Barmer granite: थार के रेगिस्तान में भले ही पानी की कमी हो, लेकिन यहां खनिज काफी मात्रा में है. बाड़मेर जिले की रेतीले थार की कोख को कुदरत ने बेशकीमती खनिजों से भर दिया. इसी कुदरत की अनमोल सौगात है मांगता इलाके में फैली ग्रेनाइट की खदानें, जहां से निकले पत्थर न सिर्फ मजबूत घर बनाते हैं, बल्कि हजारों परिवारों की रोजी-रोटी भी चलाते हैं. बाड़मेर-अहमदाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे मांगता गांव के आसपास सड़क किनारे ग्रेनाइट के पत्थरों के ढेर लगे नजर आते हैं. यह कोई साधारण बाजार नहीं, बल्कि एक जीवंत मंडी है. जहां बड़े-बड़े ग्रेनाइट के टुकड़े लोगों के पक्के आशियाने का आधार बन रहे हैं.
मंडी पर टिकी है 2 हजार परिवारों की आमदनी
आमतौर पर ग्रेनाइट का चूल्हा-चौका बनाना भी लोगों का सपना होता है, लेकिन थार के बाशिंदे इसी ग्रेनाइट से अपने मजबूत घर बना रहे हैं. मांगता के अलावा बाछड़ाऊ, 22 मील, धोरीमन्ना, बूढ़िया, सनावड़ा, बामणोर, दूधिया, खुमे की बेरी, सूरते की बेरी, मेहलू और शोभाला जैसे दर्जनों गांवों में ये पत्थरों की मंडियां सजी रहती हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 1500 से 2000 परिवार इन मंडियों से अपनी गुजर-बसर कर रहे हैं.
खास है बाड़मेर का ग्रेनाइट
पहले जहां लोग खुद खदानों से पत्थर निकालकर हाथों से तोड़ते थे, अब मशीनों का सहारा लिया जा रहा है. यह ग्रेनाइट बाड़मेर जिले का सबसे उच्च गुणवत्ता वाला माना जाता है – इतना मजबूत और नुकीला कि बारिश हो या थार का तेज तूफान, पानी एक बूंद भी नहीं रिसता. यही वजह है कि दूर-दूर से लोग यहां आकर ये पत्थर खरीदते हैं और अपने सपनों का पक्का घर बनाते हैं.
थार की इस रेत में छिपा ग्रेनाइट न सिर्फ प्रकृति का तोहफा है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी बन चुका है. कुदरत ने पानी तो नहीं दिया, लेकिन ये 'नूर' जरूर बख्शा जो अंधेरे में भी चमक बिखेर रहा है.
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