राजस्थान, आँगन के वफ़ादार पहरेदारों को छोड़ मत

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मनु सिंह

Rajasthan: राजस्थान की धरती पर करुणा, साहस और साथ निभाने की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी यहाँ की हवेलियाँ और किले. यहाँ पशु केवल जीव नहीं, परिवार के सदस्य माने जाते हैं. श्राद्ध पर्व पर जब लोग अपने पितरों की स्मृति में पहली रोटी कुत्ते को देते हैं, तो यह केवल रस्म नहीं, बल्कि उस जीवंत सनातनी भावना का प्रतीक है जो कहती है - “सर्वभूतहिते रताः.”

लेकिन इसी करुणा के मौसम में राजस्थान हाई कोर्ट का ताज़ा आदेश - कि सभी आवारा कुत्तों को आठ सप्ताह में स्थायी शेल्टरों में डाल दिया जाए और नगर निगम किसी को भी इसके पालन में बाधा डालने पर एफआईआर दर्ज कर सके - दिल को चीरने वाला है. यह केवल प्रशासनिक कदम नहीं, हमारी संस्कृति, परंपरा और धर्म पर चोट है.

वफ़ादारी के क़िस्से

राजस्थान की लोककथाओं में कुत्ता वफ़ादारी और न्याय का प्रतीक रहा है. एक कथा में राजा शिबि ने अपने प्राण देकर भी एक कबूतर की रक्षा की, और भगवान भैरव तो सदा अपने श्वान साथी के साथ पूजे जाते हैं. यहाँ गाँव का पहरेदार कुत्ता रातभर जागकर खेत-खलिहानों को सुरक्षित रखता है, बाड़े में घुसपैठियों को रोकता है, और बाढ़, आग या डकैती जैसे संकट में पहले चेतावनी देकर जान बचाता है.

महाराणा प्रताप के शिविर पर दुश्मनों का हमला होने से पहले उनके कुत्ते ने भौंककर और दौड़कर सैनिकों को जगा दिया, जिससे राज्य की अस्मिता बची.

हमारी धरती के किस्सों में कुत्ते का स्थान विशेष रहा है- जैसलमेर की एक प्राचीन दंतकथा कहती है कि एक वफ़ादार कुत्ते ने पूरे काफ़िले को रेगिस्तानी तूफ़ान से बचाया, खुद जान देकर भी अपने मालिक को जिंदा रखा. नागौर के पास एक गाँव में आज भी “श्वान मेला” लगता है, जहाँ लोग अपने कुत्तों का सम्मान करने के लिए इकट्ठा होते हैं, उन्हें हल्दी-कुमकुम लगाते हैं और मिष्ठान्न खिलाते हैं. 

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मेवाड़ के इतिहास में तो एक गाथा प्रसिद्ध है, जिसमें महाराणा प्रताप के शिविर पर दुश्मनों का हमला होने से पहले उनके कुत्ते ने भौंककर और दौड़कर सैनिकों को जगा दिया, जिससे राज्य की अस्मिता बची. यह सब केवल कहानियाँ नहीं, हमारे जीवन का हिस्सा हैं.

अतार्किक समाधान

लेकिन आज इस रिश्ते पर खतरा है. जोधपुर के एक शेल्टर का हाल ही में सामने आया वीडियो देखकर आत्मा काँप उठी - छोटे-से कमरे में ठूँसे गए दर्जनों कुत्ते, भूखे-प्यासे, घुटन में तड़पते हुए, आँखों में डर और निराशा. यह दृश्य किसी भी संवेदनशील इंसान को बेचैन कर देने वाला है. ऐसे शेल्टर करुणा नहीं, क्रूरता के अड्डे बन जाते हैं, जहाँ जीवन बचाने की जगह, जीवन छिन जाता है.

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विज्ञान भी कहता है कि कुत्तों को जबरन हटाना व्यर्थ है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने स्पष्ट कहा है कि इससे “Vacuum Effect” होता है - हटाए गए कुत्तों की जगह नए, बिना टीका लगे कुत्ते आ जाते हैं, जिससे रेबीज़ और झगड़े दोनों बढ़ते हैं. समाधान वही है जो हमारे देश का कानून भी मानता है - पकड़ो, नसबंदी करो, टीका लगाओ और वापस छोड़ दो. यही तरीका दिल्ली से लेकर श्रीलंका तक सफल रहा है.

Photo Credit: pixabay

क़ानूनी दृष्टि से भी यह आदेश सवालों के घेरे में है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51(A)(g) में हर नागरिक का मौलिक कर्तव्य है कि वह सभी जीवों के प्रति करुणा रखे. इसके अलावा, Animal Birth Control Rules, 2023 के तहत किसी भी स्वस्थ कुत्ते को स्थायी रूप से शेल्टर में रखना या उसके क्षेत्र से हटाना, बिना नसबंदी और टीकाकरण के, अवैध है. यहाँ तक कि राजस्थान नगरपालिका अधिनियम में भी पशु संरक्षण से जुड़े प्रावधान हैं, जिनका उद्देश्य है कि नगरपालिकाएँ वैज्ञानिक तरीके से प्रबंधन करें, न कि अमानवीय बंदीकरण. 

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सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि आवारा कुत्तों के अधिकार और इंसानों की सुरक्षा के बीच संतुलन ज़रूरी है, लेकिन यह संतुलन करुणा और वैज्ञानिकता से होना चाहिए, दमन से नहीं.

यह सिर्फ कुत्तों की लड़ाई नहीं है, यह हमारे अपने हृदय और इंसानियत को बचाने की लड़ाई है.

राजस्थान से उम्मीद

हमारे राजस्थान के नेता, चाहे अशोक गहलोत हों या गजेंद्र सिंह शेखावत, दोनों ही पशु प्रेम और लोक संस्कृति के संवाहक रहे हैं. उनसे उम्मीद है कि वे इस आदेश को मानवीय, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टि से चुनौती देंगे, क्योंकि जब तक हम अपने चार पैरों वाले पहरेदारों के साथ खड़े नहीं होंगे, तब तक हम न अपने पितरों का सच्चा श्राद्ध कर पाएँगे, न ही अपनी धरती का मान रख पाएँगे.

यह सिर्फ कुत्तों की लड़ाई नहीं है, यह हमारे अपने हृदय और इंसानियत को बचाने की लड़ाई है. अगर आज हमने इन गली के रक्षकों को छोड़ दिया, तो कल इतिहास हमें माफ़ नहीं करेगा.