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भारत-पाक युद्ध में भी अजेय रहा यह मंदिर: बाड़मेर का जोगमाया गढ़, जहां अब भी महसूस होते हैं चमत्कार

Navratri 2025: राजस्थान के बाड़मेर में स्थित जोगमाया गढ़ मंदिर में नवरात्रि के दौरान भक्तों की भारी भीड़ उमड़ रही है. जानिए कैसे 16वीं सदी का यह प्राचीन मंदिर 1965 और 1971 के युद्ध में भी अजेय रहा.

भारत-पाक युद्ध में भी अजेय रहा यह मंदिर: बाड़मेर का जोगमाया गढ़, जहां अब भी महसूस होते हैं चमत्कार
बाड़मेर के जोगमाया गढ़ मंदिर में नवरात्रि की धूम, 1000 सीढ़ियां चढ़कर दर्शन को पहुंच रहे हैं भक्त

Rajasthan News: पश्चिमी राजस्थान में भारत-पाकिस्तान सीमा के पास बसे बाड़मेर (Barmer) शहर में इन दिनों भक्ति का माहौल है. नवरात्रि (Shardiya Navratri 2025) के दूसरे दिन भी शहर के सबसे प्राचीन और ऐतिहासिक जोगमाया गढ़ मंदिर (Shri Jogmaya Garh Mandir) में भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है. अल सुबह 4 बजे से ही यहां लंबी कतारें लगनी शुरू हो जाती हैं. लोग अपनी बारी आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं, ताकि मां दुर्गा के दर्शन कर सकें.

1400 फीट की ऊंचाई, 1000 सीढ़ियां

यह मंदिर लाखों लोगों की आस्था का केंद्र है. नवरात्रि के दौरान यहां देश के अलग-अलग हिस्सों से हजारों श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं. मंदिर एक 1400 फीट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर बना है, जो लगभग 1400 फीट ऊंची है. मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 1000 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. यह यात्रा भले ही थोड़ी थकाने वाली हो, लेकिन भक्तों के लिए यह एक आध्यात्मिक अनुभव है. ऊपर पहुंचकर बाड़मेर शहर का अद्भुत नजारा भी देखने को मिलता है.

बाड़मेर शहर से भी पुराना है ये मंदिर

जोगमाया गढ़ मंदिर का इतिहास बेहद पुराना है. माना जाता है कि इसकी स्थापना 16वीं शताब्दी में हुई थी. बाड़मेर के तत्कालीन शासक राव भीमजी ने सबसे पहले इसी पहाड़ी पर जोगमाया मंदिर की स्थापना की थी. इसके बाद ही उन्होंने बाड़मेर शहर को बसाया था. इस तरह यह मंदिर बाड़मेर शहर के अस्तित्व से भी पुराना है. इतिहासकार बताते हैं कि यह मंदिर कई शताब्दियों से इस क्षेत्र के लोगों की श्रद्धा का केंद्र रहा है. यहां की पहाड़ियां और मंदिर ने कई ऐतिहासिक घटनाओं को देखा है. लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा इस मंदिर के उस चमत्कार की होती है, जिसने इसे देशभर में मशहूर कर दिया.

1965 और 1971 के युद्ध में महसूस हुए चमत्कार

इस मंदिर की ख्याति सिर्फ इसकी प्राचीनता के कारण नहीं है, बल्कि मां जगतम्बा के चमत्कारों के कारण भी है. खासकर 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लोगों ने इसकी शक्ति को महसूस किया. रिपोर्ट के मुताबिक, जब दोनों युद्धों के दौरान पाकिस्तान ने बाड़मेर पर भीषण बमबारी की, तो लोग जान बचाने के लिए मंदिर की सीढ़ियों पर जाकर छुप जाते थे. इस दौरान मंदिर के आसपास और शहर के कई हिस्सों में बम गिरे, लेकिन किसी भी व्यक्ति को कोई नुकसान नहीं हुआ. लोग बताते हैं कि पाकिस्तानी बमवर्षक विमानों ने यहां कई बम बरसाए, लेकिन मंदिर को एक खरोंच भी नहीं आई. उस मुश्किल समय में भी यहां मौजूद सभी लोग सुरक्षित रहे. इस घटना के बाद से ही लोगों की आस्था इस मंदिर में और गहरी हो गई.

मंदिर के पुजारी भी इस घटना की पुष्टि करते हैं. पुजारी ने बताया, 'लोग मानते हैं कि मां जोगमाया ने उन दिनों भक्तों की रक्षा की थी. तभी से यह मंदिर लाखों लोगों के लिए एक असीम शक्ति का प्रतीक बन गया है.'

नवरात्रि में दिखता है अद्भुत नजारा

नवरात्रि के इन दिनों में यहां का माहौल और भी भक्तिमय हो जाता है. सुबह-शाम होने वाली आरती में सैकड़ों लोग शामिल होते हैं. मंदिर परिसर में लगे लाउडस्पीकर पर बजने वाले भजन और मंत्रों से पूरा इलाका गूंज उठता है. सुरक्षा को देखते हुए मंदिर प्रशासन और स्थानीय पुलिस ने मिलकर पुख्ता इंतजाम किए हैं. भक्तों की भीड़ को व्यवस्थित करने के लिए अतिरिक्त पुलिस बल भी तैनात किया गया है.

भक्तों का कहना है कि यहां आकर उन्हें मानसिक शांति मिलती है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. एक स्थानीय भक्त ने बताया, 'नवरात्रि में यहां आना एक अलग ही एहसास देता है. 1000 सीढ़ियां चढ़ने में भले ही थकान हो, लेकिन जब माता के दर्शन होते हैं, तो सारी थकान दूर हो जाती है.' यह मंदिर न सिर्फ एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह बाड़मेर के इतिहास, संस्कृति और लोगों की अटूट आस्था का प्रतीक भी है.

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