Adhai Din Ka Jhopra Mosque: राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित 11वीं शताब्दी में निर्मित 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' मस्जिद एक बार सुर्खियों में है. जैन मुनि सुनील सागर जी महराज ने हाल में अढ़ाई दिन का झोपड़ा का निरीक्षण करने पहुंचे और उसे जैन मंदिर करार दिया है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण वाले इस स्मारक ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा' को लेकर जैन भिक्षुओं के दावे के बाद चर्चा का दौर शुरू हो गया.
गौरतलब है यह पहली बार है जब किसी जैन मुनि ने अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद के निरीक्षण के लिए अजमेर पहुंचे थे. निरीक्षण के दौरान मस्जिद में हिंदू देवी-देवता और भारतीय संस्कृति के प्रमाण मिलने का दावा किया गया. 800 से पहले निर्मित अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद को लेकर कई दावे किए गए हैं.
सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने जैन संतों को "बिना कपड़ों के" कहा था
अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद के निरीक्षण करने पहुंचे जैन मुनि सागर जी महराज के दावे पर प्रतिक्रिया देते हुए अजमेर दरगाह में खादिमों की संस्था अंजुमन के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने जैन संतों को "बिना कपड़ों के" कहा था. इस पर विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए सैयद सरवर चिश्ती को मांगी मांगने के लिए कहा.
अढाई दिन का झोपड़ा का सच जानने के लिए ASI को लिखा जाएगा पत्र
मामले पर विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने कहा कि ‘‘सरवर चिश्ती ने जैन संतों के शरीर पर टिप्पणी कर भारतीय सनातन संस्कृति का अपमान किया है. उन्हें सनातन संस्कृति से माफी मांगनी चाहिए.'' देवनानी ने कहा कि अढाई दिन का झोंपड़ा की सच्चाई जानने के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) को पत्र लिखा जाएगा.
बीजेपी सांसद भी कर चुके है दावा, कभी था संस्कृत विद्यालय
अजमेर स्थित ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा' के विषय में बीजेपी सांसद रामचरण बोहरा ने दावा करते हुए कहा था कि अढाई दिन के झोपड़े को बनाने के लिए वहां मौजूद संस्कृत विद्यालय को तोड़ा गया था. उन्होंने कहा कि अब वो दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से यहां संस्कृत के मंत्र गूंजेंगे. इतिहासकार मानते हैं कि मस्जिद से पहले वहां एक संस्कृत कॉलेज हुआ करता था.
अजमेर की पुरानी मस्जिदों में से एक है अढ़ाई दिन का झोपड़ा
इतिहासकारों के मुताबिक इंडो-इस्लामिक वास्तुकला में निर्मित अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद शुरुआत में एक भारतीय इमारत थी, जिसे सल्तनत राजवंश के दौरान इस्लामी संरचना में बदल दिया गया था. इस मस्जिद परिसर में हिंदू, इस्लामी और जैन वास्तुकला की मिलाजुली झलक देखने को मिलती है.
1192 ईस्वी में अजमेर में कुतुबद्दीन ऐबक ने कराया था निर्माण
इतिहासकारों के मुताबिक 1192 ईस्वी में अफगानी सेनापति मोहम्मद गोरी के कहने पर सल्तनत वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा अजमेर स्थित एक दिन का झोपड़ा मस्जिद का निर्माण करवाया था.दावा किया जाता है कि जिस जगह पर एक दिन का झोपड़ा मस्जिद खड़ा है, उस जगह पहले एक बहुत बड़ा संस्कृत विद्यालय और मंदिर बना था, जिन्हें बाद में तोड़कर मस्जिद में बदल दिया गया था.
अढ़ाई दिन का झोपड़ा के 6वीं शताब्दी में निर्मित होने का दावा
जैन मुनि सुनील सागर महराज से पहले कई लोगों द्वारा दावा किया गया कि अढ़ाई दिन का झोंपड़ा असल में एक जैन मंदिर है, जिसे 6 वीं शताब्दी में सेठ वीरमदेव काला द्वारा बनवाया गया था.हालाकि अन्य शिलालेखों से पता चलता है कि यह चौहान राजवंश के दौरान एक संस्कृत कॉलेज हुआ करता था. बाद में मुहम्मद गोरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर पर कब्जा कर इसकी संरचना को एक मस्जिद में बदलवा दिय, जिसे तब से मस्जिद के रूप में ही जाना जाता है.
800 साल पुराना है एक दिन का झोपड़ा मस्जिद का इतिहास
विवादों में घिरी अजमेर स्थित एक झोपड़ा मस्जिद लगभग 800 साल पुरानी है. कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पहले ये काफी विशालकाय संस्कृत कॉलेज हुआ करता था, जहां संस्कृत में ही सारे आधुनिक विषय पढ़ाए जाते थे. इसके बाद अफगान के शासक मोहम्मद गोरी जब घूमते हुए यहां से निकला.उसी के आदेश पर गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने संस्कृत कॉलेज को हटाकर उसकी जगह मस्जिद बनवा दी.
हेरात के अबू बक्र ने एक दिन का झोपड़ा मस्जिद को बनाया?
कुछ इतिहासकार अजमेर स्थित विवादित एक दिन का झोपड़ा को लेकर दावा करते हैं कि इसका निर्माण हेरात के अबू बक्र ने कराया,जिसमें हिंदू राजमिस्त्री और मजदूरों ने अलंकृत संरचना का निर्माण किया और भारतीय वास्तुशिल्प विशेषताओं को बरकरार रखा. सल्तनत शासन के दौरान दिल्ली के अगले उत्तराधिकारी और दामाद शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने इसका सौंदर्यीकरण कराया.
रोचक है अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद का नामकरण का इतिहास
अजमेर स्थित ‘अढ़ाई दिन का झोंपड़ा' का इतिहास भी बेहद रोचक माना जाता है. यह कई लोग जानने की कोशिश करते रहते हैं कि इसका नाम इतना क्यों अलग है. लोककथाओं के अनुसार, मुहम्मद गोरी ने अजमेर से गुजरते जाते समय पहले से मौजूद इस इमारत को देखा था. उन्होंने कुतुबुद्दीन ऐबक को 60 घंटों के भीतर संरचना को मस्जिद में बदलने का आदेश दिया, जिसमें केवल ढाई दिन लगे, जिसकी वजह से इस मस्जिद का नाम अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पड़ा.
अयोध्या, काशी, मथुरा के साथ जुड़ा एक दिन का झोपड़ा का नाम
उल्लेखनीय है देश में मंदिर-मस्जिद को लेकर चल रहे विवादों में अजमेर स्थित अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद पर हिंदूवादी संगठन अपना दावा करते रहे हैं. अयोध्या राम मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा शाही ईदगाह के बाद राजस्थान के अजमेर में स्थि अढ़ाई दिन का झोंपड़ा पर भी विवाद काफी समय से चल रहा है.
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