Bhilwara News: इंसान चाहे तो पत्थर को पिघलाकर संकट की घड़ी को अवसर में बदल सकता है. इन पंक्तियों को दो भाइयों पराक्रम सिंह-सुभाष चौधरी की जोड़ी ने सच साबित कर दिखाया, जो मेवाड़ के दशरथ मांझी बन गए. कोविड संक्रमण काल में शुरू हुई उनके संघर्ष की कहानी मौजूदा दौर में लोगों में आगे बढ़ने का उदाहरण बन रही है. मेवाड़ के दो भाइयों ने करीब 35 फीट ऊंची और 30 हेक्टेयर जमीन पर पहाड़ी काटकर कृत्रिम तालाब बनाया. जिस पहाड़ी को वैज्ञानिकों ने किसी फसल के लिए उपयुक्त नहीं माना था, उस पर फिलहाल 125 बीघा जमीन पर सफलतापूर्वक खेती की जा रही है.
कोविड के दौरान शुरू हुआ था सफर
यह सफर कोविड के दौरान शुरू हुआ जब सारे काम बंद थे, तब दोनों भाइयों ने भीलवाड़ा उदयपुर हाईवे पर गुरला गांव में 125 बीघा की पहाड़ियों पर फलदार पौधे लगाने का संकल्प लिया. शुरुआती दौर में पथरीले रास्ते से अपने खेत की आखिरी सीमा तक पहुंचना उनके लिए काफी मुश्किल था. आज 4 साल की कड़ी मेहनत के बाद करीब 125 बीघा का बगीचा आम, चीकू, शरीफा, आवा, नींबू और अंजीर से लहलहा रहा है. इतना ही नहीं, गुजरात का मशहूर केसर आम भी अब वहां पैदा होने लगा है. इसी कारण किसान सुभाष चौधरी और पराक्रम सिंह के बगीचे को उद्यान विभाग पायलट प्रोजेक्ट के रूप में पेश कर रहा है.
3 करोड़ लीटर पानी किया जाएगा इकट्ठा
अरावली की पहाड़ियों के बीच बनाया बगीचा
अरावली की दुर्गम पहाड़ियों में नवाचार कर भीलवाड़ा के प्रगतिशील किसान सुभाष चौधरी का खेत इस समय वैज्ञानिकों की पसंद बन गया है. उदयपुर रोड पर मुजरास टोल नाके के पास सुंदरपुरा स्थित पथरीली जमीन पर फार्म पॉड बनाकर उसमें केसर आम, चीकू, आंवला, अंजीर, सीताफल सहित कई पौधे लगाए है जो अब पेड़ बन गए हैं. एक समय कृषि वैज्ञानिकों ने इस जमीन को खेती के लिए अनुपयोगी घोषित कर दिया था.
ड्रिप सिस्टम लगाकर हो रही है खेती
उद्यान विभाग के उपनिदेशक राकेश माला ने बताया कि विभाग के प्रमुख शासन सचिव दिनेश कुमार ने इसे प्रदेश में मॉडल बताया था. फार्म पॉड के जरिए पूरी 30 हेक्टेयर जमीन पर ड्रिप सिस्टम लगाया गया है, जिससे कम पानी में विभिन्न फलदार पौधों की सिंचाई हो रही है.चार साल पहले लगाए गए ये पौधे अब पेड़ बन गए हैं और फल देने लगे हैं. इनसे आमदनी होने लगी है. प्रगतिशील किसान चौधरी ने बाजार में करीब 2.50 लाख रुपए के केसर आम बेचे हैं.
किस किस्म के कितने पौधे
किस किस्म के कितने पौधे 2 हैक्टेयर में सीताफल के 12 हजार पौधे लगा रखे है. |
किसान पारंपरिक खेती से क्या कर सकते हैं?
उद्यान विभाग के उपनिदेशक राकेश कुमार माला ने बताया कि भीलवाड़ा के आदर्श किसान भागचंद चौधरी ने लगभग सभी सरकारी योजनाओं से जुड़ने का काम किया है. मेवाड़ के किसान अपनी परंपरागत खेती के साथ-साथ बागवानी भी कर सकते हैं. आधुनिक तकनीक से खेती करने के लिए कई अलग-अलग सब्सिडी योजनाएं चल रही हैं. सरकार फॉर्म भरने पर 20 लाख रुपए तक की सब्सिडी देती है. जिसमें सरकार 5 हेक्टेयर में ड्रिप सिंचाई पर 75% तक सब्सिडी दे रही है. सोलर पंप लगाने पर 60% तक सब्सिडी मिल रही है. इन योजनाओं से जुड़कर किसान आधुनिक तरीके से खेती कर सकते हैं.
योजनाओं के अनुसार तय हुआ सफलता का सफर
किसान पराक्रम सिंह और योगेश चौधरी ने राज्य सरकार के उद्यानिकी विभाग की विभिन्न योजनाओं से जुड़कर काम करना शुरू किया. इसके तहत फलदार वृक्षों की सिंचाई के लिए दो सोलर सिस्टम लगाए गए हैं. इनसे खेत के तालाब में जमा बारिश के पानी से 7.5 एचपी के दो पंप लगाकर ड्रिप सिस्टम से सिंचाई की जा रही है. सोलर पंप से दिन में सिंचाई होती है. इससे बिजली पर निर्भरता खत्म हो गई है.