
Govind Singh Dotasra: राजस्थान कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और लक्ष्मणगढ़ से विधायक गोविंद सिंह डोटासरा ने बड़ा फैसला लिया है. गोविंद सिंह डोटासरा ने राजस्थान विधानसभा की प्राक्कलन समिति 'ख' के सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया है. इसकी जानकारी उन्होंने खुद एक्स अकाउंट पर पोस्ट लिखकर दी है. उन्होंने कहा, 'राजस्थान विधानसभा की प्राक्कलन समिति ‘ख' के सदस्य पद से तत्काल प्रभाव से इस्तीफा देता हूं.' इसके साथ ही उन्होंने कहा, प्रजातंत्र में संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति की निष्पक्षता सर्वोच्च होती है, लेकिन जब निर्णय, पद की गरिमा के विपरीत और पक्षपातपूर्ण प्रतीत हों तो यह लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए घातक है.
निष्पक्षता के सवाल पर चुप रहना जनादेश का अपमान
गोविंद सिंह डोटासरा ने कहा कि राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष के हालिया निर्णय संविधान की मूल आत्मा के विरूद्ध एवं पूर्णतः पक्षपातपूर्ण प्रवृत्तियों को उजागर करते हैं. लोकतंत्र के मंदिर में जब निष्पक्षता सवालों के घेरे में हो, तब चुप रहना जनादेश का अपमान होता है. इसलिए इसका हम पुरजोर विरोध करते हैं और मैं प्राक्कलन समिति के सदस्य पद से त्यागपत्र देता हूं.
नरेंद्र बुड़ानिया को 15 दिन में ही हटा दिया गया
डोटासरा ने कहा, 'समितियां सिर्फ सत्ता पक्ष की मोहर नहीं होतीं, इनमें संतुलित संवाद और निगरानी की भूमिका अहम होती है. कांग्रेस विधायक नरेंद्र बुड़ानिया को हाल ही में विशेषाधिकार समिति का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन 15 दिन के भीतर उन्हें हटा दिया गया. विधानसभा अध्यक्ष का यह रवैया स्तब्ध करने वाला है, क्योंकि संभवत: ऐसी समितियों के अध्यक्ष न्यूनतम 1 वर्ष के लिए होते हैं.'
कंवरलाल मीणा को 3 साल की सजा के बाद भी विधायक बरकरार
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष ने कहा,'यह कोई पहला मौका नहीं है जब पक्षपात निर्णय देखने को मिला हो. हाल ही में हाईकोर्ट ने अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा की 3 साल की सज़ा को बरकरार रखा. नियमों के मुताबिक 2 साल से अधिक की सजा होते ही विधायक एवं सांसद जनप्रतिनिधि स्वत: निलंबित माने जाते हैं. लेकिन इस मामले में विपक्ष द्वारा विधानसभा अध्यक्ष को ज्ञापन सौंपने के बाद भी कंवरलाल मीणा की सदस्यता को रद्द नहीं किया गया. विधानसभा अध्यक्ष की यह मनमानी माननीय कोर्ट और संविधान की खुली अवहेलना है.'
'ऐसे अनेक निर्णय हैं जो विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव में काम करने एवं निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं. माननीय अध्यक्ष से अपेक्षा है कि संविधान की शपथ को सर्वोच्च मानकर विधिमान्य न्यायसंगत निर्णय करें जिससे आसन के प्रति आस्था और गहरी बनें.'
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