Rajasthan News: राजस्थान के जालौर शहर में बुधवार सुबह एक गहरा सन्नाटा पसर गया. शहर के सबसे प्रिय और अभिन्न सदस्य, हाथी 'मोनू' ने सामंतीपुरा रोड स्थित शनिधाम के पीछे अंतिम सांस ली. मोनू की मौत की खबर फैलते ही सिद्ध गोपाल के परिवार के साथ-साथ पूरे शहर में शोक की लहर दौड़ गई, और सैकड़ों लोगों की आंखें नम हो गईं. मोनू सिर्फ एक हाथी नहीं था, बल्कि वह पिछले 15 सालों से जालौर की सामाजिक और धार्मिक पहचान का हिस्सा था. उसकी अचानक मौत ने जिला प्रशासन और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
'15 साल का अटूट रिश्ता'
मोनू और उसके मालिक सिद्ध गोपाल (मूल रूप से छतरपुर, मध्य प्रदेश के) का जालौर से 15 साल पुराना रिश्ता था. इन वर्षों में मोनू सिद्ध गोपाल के परिवार की आजीविका का मुख्य आधार था. वह शहर की हर छोटी-बड़ी शोभायात्रा, जुलूस और धार्मिक आयोजनों का मुख्य आकर्षण होता था. शहर के बच्चे रोज मोनू को देखने आते थे और उसके साथ एक भावनात्मक जुड़ाव महसूस करते थे.
कई दिनों से खराब थी तबीयत
मोनू के सेवक अजय गोस्वामी ने बताया कि वह पिछले कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहा था, जिसकी नियमित देखभाल की जा रही थी. हालांकि, बुधवार सुबह करीब 4 बजे उसने अचानक दम तोड़ दिया. सुबह जैसे ही मोनू की मृत्यु की खबर शहर में फैली, सामंतीपुरा रोड पर लोगों का तांता लगना शुरू हो गया. महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग मोनू के अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे. लोगों ने फूलमालाओं से मोनू को सजाया और उसकी यादों को साझा किया. लोगों ने याद किया कि कैसे वह हर शोभायात्रा में सबसे आगे चलता था और बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाता था.
पोस्टमार्टम के बाद टांके तक नहीं लगाए?
मोनू की मृत्यु के बाद की प्रक्रिया में जिला प्रशासन और वन विभाग की घोर लापरवाही सामने आई है, जिस पर स्थानीय लोग और एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट्स सवाल उठा रहे हैं. हाथी की मौत के बाद प्रशासन और वन विभाग की टीम ने मौके पर पहुंचकर उसका पोस्टमार्टम कराया. स्थानीय लोगों का आरोप है कि पोस्टमार्टम के बाद शव पर टांके (Stitches) तक नहीं लगाए गए. पोस्टमार्टम के बाद शव को दफनाने को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया. इस विवाद के कारण करीब चार घंटे तक स्थिति तनावपूर्ण बनी रही. अंततः, 'मोनू' के क्षत-विक्षत शव को सिरमंदिर वन क्षेत्र में दफनाया गया.
इस घटना ने जालौर में शोक के साथ-साथ रोष की भावना भी पैदा कर दी है. लोग चाहते हैं कि मोनू, जो शहर का हिस्सा था, उसकी मृत्यु के बाद सम्मानजनक अंतिम संस्कार सुनिश्चित किया जाना चाहिए था.
ये भी पढ़ें:- जयपुर के SMS स्टेडियम में बनने जा रहा इतिहास, आज 50 हजार लोग एक साथ गाएंगे वंदे मातरम्