Holi 2025: भरतपुर के गांठौली गांव का गुलाल कुंड, जहां मिलता है राधा-कृष्ण की 'होली लीला' का साक्षात प्रमाण

Rajasthan Holi Celebration: 13 मार्च की रात 10:35 बजे शुभ मुहूर्त पर होलिका दहन होगा. इससे अगले दिन होली खेली जाएगी. चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से शुरू हो रही है जो 15 मार्च को दोपहर 02 बजकर 33 मिनट तक रहेगी.

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गुला कुंड में होली के दौरान की तस्वीर.

Rajasthan News: हमारे देश में होली (Holi) के कई रंग हैं. इस त्योहार से जुड़ी कई मान्यताएं हैं. राजस्थान के भरतपुर (Bharatpur) जिले के डीग बॉर्डर से सटे गांव गांठौली का गुलाल कुंड (Gulal Kund, Gantholi) भी ऐसी ही कहानी कहता है. ये कुंड कृष्ण राधा की होली लीला का साक्षात प्रमाण है. स्थानीय लोग दावा करते हैं कि भगवान कृष्ण और राधा ने अपनी सखियों संग होली इसी कुंड में खेली थी. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस गांव का नाम गांठौली रखे जाने के पीछे की कहानी भी होली लीला से जुड़ी है.

ऐसे गांठौली पड़ा गांव का नाम

गांठौली वासी कहते हैं कि जब राधा और श्रीकृष्ण सखियों संग होली खेलकर थक गए, तो सखियों ने ठिठोली की. दोनों सिंहासन पर विराजे थे. यहीं पर श्रीकृष्ण के अंगवस्त्र और राधा की चुनरी से गांठ बांध दी गई. बस वो गांठ इसके नाम का सबब बनी. गांव का नाम पड़ गया गांठौली. दोनों ने जिस कुंड में जी भरकर अबीर गुलाल उड़ाया, उसका नाम ही गुलाल कुंड पड़ गया. कहा ये भी जाता है कि राधा रानी और भगवान श्री कृष्ण ने इसी कुंड में अपने होली में भीगे कपड़े भी धोए थे.

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'बेटी मायके में होली नहीं खेलती'

गुलाल कुंड की होली लीला में शामिल होने विभिन्न राज्यों और शहरों से वैष्णव आते हैं. होली की आभा वैसी ही होती है जैसे बरसाने और वृंदावन में. यहां के लोग मानते हैं कि होली तो युगल जोड़े ने यहीं खेली. इससे जुड़ा दिलचस्प तथ्य साझा करते हैं. कहते हैं बरसाना राधाजी का मायका था. कोई भी बेटी मायके में होली नहीं खेलती. इसलिए युगल ने गांठौली के गुलाल कुंड पर आकर होली खेली थी. 

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होली के दिन होंगे ये कार्यक्रम

हर बार की तरह इस बार भी भक्त गण जुटने लगे हैं. राजस्थान सरकार ने भी कुछ तैयारी की है. हर साल पारंपरिक खेलों जैसे रस्साकस्सी, कबड्डी, मटका दौड़ समेत कई प्रतियोगिताएं कराती है. होली के दिन दोपहर 12 बजे डीग महल में मेंहदी, रंगोली, चित्रकला और मूंछ प्रतियोगिता होगी, जिससे पारंपरिक कलाओं को मंच मिलेगा. शाम 4 बजे डीग महल के रंगीन फव्वारे जीवंत होंगे और ब्रज की लोकसंस्कृति को समर्पित विभिन्न प्रस्तुतियां जैसे कच्छी घोड़ी, मयूर नृत्य, कालबेलिया नृत्य, ढोला वादन और बहरूपिया कला प्रदर्शित की जाएगी.

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