
Ajmer Blackmail Case: 1992 के बहुचर्चित अजमेर ब्लैकमेल कांड में आजीवन कारावास की सजा काट रहे नफीस चिश्ती, इकबाल भाटी, सलीम चिश्ती और सैयद जमीर हुसैन को राजस्थान हाईकोर्ट ने बड़ी राहत दी है. हाईकोर्ट ने उनकी सजा को अपील के निस्तारण तक स्थगित कर जमानत पर रिहा करने के आदेश दिए. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह और जस्टिस भुवन गोयल की खंडपीठ ने यह आदेश सजा स्थगन प्रार्थना पत्र पर सुनवाई के बाद जारी किया है.
'मालिक जो करेगा, अच्छा करेगा'
जमानत पर रिहा होने के बाद अजमेर सेंट्रल जेल के बाहर मंगलवार शाम को मुख्य आरोपी नफीस चिश्ती ने कहा कि मुझे उच्च न्यायालय पर पहले भी भरोसा था और आगे भी रहेगा… मालिक जो करेगा, अच्छा करेगा, लेकिन जो मैं कहूंगा, वह आप छापेंगे नहीं.
अदालत ने चारों के तर्क मानते हुए जमानत पर रिहा करने के आदेश जारी किया. वकील के अनुसार, जमीर हुसैन और इकबाल भाटी का नाम न तो एफआईआर में था, न पीड़िताओं के बयान में और न ही कोई ठोस सबूत उनके खिलाफ था. जमीर हुसैन 1984 से अमेरिकी नागरिक हैं और ऐंटीसिपेटरी बेल लेकर सरेंडर किया था. इकबाल भाटी को गिरफ्तारी के दो माह बाद बेल मिल गई थी. नफीस चिश्ती और सलीम चिश्ती का भी नाम एफआईआर या तस्वीरों में नहीं था.
हाईकोर्ट ने घटाई थी सजा
पूर्व ट्रायल में चारों को दोषी ठहराया गया था, लेकिन हाईकोर्ट ने सजा को आजीवन कारावास से घटाकर 10 साल कर दिया था. अब तक नफीस चिश्ती 9 साल 2 महीने, सलीम चिश्ती 8 साल 11 महीने, इकबाल भाटी 1 साल 2 महीने और जमीर हुसैन 11 महीने जेल में बिता चुके हैं.
चूंकि वे लंबा समय सजा काट चुके हैं और अपील के निपटारे में वक्त लगेगा, अदालत ने जमानत देने का फैसला किया. 1992 के ब्लैकमेल कांड में कुल छह आरोपी थे, जिनमें से अब चार को जमानत मिल चुकी है. हाईकोर्ट का ताजा आदेश इस 33 साल पुराने मामले में एक अहम मोड़ माना जा रहा है.
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