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राजस्थान में 9 नए जिले खत्म करने पर अशोक गहलोत बोले- यह राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण

गहलोत ने कहा कि 'हम भाजपा सरकार द्वारा उठाए गए इस अदूरदर्शी और राजनीतिक प्रतिशोध के कारण लिए गए निर्णय की निंदा करते हैं'.

राजस्थान में 9 नए जिले खत्म करने पर अशोक गहलोत बोले- यह राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण
अशोक गहलोत

Ashok Gehlot Statement on District Abolished:  राजस्थान सरकार ने बड़ा ऐलान करने हुए राजस्थान के 9 नए जिलों और 3 संभागों को खत्म कर दिया है. इस फैसले का विपक्ष ने जमकर विरोध किया है. राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भी इस मामले को लेकर एक पोस्ट के जरिए अपना विरोध जताया है. साथ ही उन्होंने अपनी तरफ से सभी मुख्य बिंदुओं को लेकर अपनी बात रखते हुए कहा कि 'हमारी सरकार द्वारा बनाए गए नए जिलों में से 9 जिलों को निरस्त करने का भाजपा सरकार का निर्णय अविवेकशीलता और केवल राजनीतिक प्रतिशोध का उदाहरण है'.

'राजस्थान से छोटा फिर भी MP में 53 जिले'

हमारी सरकार के दौरान जिलों का पुनर्गठन करने के लिए वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रामलुभाया की अध्यक्षता में 21 मार्च 2022 को समिति बनाई गई थी, जिसको दर्जनों जिलों के प्रतिवेदन प्राप्त हुए. इन्हीं प्रतिवेदनों का परीक्षण कर समिति ने अपनी रिपोर्ट दी जिसके आधार पर नए जिले बनाने का निर्णय किया गया. 

मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद राजस्थान देश का सबसे बड़ा राज्य बन गया. लेकिन प्रशासनिक इकाइयों का पुनर्गठन उस अनुपात में नहीं हुआ था. राजस्थान से छोटा होने के बाद भी मध्य प्रदेश में 53 जिले हैं.

'छोटी प्रशासनिक इकाई से लाभ'

नए जिलों के गठन से पहले राजस्थान में हर जिले की औसत आबाादी 35.42 लाख और क्षेत्रफल 12,147 वर्ग किलोमीटर था. हालांकि त्रिपुरा राज्य का क्षेत्रफल 10,492 वर्ग किलोमीटर, गोवा राज्य का क्षेत्रफल 3,702 वर्ग किलोमीटर, दिल्ली केन्द्र शासित प्रदेश का क्षेत्रफल 1,484 वर्ग किलोमीटर है. जबकि नए जिले बनने के बाद जिलों की औसत आबादी 15.35 लाख और क्षेत्रफल 5268 वर्ग किलोमीटर हो गया था. 

जिले की आबादी और क्षेत्र कम होने से शासन-प्रशासन की पहुंच बेहतर होती है और सुविधाओं और योजनाओं की बेहतर डिलीवरी सुनिश्चित हो पाती है. छोटी प्रशासनिक इकाई होने पर जनता की समस्याओं का निस्तारण भी शीघ्रता से होता है.

'जिलों को छोटा होने का तर्क देकर रद्द करना गलत'

भाजपा सरकार द्वारा जिन जिलों को छोटा होने का तर्क देकर रद्द किया है वो भी अनुचित है. जिले का आकार वहां की भौगोलिक परिस्थितियों के आधार पर होता है.

हमारे पड़ोसी राज्यों के जिले जैसे गुजरात के डांग (2 लाख 29 हजार), पोरबंदर (5 लाख 85 हजार) एवं नर्बदा (5 लाख 91 हजार), हरियाणा के पंचकुला (5 लाख 59 हजार) एवं चरखी दादरी (लगभग 5 लाख 1 हजार), पंजाब के मलेरकोटला (लगभग 4 लाख 30 हजार), बरनाला(5 लाख 96 हजार) एवं फतेहगढ़ साहिब (6 लाख) जैसे कम आबादी वाले जिले हैं. 

कम आबादी वाले जिलों में सरकार की प्लानिंग की सफलता भी ज्यादा होती है. छोटे जिलों में कानून व्यवस्था की स्थिति को बहाल रखना भी आसान होता है, क्योंकि वहां पुलिस की पहुंच अधिक होती है.

प्रतापगढ़ में परिसीमन के बाद भी केवल 2 विधानसभा क्षेत्र

परिस्थितियों के आधार पर जिलों की आबादी में भी अंतर होना स्वभाविक है. जैसे- उत्तर प्रदेश में प्रयागराज जिले की आबादी करीब 60 लाख है, जबकि चित्रकूट जिले की आबादी 10 लाख है. लेकिन सरकार के लिए प्रशासनिक दृष्टि से छोटे जिले ही बेहतर लगते हैं.

सरकार की तरफ से एक तर्क यह दिया जा रहा है कि एक जिले में कम से कम 3 विधानसभा क्षेत्र होने चाहिए जबकि भाजपा द्वारा 2007 में बनाए गए प्रतापगढ़ में परिसीमन के बावजूद भी केवल दो विधानसभा क्षेत्र हैं.

'हमने DM, SP समेत तमाम अधिकारियों की नियुक्ति भी दी'

सरकार द्वारा जहां कम दूरी का तर्क दिया जा रहा है, वह भी आश्चर्यजनक है. क्योंकि डीग की भरतपुर से दूरी केवल 38 किमी है, जिसे रखा गया है. लेकिन सांचौर से जालोर की दूरी 135 किमी और अनूपगढ़ से गंगानगर की दूरी 125 किमी होने के बावजूद उन जिलों को रद्द कर दिया गया.

हमारी सरकार ने केवल जिलों की घोषणा ही नहीं की बल्कि वहां कलेक्टर, एसपी समेत तमाम जिला स्तरीय अधिकारियों की नियुक्ति दी. साथ ही हर जिले को संसाधनों के लिए बजट भी दिया.

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