![चित्तौड़गढ़ में 500 साल से जीवित है पुरानी दाबू प्रिंट, हाथों से तैयार होते हैं ट्रेडिशनल कपड़े चित्तौड़गढ़ में 500 साल से जीवित है पुरानी दाबू प्रिंट, हाथों से तैयार होते हैं ट्रेडिशनल कपड़े](https://c.ndtvimg.com/2024-06/gbvr21f8_-dabu-print-art_625x300_17_June_24.jpg?im=FitAndFill,algorithm=dnn,width=773,height=435)
Chittorgarh: चित्तौड़गढ़ जिले के बेड़च नदी के किनारे स्थित 'छिपो का आकोला' में एक ऐसी कला है जिसमें पांच सौ साल पुरानी परंपरा आज भी बिना आधुनिक मशीनों के चल रही है. इस व्यवसाय में पूरा काम हाथों के हुनर से ही होता है. इस काल को 'दाबू प्रिंट' या 'अकोला प्रिंट' भी कहा जाता है. आज भी यहां 'दाबू प्रिंट' का काम पुरानी परंपरा के अनुसार ही हो रहा है. जो परिवार इस काम को छोड़ चुके थे, वे भी फिर से इसमें काम करने लगे हैं.जिले के बेड़च नदी के किनारे स्थित चिपो का अकोला आज भी 'दाबू प्रिंट' की कला को जीवित रखता है. कपड़ों पर रंगाई और छपाई की इस कला में आधुनिक मशीनों का इस्तेमाल नहीं होता. इसमें सारा काम हाथ से ही होता है.
![कपड़े को सही आकार में काटकर रात भर पानी में जाता है भिगोया कपड़े को सही आकार में काटकर रात भर पानी में जाता है भिगोया](https://c.ndtvimg.com/2024-06/aoh1sr9g_------------_625x300_17_June_24.jpg?im=FitAndFill,algorithm=dnn,width=632,height=421)
कपड़े को सही आकार में काटकर रात भर पानी में जाता है भिगोया
DABU प्रिंट की प्रक्रिया क्या है?(What is the process of DABU print?)
'दाबू प्रिंट' में कपड़े को रंगने के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है.छपाई के लिए कपड़े को सही आकार में काटकर रात भर पानी में भिगोया जाता है. फिर अगले दिन उसी कपड़े को अच्छी तरह से धोकर सुखाया जाता है. इसके बाद यह कपड़ा सीधे छपाई के लिए जाता है. जिसमें लकड़ी के ब्लॉक का उपयोग करके कपड़े पर काली मिट्टी से तैयार घोल से छपाई की जाती है. कपड़े पर दाबू प्रिंट के बाद उसे नील के घोल की प्रक्रिया से गुजारा जाता है. छिपो का अकोला में दो तरह की रंगाई और छपाई का काम होता है. पारंपरिक छपाई के तहत स्थानीय क्षेत्र में महिलाओं द्वारा पहनी जाने वाली चुंदड़ीऔर लहंगे की तरह पहने जाने वाले फेटिया बनाए जाते हैं. जिनकी इस क्षेत्र में काफी मांग है. पारंपरिक छपाई के अलावा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के विभिन्न डिजाइन के कपड़ों की रंगाई भी की जाती है. यहां छिपो समुदाय के करीब 150 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं, जिनमें से ज्यादातर परिवार पारंपरिक कपड़ों पर ही रंगाई का काम करते हैं.
![दाबू प्रिंट में लगते हैं 8 से 10 दिन करने के बाद कपड़े की होती हैं धुलाई दाबू प्रिंट में लगते हैं 8 से 10 दिन करने के बाद कपड़े की होती हैं धुलाई](https://c.ndtvimg.com/2024-06/p1ir9dk_----8--10----------------_625x300_17_June_24.jpg?im=FitAndFill,algorithm=dnn,width=632,height=421)
दाबू प्रिंट में लगते हैं 8 से 10 दिन करने के बाद कपड़े की होती हैं धुलाई
दाबू प्रिंट में लगते हैं 8 से 10 दिन
दाबू प्रिंट का काम बहुत मेहनत वाला होता है. इसमें जब एक कड़ाही में उबलते कपड़ों पर दाबू प्रिंट किया जाता है, तो कपड़ों पर लगे मिट्टी और मेण से बने मोम को लकड़ी के दाबू से हाथों के जरिए दबाव देकर हटाया जाता है. जब कपड़ों से यह मोम हटाया जाता है, तो लकड़ी के दाबू की मदद से कपड़ों पर किए गए रंग का डिज़ाइन उनपर उभर आता है. अलग-अलग कपड़ों की रंगाई और छपाई के लिए अलग-अलग क्वालिटी के कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है. कपड़ों को धोने से लेकर उन पर रंगाई और छपाई करने के बाद आखिर में कपड़े की धुलाई की जाती हैं. इस प्रक्रिया में 8 से 10 दिन लगते हैं. बिना मशीनों और केमिकल के हाथों से किया गया यह काम न केवल प्रकृति को बचाता है बल्कि कारीगरों को पहचान दिलाने में भी मदद करता है. इस काम में महिलाएं भी अहम भूमिका निभाती हैं. वे दुपट्टे पर बंधेज लगाने के साथ-साथ तैयार कपड़ों की पैकिंग भी करती हैं जो देखने में बेहद खूबसूरत लगती है.
![छिपों का आकोला के अलावा अन्य जिलों में भी मांग पारंपरिक कपड़ों की भारी मांग छिपों का आकोला के अलावा अन्य जिलों में भी मांग पारंपरिक कपड़ों की भारी मांग](https://c.ndtvimg.com/2024-06/pmqbbuho_-------------_625x300_17_June_24.jpg?im=FitAndFill,algorithm=dnn,width=632,height=421)
छिपों का आकोला के अलावा अन्य जिलों में भी मांग पारंपरिक कपड़ों की भारी मांग
छिपों का आकोला के अलावा अन्य जिलों में भी मांग
हाथ से तैयार किए गए ट्रेडिशनल कपड़ों का छिपो का आकोला के बाजार में बड़ी संख्या में बिकती हैं. यहां के ग्रामीण इलाकों में चूंदड़ी और फेटिया जैसे पारंपरिक कपड़ों की मांग ज्यादा है. यहां तैयार किए गए पारंपरिक कपड़े चित्तौड़गढ़ जिले के अलावा भीलवाड़ा, उदयपुर, अजमेर समेत कई जगहों पर सप्लाई किए जाते हैं. मांग के अनुसार अन्य जगहों पर भी इसकी सप्लाई की जाती है. इस कला के बारीक काम को राजस्थान ही नहीं बल्कि देश-विदेश में भी मशहूर है. मशीनों और केमिकल के बिना कपड़ों पर रंगाई-छपाई के इस व्यवसाय से लोगों को जोड़ने के लिए सरकार समय-समय पर उन्हें प्रशिक्षण भी देती है. जिससे दाबू प्रिंट का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है.