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Jaisalmer Government Museum News: जैसलमेर में यूं तो लाखों सैलानी घूमने-फिरने आते हैं, लेकिन यहां का राजकीय संग्रहालय मॉर्डन लुक में आने के बाद भी सैलानियों को आकर्षित नहीं कर पा रहा है. इस संग्रहालय को मॉर्डन लुक देने के लिए डेढ़ करोड़ रुपये खर्च किए गए, फिर भी कमीशन के खेल में पिछड़ रहा है. सरकार पैसे तो खर्च कर रही है लेकिन उसका उपयोग करने के लिए मैनेजमेंट नहीं है. काम पूरा होने के बाद उसे दोबारा सैलानियों के लिए खोल दिया गया, लेकिन सैलानियों को आकर्षित करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए. पहले भी इस संग्रहालय को देखने सैलानी नहीं आ रहें थे और अभी भी बहुत ही कम संख्या में सैलानी पहुंच रहे हैं.
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जैसलमेर के ऐतिहासिक जानकारी के लिए...
स्वर्णनगरी की गिनती संपन्न जिलों में होती है, स्वर्णनगरी में कलात्मक सुंदरता के साथ-साथ समृद्ध इतिहास भी मौजूद है. जैसाण के चमकते रेगिस्तान से लेकर धार्मिक आस्था, इतिहास, संस्कृति और सभ्यता से जुड़े कई स्थल हैं. इसके साक्ष्य जैसलमेर के एक मात्र राजकीय संग्रहालय में संरक्षित कर रखे गए हैं, जिससे जैसलमेर आने वाला हर एक पर्यटक संग्रहालय में पहुंचकर सबसे पहले यहां के प्राचीन इतिहास और पौराणिक वस्तुओं और स्थलों की जानकारी से दो-चार हो सके. लेकिन हकीकत कुछ ओर ही है.
पर्यटकों को ऐसे किया जा रहा भ्रमित
राजकीय संग्रहालय का दुर्भाग्य है कि यहां तक पर्यटक पहुंच ही नहीं पाते है. इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि गाइड और टैक्सी चालक पर्यटकों को भ्रमित कर देते हैं. क्योंकि सरकारी संग्रहालय से गाइड और टैक्सी चालकों को कमीशन नहीं मिलता है. पिछले 15 दिसंबर से 15 फरवरी में लाखों की तादात में सैलानी जैसलमेर पहुंचे, लेकिन सरकारी म्यूजियम का आंकड़ा सैकड़ों में ही सिमट कर रह गया. केवल 1202 पर्यटकों ने ही इस संग्रहालय का विजिट किया. शहर में कई निजी संग्रहालय और हवेलियां है, जहां पर्यटकों की भीड़ उमड़ती है और सरकारी म्यूजियम और सरकारी टिकट वाले पर्यटन स्थल वीरान रह जाते है, यह पूरा खेल कमीशन का ही है.
जैसलमेर में इतनी भीड़ के बावजूद संग्रहालय सूना
2017 में सरकार ने जैसलमेर के राजकीय संग्रहालय का कायाकल्प कर दिया. इसमें डेढ़ करोड़ रुपये सरकार ने खर्च किए. लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजकीय संग्रहालय किस हद तक पर्यटकों से दूर होता जा रहा है. जहां जैसलमेर में हर जगह भीड़ ही भीड़ दिख रही है, चाहे पर्यटन स्थल हो या फिर बाजार, होटल व रेस्टोरेंट. वहीं दूसरी तरफ राजकीय संग्रहालय सूना नजर आ रहा है.
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पर्यटन व्यवसाय से जुड़े रविंद्र श्रीपत कहते है कि राजकीय संग्रहालय टूर ऑपरेटर्स व तमाम ट्रेवल कम्पनी की आइटंरीज में यह संग्रहालय जुड़ा नहीं है, जितने भी पर्यटक पहुंचते है वो खुद से वहां जा रहे है. जरूरत है कि इस म्यूजियम को जयपुर के अल्बर्ट हॉल म्यूजियम की तर्ज पर तैयार करना चाहिए. साथ ही प्रचार प्रसार भी करना जरूरी है.
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