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This Article is From Sep 11, 2023

ज्योति मिर्धा भाजपा में शामिल हुईं तो उनको मुबारक हो, हमें कोई तकलीफ नहीं है: डोटासरा

ज्योति मिर्धा पेशे से चिकित्सक हैं. उन्होंने 2009 में नागौर से लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव हार गईं.

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ज्योति मिर्धा भाजपा में शामिल हुईं तो उनको मुबारक हो, हमें कोई तकलीफ नहीं है: डोटासरा
गोविंद सिंह डोटासरा ( फाइल फोटो )
जयपुर:

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने नागौर की पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा के भाजपा में शामिल होने से पार्टी पर असर पड़ने वाले प्रभावों को खारिज कर दिया.उन्होंने कहा कि वह कई साल से वो पार्टी के कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो रही थीं. डोटासरा ने आगे कहा कि कांग्रेस नागौर ज़िले समेत पूरे राजस्थान में मज़बूत है और राज्य में दोबारा चुनाव जीतकर अपनी सरकार बनाएगी.

मालूम हो कि नागौर से कांग्रेस सांसद रहीं ज्योति मिर्धा ने सोमवार को नई दिल्ली स्थित भाजपा मुख्यालय में भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. भाजपा की राजस्थान इकाई के प्रमुख सीपी जोशी व प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह ने भाजपा में शामिल होने के बाद मिर्धा का पार्टी में स्वागत किया.

उनका मन तो काफी पहले ही बदल चुका था : डोटासरा 

प्रदेश में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. मिर्धा के कांग्रेस छोड़ने पर राजस्थान कांग्रेस पर पड़ने वाले असर के बारे में पूछे जाने पर डोटासरा ने कहा,‘‘ज्योति मिर्धा जी पिछले साढ़े चार साल से कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में नहीं देखी जा रही थीं तो स्वाभाविक है कि उनका मन कोई आज नहीं बदला है. उनका मन पिछले काफी दिनों से बदला हुआ था.''

उन्होंने ने कहा, ‘‘उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पीहर पक्ष से कांग्रेस की रही है और ससुराल पक्ष से भाजपा की रही है.  वे बड़े औद्योगिक घराने से संबंध रखती हैं. कोई दबाव होगा या उनका मन बदला होगा, मैं कुछ नहीं कह सकता.'' आगे जोड़ते हुए डोटासरा ने कहा,‘‘ मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैं तो इतना कह सकता हूं कि तीन साल से मैं प्रदेश अध्यक्ष हूं. कभी भी कांग्रेस के किसी भी कार्यक्रम में ज्योति मिर्धा जी नहीं आईं. इसलिए वे भाजपा में शामिल हुईं तो उनको मुबारक हो. हमें कोई तकलीफ नहीं है.''

उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि पीहर पक्ष से कांग्रेस की रही है और ससुराल पक्ष से भाजपा की रही है. वे बड़े औद्योगिक घराने से संबंध रखती हैं. कोई दबाव होगा या उनका मन बदला होगा, मैं कुछ नहीं कह सकता.

गोविंद सिंह डोटासरा

अध्यक्ष, राजस्थान कांग्रेस कमेटी

पार्टी में कार्यकर्ताओं की अनदेखी के मिर्धा के आरोप पर डोटासरा ने कहा कि तीन साल से वह अध्यक्ष हैं, लेकिन एक बार भी मिर्धा ने किसी समस्या को लेकर उन्हें फोन नहीं किया. उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि किस आधार पर वह ऐसा कह रही हैं, ये तो वो ही जानें.

कुछ पूर्व नौकरशाहों के भाजपा में शामिल होने पर डोटासरा ने बिना किसी का नाम लिए कहा कि जो लोग भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग का डर सता रहा होगा. वहीं,आपदा प्रबंधन राहत मंत्री एवं कांग्रेस चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष गोविंद राम मेघवाल ने कहा कि मिर्धा डूबते जहाज पर सवार हो गई हैं. 

मेघवाल ने कहा, केंद्रीय मंत्री और बीकानेर सांसद अर्जुन राम मेघवाल को भी 60 साल की उम्र तक राजनीति की 'एबीसीडी' नहीं आती थी और फिर वो राजनीति में आ गए और अब प्रधानमंत्री की तारीफ करते रहते हैं.

राजनीति किसी की मोहताज नहीं है:  खाचर‍ियावास

इससे पहले, राजस्थान के खाद्य मंत्री प्रताप सिंह खाचर‍ियावास ने ज्योति मिर्धा के कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने पर कहा कि राजनीति किसी की मोहताज नहीं है और इसमें फैसला जनता करती है. उन्होंने दावा किया कि राज्य में कांग्रेस के पक्ष में माहौल है. खाचरियावास ने आगे कहा, ‘‘राजनीति में सबको अपना अधिकार है.चुनाव आ रहा है, कोई भाजपा, तो कोई कांग्रेस में जा रहा है.यह सब देखने को मिलेगा.''

बता दें, राजस्थान का मिर्धा परिवार दशकों तक राजस्थान के मारवाड़ की राजनीति की धुरी रहा है. ज्योति मिर्धा के दादा नाथूराम मिर्धा की कांग्रेस और राज्य की राजनीति में अच्छी पकड़ थी. नाथूराम सांसद और विधायक भी रहे थे.

नागौर में असरदार रहा है मिर्धा परिवार 

नाथूराम की पोती ज्योति मिर्धा पेशे से चिकित्सक हैं. उन्होंने 2009 में नागौर से लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव हार गईं. नागौर जाट बहुल इलाका है. पिछले कुछ वर्षों में इस इलाके में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) ने वहां अपनी पकड़ बनाने की कोशिश की है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने नागौर सीट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की घटक रही आरएलपी के लिए छोड़ दी थी.

आरएलपी के संयोजक हनुमान बेनीवाल इसी सीट से विजयी रहे. हनुमान बेनीवाल से कांग्रेस प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को हार का सामना करना पड़ा. था बेनीवाल बाद में तीन कृषि कानूनों के मुद्दे पर राजग से अलग हो गए थे.

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