Major Mustafa: उदयपुर के रहने वाले मेजर मुस्तफा साल 2022 में वायुसेना के हेलीकॉप्टर क्रैश में शहीद हो गए थे. उनकी शहादत को याद करते हुए भारत सरकार ने मेजर मुस्तफा को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित किया है. सरकार की ओर से दिए गए इस सम्मान से परिवार की आंखें नम हैं. इस सम्मान के बाद मेजर मुस्तफा को याद कर लोगों की आंखें नम हो रही हैं. 2022 में दुनिया को अलविदा कहने से पहले वे अपने परिवार के साथ रहने की तैयारी में जुटे थे लेकिन शायद ये उनकी किस्मत में नहीं था. 2019 में उन्होंने एक घर बनवाया लेकिन वहां रहने से पहले ही 3 साल बाद हेलीकॉप्टर क्रैश में वे शहीद हो गए.
अक्टूबर 2022 में हेलीकॉप्टर क्रैश में हुए थे शहीद
मेजर मुस्तफा अपनी मां फातिमा के बेहद करीब थे. वह अक्सर अपनी मां से कहा करते थे कि, "मैं वो काम करूंगा जिसके लिए दुनिया मुझे याद रखेगी"...आखिरकार उन्होंने इसे सच कर दिखाया. देश की सेवा करते हुए वह अक्टूबर 2022 में देश के लिए शहीद हो गए. वह खुद तो शहीद हो गए लेकिन उन्होंने कई लोगों की जान बचाई, क्योंकि अगर उनका हेलीकॉप्टर क्रैश होने वाली जगह पर गिरता तो कई लोगों की जान जा सकती थी, जिससे बड़ा हादसा हो सकता था. मेजर चाहते तो हेलीकॉप्टर से कूदकर अपनी जान बचा सकते थे. लेकिन उन्होंने लोगों की जान बचाई और खुद की जान जोखिम में डालकर हेलीकॉप्टर को वहां से दूर ले जाकर क्रैश कर दिया, जिसमें उनकी और उनके साथी की जान चली गई. उनकी बहादुरी और पराक्रम को सलाम करते हुए भारत सरकार उन्हें 5 जुलाई को मरणोपरांत शौर्य चक्र से सम्मानित करेगी. यह सम्मान मुस्तफा की मां फातिमा, पिता जकीउद्दीन और बहन डॉ. अलिफिया मुर्तजा अली को रिसीव करेंगे.
मेजर मुस्तफा को था प्रकृति से लगाव
अपने बेटे की शहादत को सम्मान मिलते देख मां की आंखें नम हैं और सिर गर्व से ऊंचा है. बेटे को याद कर उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. बेटे को याद करते हुए वो कहती हैं कि मुस्तफा को प्रकृति से बेहद प्यार था. वो पहाड़ों के पास एक घर बनाना चाहता था, जहां उसका पूरा परिवार प्राकृतिक नजारे देख सके. इसके लिए उसने उदयपुर के पास बेदला में एक घर भी बनवाया था. मुस्तफा ने उस घर की पहली मंजिल पर अपने लिए एक खास कमरा बनवाया था. और बड़े ही चाव से उसने अपने पूरे कमरे को इस तरह डिजाइन करवाया कि उसमें उसके जीवन की पूरी कहानी समाहित हो सके. उसने कमरे की एक दीवार इस तरह बनवाई कि बचपन से लेकर एयरफोर्स तक के उसके सफर की कहानी बयां हो सके. ये कमरा उसके लिए खास था. कमरा बनकर तैयार हो गया था लेकिन मुस्तफा उसमें एक दिन भी नहीं रह सका.
नए घर में शिफ्ट होने से पहले ही आई शहीद होने की खबर
मेजर मुस्तफा की मां को आज भी अपने बेटे की बहुत याद आती है. उनके दिल में आज भी एक टीस है कि इस कमरे में मेडल वाली दीवार खाली है. मां कहती हैं कि वो अपने बेटे की ख्वाहिश पूरी करना चाहती हैं और इस दीवार को उसकी ख्वाहिश के मुताबिक सजाना चाहती हैं. बस इंतज़ार है उसके वापस लौटने का और अपने सपनों का कमरा पाने का जिसे वो छोड़कर आया है.
कौन थे मेजर मुस्तफा
मेजर मुस्तफा उदयपुर जिले के खेरोदा गांव में रहते थे. वे शहर से करीब 45 किलोमीटर दूर से पढ़ाई करने आते थे. मुस्तफा की शुरुआती पढ़ाई गांव में ही हुई. बाद में उन्होंने कुछ समय भिंडर में पढ़ाई की. 2009 में उन्होंने उदयपुर के सेंट पॉल स्कूल में दाखिला लिया था. तब वे 9वीं कक्षा में पढ़ रहे थे.
एक साल की ट्रेनिंग के बाद 11 जून 2016 को उनकी नियुक्ति भारतीय सेना में लेफ्टिनेंट के पद पर हुई. 2018 में उनका पायलट बनने का सपना पूरा हुआ. उनका आखिरी ट्रांसफर जुलाई 2022 में हुआ 21 अक्टूबर 2022 को उन्हें सह-पायलट मेजर विकास भांभू के साथ एक खुफिया मिशन को अंजाम देना था. हेलीकॉप्टर में तकनीकी खराबी के कारण आग लग गई. उन्होंने जलते हुए विमान को आबादी से दूर जंगल की ओर मोड़ दिया. इसके बाद हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया और वे शहीद हो गए.
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