विज्ञापन
This Article is From Apr 02, 2025

अमृता देवी बिश्नोई थीं आधुनिक भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट

मनु सिंह
  • विचार,
  • Updated:
    अप्रैल 02, 2025 16:12 pm IST
    • Published On अप्रैल 02, 2025 14:52 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 02, 2025 16:12 pm IST
अमृता देवी बिश्नोई थीं आधुनिक भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट

(अमृता देवी ने खेजड़ी वृक्षों की रक्षा करते हुए बलिदान दिया था Credit: X@JAT_SAMAAJ)

धरती और पर्यावरण की रक्षा का विचार आज के समय में जितना प्रासंगिक है, उतना ही यह भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक परंपराओं में गहराई से निहित रहा है. पर्यावरण संरक्षण को केवल भौतिक प्रयास तक सीमित रखना इसकी व्यापकता को सीमित कर देता है. वास्तव में, यह एक आध्यात्मिक चेतना का विषय है, जिसे इको-स्पिरिचुअलिटी (Eco-Spirituality) कहा जाता है. इको-स्पिरिचुअलिटी का मूल सिद्धांत यह है कि मनुष्य और प्रकृति एक ही चेतना के अंग हैं. जब मनुष्य अपनी चेतना को संतुलित करता है, तो वह पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होता है. यह दर्शन केवल आधुनिक जागरूकता अभियानों तक सीमित नहीं है; भारत की भूमि पर सदियों पहले ही इसका सबसे शक्तिशाली उदाहरण देखने को मिला - अमृता देवी बिश्नोई के बलिदान में.

"जब लोग संसार को बिना आधार, बिना मार्गदर्शन और केवल भोग के निमित्त मानते हैं, तो वे विनाश के मार्ग पर चलते हैं" - श्रीमद्भागवत् गीता

अमृता देवी का बलिदान: इको-स्पिरिचुअलिटी की जड़ें

1730 ईस्वी में, जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के सैनिकों ने जब बिश्नोई समाज के पवित्र खेजड़ी वृक्षों को काटने का आदेश दिया, तब अमृता देवी ने अपने जीवन की आहुति देकर इस अनैतिक कार्य का विरोध किया. उनकी अमर वाणी - “सर साठे रूख रहे तो भी सस्तो जान” - यह संकेत देती है कि वृक्ष केवल भौतिक संपत्ति नहीं, बल्कि जीवंत चेतना के प्रतीक हैं, जिनकी रक्षा करना जीवन से भी अधिक मूल्यवान है. 

इको-स्पिरिचुअलिटी हमें यही सिखाती है, कि प्रकृति और आत्मा के बीच कोई भेद नहीं है. अमृता देवी का बलिदान केवल सामाजिक या राजनीतिक विरोध नहीं था; यह एक गहरी आध्यात्मिक चेतना से उत्पन्न हुआ था, जिसमें प्रकृति को आत्मा के रूप में देखा गया.  

Latest and Breaking News on NDTV

आधुनिक समय में सबसे बड़ा प्रदूषण बाहरी नहीं, बल्कि मानव चेतना का प्रदूषण है. जब हम प्रकृति को केवल संसाधन मानने लगते हैं और उसे अपने स्वार्थ के लिए नष्ट करते हैं, तब विनाश का चक्र शुरू हो जाता है. इसी सोच के परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता की हानि और पर्यावरणीय संकट गहराते जा रहे हैं. 

भगवद् गीता में कहा गया है: “असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्.” (भगवद गीता 16.8)

अर्थात, जब लोग संसार को बिना आधार, बिना मार्गदर्शन और केवल भोग के निमित्त मानते हैं, तो वे विनाश के मार्ग पर चलते हैं.

अमृता देवी ने इस अहंकारपूर्ण दृष्टिकोण को अस्वीकार करते हुए एक वैकल्पिक आध्यात्मिक दृष्टि प्रस्तुत की, जहां प्रकृति स्वयं ईश्वर का स्वरूप है और उसकी रक्षा करना धर्म. आज “विकास” को भौतिक समृद्धि, उपभोक्तावाद और अनियंत्रित औद्योगीकरण से जोड़ा जाता है.

हम एक ऐसी सभ्यता में रह रहे हैं जहां लालच, वर्चस्व, और निरंतर विस्तार को सफलता और प्रगति का मापदंड मान लिया गया है. इस सोच के परिणामस्वरूप ये परिस्थितियां दिखाई दे रही हैं-  

  • वायु और जल का अत्यधिक प्रदूषण
  • जलवायु परिवर्तन और बढ़ता वैश्विक तापमान
  • जैव विविधता का ह्रास
  • आर्थिक और सामाजिक असमानता

आज हम पहले अपने भोगों के गुलाम बनते हैं, फिर उन उद्योगों के जो हमारे भोगों की पूर्ति करते हैं. मांसाहार, जीवाश्म ईंधन, तंबाकू, मदिरा, और औषधि उद्योग - ये सभी हमारी बढ़ती इच्छाओं का परिणाम हैं, और इनका प्रभाव पूरी पृथ्वी पर दिखाई देता है.

आधुनिक समय में सबसे बड़ा प्रदूषण बाहरी नहीं, बल्कि मानव चेतना का प्रदूषण है. जब हम प्रकृति को केवल संसाधन मानने लगते हैं और उसे अपने स्वार्थ के लिए नष्ट करते हैं, तब विनाश का चक्र शुरू हो जाता है.

संयुक्त राष्ट्र की संस्था खाद्य और कृषि संगठन (FAO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, मांसाहार न केवल असीमित पशु क्रूरता का कारण है, बल्कि यह वनों की कटाई, जल संकट, और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का भी एक प्रमुख स्रोत है. इसी प्रकार, हमारी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए जल, कोयला, और तेल का अत्यधिक दोहन प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ रहा है. इस प्रकार, तथाकथित “प्रगति” ने हमें पारिस्थितिक विनाश, जलवायु आपदाओं, और सामाजिक उथल-पुथल की ओर धकेल दिया है. 

Latest and Breaking News on NDTV

विकृत सक्रियता: जब परिवर्तन भी अहंकार-प्रेरित हो जाता है

आज अनेक संगठनों, संस्थानों और व्यक्तियों द्वारा पर्यावरण और सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए कार्य किया जा रहा है. लेकिन कई बार, यह सक्रियता भी अहंकार का रूप धारण कर लेती है. जब कोई कार्य केवल दिखावे, प्रसिद्धि, या व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए किया जाता है, तो वह वास्तविक समाधान नहीं ला सकता. ऐसी सक्रियता केवल सतही बदलाव लाती है, लेकिन समस्या की जड़ तक नहीं पहुंचती.

जैसा प्रसिद्ध दार्शनिक कृष्णमूर्ति ने कहा था: “एक गहराई से बीमार समाज में समायोजित हो जाना, स्वस्थ होने का प्रमाण नहीं है.” सही परिवर्तन तब होगा जब यह आंतरिक रूपांतरण से प्रेरित होगा, जब हम अपने भीतर की असंतुलन की ऊर्जा को पहचानेंगे और उसे संतुलित करने का प्रयास करेंगे.

इको-स्पिरिचुअलिटी केवल एक विचारधारा नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जिसमें हम स्वयं को प्रकृति से अलग नहीं, बल्कि उसका अभिन्न अंग मानते हैं.

भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट

अगर इको-स्पिरिचुअलिटी का अर्थ प्रकृति के साथ आध्यात्मिक एकता है, तो अमृता देवी को भारत की पहली इको-स्पिरिचुअलिस्ट कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. उनके बलिदान में अहिंसा, करुणा, सात्त्विक जीवनशैली और अपरिग्रह जैसे आध्यात्मिक मूल्यों का गहरा समावेश था. यही वे सिद्धांत हैं, जो इको-स्पिरिचुअलिटी की नींव बनाते हैं.

आज जब जलवायु परिवर्तन और पारिस्थितिकी संकट हमारे अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं, तब अमृता देवी का संदेश पहले से अधिक प्रासंगिक हो गया है. उनका जीवन हमें सिखाता है कि पर्यावरण संरक्षण केवल नीतियों और अभियानों से संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए चेतना का उत्थान आवश्यक है.

अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान न केवल इतिहास की एक घटना है, बल्कि यह हमें याद दिलाता है कि जब प्रकृति को आत्मा के रूप में देखा जाता है, तब उसकी रक्षा के लिए कोई भी कीमत चुकाना छोटा हो जाता है. इको-स्पिरिचुअलिटी केवल एक विचारधारा नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है, जिसमें हम स्वयं को प्रकृति से अलग नहीं, बल्कि उसका अभिन्न अंग मानते हैं.

आज हमें अमृता देवी के संदेश से प्रेरणा लेते हुए एक इको-स्पिरिचुअल दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है, जहां विकास का अर्थ केवल भौतिक समृद्धि नहीं, बल्कि चेतना और प्रकृति का सामंजस्य हो. यही सच्ची प्रगति होगी, और यही अमृता देवी की वास्तविक विरासत है.

लेखक परिचय: मनु सिंह जयपुर स्थित पर्यावरणविद् तथा सामाजिक न्याय और शांति कार्यकर्ता हैं. वह एक आध्यात्मिक प्रशिक्षक (Spiritual Trainer) हैं, तथा वरेण्यम (Varenyum) नामक एक संगठन के मुख्य संरक्षक हैं जिसका उद्देश्य एक ध्यानपूर्ण जीवन शैली का विकास और समग्र कल्याण सुनिश्चित करना है. मनु सिंह नियमित रूप से पर्यावरण और आध्यात्मिक विषयों पर लेख लिखते हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

Rajasthan.NDTV.in पर राजस्थान की ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें. देश और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं. इसके अलावा, मनोरंजन की दुनिया हो, या क्रिकेट का खुमार, लाइफ़स्टाइल टिप्स हों, या अनोखी-अनूठी ऑफ़बीट ख़बरें, सब मिलेगा यहां-ढेरों फोटो स्टोरी और वीडियो के साथ.

फॉलो करे:
Close