Kota: इंजीनियरिंग तथा मेडिकल प्रवेश परीक्षा की कोचिंग हेतु विश्व प्रसिद्ध कोटा-कोचिंग सिस्टम संक्रमण के दौर से गुजर रहा है. बदलाव की बयार में कई नई चुनौतियां मुंह फाड़े खड़ी हैं. वर्तमान समय कोटा कोचिंग हेतु खोए हुए वैभव,यश,कीर्ति एवं व्यावसायिक सफलता की पुनः प्राप्ति का है. यह समय है अभिभावकों के भरोसे को पुनः जीतने का,खोई हुई प्रतिष्ठा की पुनः प्राप्ति का? समय है शहर की आबो-हवा को दुरुस्त करने का. कोटा कोचिंग की शिक्षण-पद्धति को लेकर कहीं कोई सवालिया निशान नहीं है, किंतु शहर की आबो-हवा को तो दुरुस्त करना ही होगा.
तथाकथित चाय की टपरियों से सिगरेट के कश लगाते छपरियों से तो शहर को निजात पानी ही होगी. अपनी पुत्री को कोटा लेकर आए माता-पिता जब खुले-आम थड़ियों पर बे-वक्त बैठे युवक-युवतियों, छात्र-छात्राओं को शालीनता की हदें पर करते हुए देखते हैं तो निश्चित तौर पर वे सहम ही जाते हैं. उनका विश्वास डगमगा जाता है,भय उत्पन्न हो जाता है कि कच्ची-उम्र के इस दौर में उनकी बिटिया भी इस आबो-हवा में भटक तो नहीं जाएगी.
परिश्रम से पलायन
कारण यह है कि सफलता हेतु आवश्यक परिश्रम से पलायन करने वाले विद्यार्थी को पहला सहारा 'नशा' ही दिखाई देता है.सार्वजनिक स्थानों पर स्वच्छंदता से विचरण करते बाली उम्र के प्रेमी-युगलों को देखकर माता-पिता के चेहरों पर चिंता की लकीरें उभर ही आती हैं.विद्यार्थियों का इस नादां-उम्र में प्रेम-प्रसंगों के जाल में फंसना एक स्वाभाविक सी घटना है और ऐसा हो जाने की कल्पना से ही माता-पिता सिहर उठते हैं.
हाल ही में चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के पश्चात जवाहर नगर-कोटा थाना इलाके में कोचिंग विद्यार्थियों ने जो उत्पात मचाया उसे किसी भी आधार पर जायज नहीं ठहराया जा सकता. उत्पाती विद्यार्थी निश्चित तौर पर सिर्फ मुट्ठी भर ही हैं किन्तु ये पूरे शहर की आबो-हवा को खराब करते हैं जो शहर के शैक्षणिक वर्चस्व की पुनः प्राप्ति में बहुत बड़ी बाधा है. शैक्षणिक-नगरी कोटा की इस आबो-हवा को सुधारने के लिए सार्वजनिक सामूहिक सामाजिक प्रयास करने ही होंगे.

आईआईटी और नीट की परीक्षाओं में लाखों विद्यार्थी बैठते हैं (File photograph)
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सफलता की सच्चाई
कोटा को प्रतिष्ठित आईआईटी-संस्थानों में प्रवेश के आंकड़ों के गणित को भी विद्यार्थियों एवं अभिभावकों को साहसपूर्वक साझा करना सीखना होगा. देश के 23 प्रतिष्ठित आईआईटी-संस्थानों में लगभग 17 हजार सीटें है. 12 लाख से अधिक विद्यार्थी इन सीटों पर प्रवेश का प्रयास करेंगे. अतः देश के प्रतिष्ठित 23 आईआईटी संस्थानों में प्रवेश हेतु असफल होने का प्रतिशत 98.6% है. सफल होने की संभावना मात्र 1.4% है.
इसी तरह 24 लाख विद्यार्थी सरकारी मेडिकल शिक्षण संस्थानों में एमबीबीएस की पढ़ाई की आशा लिए मेडिकल प्रवेश परीक्षा नीट-यूजी में सम्मिलित होते हैं. किंतु, मेडिकल संस्थानों में लगभग 60 हजार गवर्नमेंट एमबीबीएस सीट हैं. असफलता का आंकड़ा 97.5% है. सफलता की संभावना मात्र 2.5% ही है.
यह आंकड़े हतोत्साहित करने के लिए नहीं हैं, अपितु अभिभावकों एवं विद्यार्थियों को वास्तविकता के धरातल से रूबरू कराते हैं. ये आंकड़े रूबरू कराते हैं सफलता के लिए आवश्यक परिश्रम की असीमित मात्रा से.
तैयार करने होंगे विकल्प
इन आंकड़ों से एक यक्ष प्रश्न उभर कर आता है, यह नहीं तो इनके अतिरिक्त और क्या?
और फिर प्रारंभ होती है विकल्पों की तलाश, संभावनाओं की खोज और फिर विद्यार्थी एवं अभिभावक प्लान-ए के अतिरिक्त प्लान-बी हेतु भी मानसिक तौर पर तैयार हो जाते हैं. विकल्प की चर्चा एवं तलाश, तनाव उत्पन्न होने से पूर्व ही तनाव को समाप्त करने का एक बेहतरीन साधन है. असफलता पर चर्चा करना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना सफलता पर, क्योंकि पानी में उतरने से पहले गहराई का आंकलन आवश्यक है.
इंजीनियरिंग तथा मेडिकल के अतिरिक्त कई-कई क्षेत्र हैं जहां बेहतरीन भविष्य है, पद है,पैसा है, प्रतिष्ठा है. कानूनी-शिक्षा, पत्रकारिता, लेखन, सेल्स एंड ऑपरेशनल मैनेजमेंट, पर्यावरण, स्किल-डेवलपमेंट तथा प्रबंध-शिक्षा जैसे कई क्षेत्र हैं. उच्च शिक्षा के इन क्षेत्रों में कोटा को प्रयास करने होंगे.
जमीनी स्तर पर कार्य कर, कोटा को इन क्षेत्रों में उच्च-शिक्षा संस्थानों की येन-केन प्रकारेण स्थापना कर, कोटा में अध्यनरत विद्यार्थियों को विकल्पों की उपलब्धता प्रदान करनी होगी. आईआईटी संस्थानों में प्रवेश से विफल विद्यार्थी को यदि ये विकल्प कोटा द्वारा ही उपलब्ध करवा दिए जाएं तो उसे असफलता महसूस ही नहीं होगी.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
लेखक परिचयः देव शर्मा कोटा स्थित इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और फ़िज़िक्स के शिक्षक हैं. उन्होंने 90 के दशक के आरंभ में कोचिंग का चलन शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह शिक्षा संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं.
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