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पर्दे की दीवार तोड़कर राजस्थान की निर्मला भाटी बनी पहली इंटरनेशनल खो खो चैंपियन, मां बोली- 'सौ बेटों से बेहतर!'

निर्मला की कहानी यह बताती है कि कैसे खो खो जैसा पारंपरिक खेल आज भी भारत के ग्रामीण हृदयस्थलों में चुपचाप एक क्रांति ला रहा है. यह सिर्फ़ खेल नहीं है, बल्कि परंपरा से बदलाव की ओर बढ़ने वाला एक मजबूत कदम है, जहां बेटियां अब गर्व की मशाल थामे खड़ी हैं.

पर्दे की दीवार तोड़कर राजस्थान की निर्मला भाटी बनी पहली इंटरनेशनल खो खो चैंपियन, मां बोली- 'सौ बेटों से बेहतर!'
राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा से मुलाकात के दौरान ली गई निर्मला भाटी की तस्वीर. (फाइल फोटो)
Instagram@nirmala2375

Rajasthan News: इस साल दीपावली पर राजस्थान के पारेवड़ी गांव में एक खास जश्न मनाया जा रहा है. यह जश्न मिठाइयों या पटाखों का नहीं, बल्कि गर्व और सम्मान का है. गांव की एक बेटी ने सदियों पुरानी रूढ़ियों को तोड़ते हुए खो खो खेल में अंतर्राष्ट्रीय पहचान बनाई है, और अपने परिवार के लिए असली 'लक्ष्मी' बन गई है.

हम बात कर रहे हैं निर्मला भाटी की, जो राजस्थान की पहली अंतर्राष्ट्रीय खो खो चैंपियन (Rajasthan's First International Kho Kho Champion) हैं. हाल ही में हुए 2025 खो खो वर्ल्ड कप में उन्हें 'बेस्ट प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट' भी चुना गया. निर्मला की यह कामयाबी उस धीमी क्रांति की कहानी है जो आज भी राजस्थान के ग्रामीण और रूढ़िवादी इलाकों में हो रही है- जहां बेटियां अब खेल और शिक्षा के दम पर अपने समुदाय और परिवार को गर्व महसूस करा रही हैं.

'पर्दा' छोड़ने वाली बेटी ने दिलाई शोहरत

निर्मला के माता-पिता के लिए यह दिवाली हमेशा याद रहने वाली है. उनकी मां, गीता देवी, बताती हैं कि पहले उनके गांव के समाज में महिलाएं पर्दे में रहती थीं. लेकिन निर्मला की सफलता ने लोगों की सोच को बदलकर रख दिया. गीता देवी भावुक होकर कहती हैं, 'हमारी जिंदगी पूरी तरह बदल गई है. पहले परिवारों में सिर्फ बेटे ही नाम कमाते थे, लेकिन हमारी बेटी ने हमें ऐसी शोहरत दिलाई है, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी. अब समाज में बेटियों को देखने का नजरिया बदल गया है.' 

'निर्मल जैसी बेटियां 100 बेटों से बेहतर हैं'

उनकी आंखों में खुशी थी जब उन्होंने एक बड़े-बुजुर्ग की बात दोहराई, जिन्होंने कहा था, 'निर्मला जैसी बेटियां सौ बेटों से बेहतर हैं.' गीता देवी का सवाल था: 'इस दिवाली हमें इससे बड़ा तोहफा क्या मिल सकता है?'

पिताजी बोले: 'हमारी बेटी ही हमारी असली लक्ष्मी'

निर्मला के 70 वर्षीय पिता, ओम प्रकाश भाटी, गर्व से भरे हुए हैं. वे बताते हैं कि वह हर साल दीपावली पर विधि-विधान से लक्ष्मी पूजा करते हैं, लेकिन अब उनके लिए पूजा का अर्थ बदल गया है. ओम प्रकाश भाटी ने विनम्रता से कहा, 'हम दिवाली पर लक्ष्मी पूजा करते हैं. लेकिन हमारी बेटी ही हमारी असली लक्ष्मी है. उसने हमारे परिवार और पूरे गांव को गौरव दिलाया है, और हर कोई उस पर गर्व महसूस करता है.' वह आगे कहते हैं कि निर्मला की सफलता से गांव की दूसरी लड़कियों को भी हिम्मत मिली है. वे अब पर्दे की सीमाओं से बाहर निकलकर खेल और शिक्षा के क्षेत्र में बेहतर करने का सपना देख रही हैं.

शक से स्टारडम तक का सफर

निर्मला भाटी का अंतर्राष्ट्रीय चैंपियन बनने का सफर आसान नहीं था. राजस्थान के गांवों में अक्सर लड़कियों को खेलकूद के लिए घर से बाहर भेजने में झिझक महसूस की जाती है. निर्मला को भी शुरुआती शक और सवालों का सामना करना पड़ा होगा. लेकिन उनके माता-पिता ने समाज की बातों को दरकिनार करते हुए अपनी बेटी पर भरोसा किया. आज, निर्मला ने अपनी मेहनत और प्रदर्शन से न सिर्फ अपने परिवार को आर्थिक और सामाजिक मजबूती दी है, बल्कि पूरे राजस्थान को खो खो के नक्शे पर एक नई पहचान दिलाई है.

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