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This Article is From Sep 15, 2023

मिसालः बचपन के दोस्त से मिलने के लिए साइकिल से तय की 830 किमी की यात्रा

उत्तर प्रदेश के एटा शहर में रह रहे चंद्रमोहन ने बचपन के मित्र हीरालाल की याद आने पर उनसे मिलने के लिए 13 दिन का साइकिल का सफर किया, जिससे उन्होंने दोस्ती की महत्वपूर्ण मिसाल प्रस्तुत की है.

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मिसालः बचपन के दोस्त से मिलने के लिए साइकिल से तय की 830 किमी की यात्रा

1987 में फिल्म खुदगर्ज का एक गीत बहुत मशहूर हुआ था जिसके बोल थे,

"कुछ भी नहीं रहता दुनिया में लोगों, रह जाती है दोस्ती. 
ज़िंदगी का नाम दोस्ती
दोस्ती का नाम ज़िंदगी
ज़िंदगी का नाम दोस्ती
दोस्ती का नाम ज़िंदगी"

इस फिल्मी गीत को उत्तर प्रदेश के एटा नगर में रहने वाले चंद्रमोहन त्रिपाठी ने सार्थक करके दिखाया है.

करीब 50 साल पहले बांसवाड़ा छोड़कर एटा शहर में अपने परिवार के साथ बस चुके त्रिपाठी को अपने बचपन के मित्र बांसवाड़ा जिले के ठीकरिया गांव में रहने वाले हीरालाल बुनकर की याद आई तो वह सब कुछ भूल बैठे और एटा शहर से साइकिल से 13 दिन का सफर तय कर करीब 830 किलोमीटर दूर बांसवाड़ा पहुंचे. घंटों तक गांव में अपने बचपन के मित्र को तलाशा. जब उनकी तलाश पूरी हुई तो दोनों मित्र काफी समय तक एक-दूसरे को देखकर रोते रहे. मित्रता की इस अनूठी कहानी को देखकर गांव के लोग भी हतप्रभ रह गए.

उत्तर प्रदेश के एटा शहर में रह रहे चंद्रमोहन त्रिपाठी ने बताया कि उनके पिता बांसवाड़ा में 1970 में एक मिल में काम करते थे. उसके बाद उनका परिवार यूपी के एटा शहर में रहने चला गया और वह अपने मित्र हीरालाल बुनकर से बिछड़ गए. सालों तक परिवार का जीवनयापन करने के बावजूद भी उनके जेहन में कहीं ना कहीं बचपन के मित्र हीरालाल बुनकर की यादें ताजा थी.

कुछ दिन पूर्व चंद्रमोहन त्रिपाठी को अपने बचपन के मित्र की खूब याद आई तो उन्होंने अपने परिवार के लोगों से मित्र से लने की इच्छा जाहिर की, लेकिन बढ़ती उम्र और मित्र का कोई अता-पता नहीं होने से परिजनों ने उनको बांसवाड़ा जाने से मना कर दिया. त्रिपाठी के मन में कहीं न कहीं मित्र से मिलने की इच्छा फिर भी जीवित थी तो उन्होंने परिवार के किसी भी सदस्य को बताएं बिना करीब 13 दिन पूर्व एटा से अपने मित्र से मिलने का सफर शुरू किया.

इस दौरान वह रास्ते में किसी गांव में, मंदिर में और अन्य जगहों पर विश्राम करते हुए बांसवाड़ा पहुंचे तथा यहां पर उन्होंने ठीकरिया गांव में अपने मित्र की खोज शुरू की. पहले तो ग्रामीणों ने बताया कि इस गांव में तो कई हीरालाल है ऐसे में कौन से आपके मित्र हैं यह कैसे पता चली, लेकिन किसी तरह से त्रिपाठी अपने पुराने मित्र हीरालाल बुनकर के घर जा पहुंचे और जैसे ही उन्होंने अपने मित्र को बताया कि मैं तुम्हारा बचपन का मित्र हूं तो हीरालाल बुनकर हक्के-बक्के रह गए और एक दूसरे से गले मिलकर रोने लगे.

बचपन के मित्र से मिलकर जहां हीरालाल बुनकर की आंखों में आंसू थे तो वही मित्र से मिलने की तड़प में अपने शहर से बांसवाड़ा पहुंचे त्रिपाठी की आंखों से भी आंसू रुक नहीं रहे थे. वहीं इस कृष्ण सुदामा की जोड़ी को देखकर आसपास के लोग भी हतप्रभ नजर आए और उन्होंने कहा कि खून के रिश्तों से भी बड़ा दोस्ती का रिश्ता होता है जो इन मित्रों ने सार्थक करके दिखाया.

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