिटी मजिस्ट्रेट ठाकुर गुरुदत्त सिंह ने मुख्यमंत्री को स्पष्ट मना कर दिया और कहा कि आपके जाने से स्थिति बेकाबू हो सकती है.
भारी रक्त पात होने की थी आशंका
वहां पर मौजूद जनसमूह को आशंका है कि सरकारी तंत्र मूर्तियों को हटाने की कोशिश करेगा और इसे वह रोकने के लिए तैयार बैठे हैं, ऐसा हुआ तो भारी रक्त पात होगा, वहां किसी भी प्रकार की अप्रिय स्थिति में हमे आपको सुरक्षा दे पाना संभव नहीं होगा. मुख्यमंत्री बेहद नाराज हुए और कहा कि आप जो कह रहे हैं, उसके परिणाम गंभीर होंगे. सिटी मजिस्ट्रेट ने निर्णय लिया और कहा कि आपको हर हाल में वापस लौटना होगा. जिला प्रशासन मूर्तियों को गर्भगृह से हटाने की सोच भी नहीं सकता. आखिरकार मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को फैजाबाद की सीमा से ही वापस आना पड़ा.
सिटी मजिस्ट्रेट ने दिया त्यागपत्र
सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त सिंह जानते थे कि मुस्लिम तुष्टीकरण में द्विराष्ट्र के सिद्धांत को आधा-अधूरा लागू करने वाली सरकार जरुर कुछ गड़बड़ करेगी. पद से हटने के बाद वह कुछ नहीं कर पाएंगे. उन्होंने तत्काल फैसला लिया कि वह अपने पद से त्याग पत्र लिखेंगे. लेकिन इसके पहले दो आदेश बतौर मजिस्ट्रेट पारित कर दिए.
1-पूरे क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दिया, जिससे दूसरे पक्ष का वहां पर जुटान न हो सके.
2- दूसरा आदेश श्रीराम जन्मभूमि गर्भगृह में प्रकट हुई रामलला की बालरुप मूर्तियों की पूजा-अर्चना निर्बाध और नियमित जारी रखी जाएगी.
मामला न्यायिक प्रक्रिया के अधीन आ चुका था
अब मामला न्यायायिक प्रक्रिया के अधीन आ चुका था. गुरुदत्त सिंह ने दोनों आदेश पारित करने के बाद अपने पद से त्याग पत्र दे दिया. सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश को जिलाधिकारी केके नैयर ने विधिवत और तत्काल प्रभाव से लागू करने का आदेश दिया. यहां यह बताना चाहूंगा कि सिटी मजिस्टे्रट ठाकुर गुरुदत्त सिंह का यह आदेश हिंदू पक्ष के लिए आगामी दिनों में सुप्रीम कोर्ट तक मजबूत आधार बना रहा है. इसके बाद मुस्लिम पक्ष के मुकदमे को देखते हुए 29 दिसंबर 1948 को विवादित क्षेत्र को धारा 145 के तहत कुर्क करके रिसीवर नियुक्त कर दिया गया.
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