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जानें गणगौर पूजा का महत्व और इतिहास, क्या है इस त्यौहार को मानने की मान्यता

मारवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला गणगौर पर्व का त्यौहार चैत्र शुक्ला तीज गुरुवार को धूमधाम से मनाया जाएगा.

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जानें गणगौर पूजा का महत्व और इतिहास, क्या है इस त्यौहार को मानने की मान्यता

Gangaur Puja 2024: देश भर में चुनावी माहौल के बीच राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर में गणगौर पर्व की धूम देखी जा रही है. राजशाही शासन से पूर्व से चली आ रही गणगौर पर्व का त्योहार आज भी जोधपुर में कायम है और भीतरी शहर में न सिर्फ विवाहित महिलाएं बल्कि कुंवारी कन्याएं भी गणगौर के इस पर्व को पूरे हर्षोल्लाह और उत्साह के साथ मनाती है. ऐसी मान्यता है कि जहां विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए गणगौर पर्व पर व्रत और विशेष पूजा करती है तो वही कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की कामना के लिए गणगौर पर्व पर व्रत रखने के साथ ही इसर गणगौर की पूजा करती है.शहर भर में गणगौर पूजन के गीतों की गूंज के साथ ही विवाहित महिलाएं घुड़ला परंपरा का निर्वहन करती भी देखी जा रही है.

सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है गणगौर

मारवाड़ की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला गणगौर पर्व का त्यौहार चैत्र शुक्ला तीज गुरुवार को धूमधाम से मनाया जाएगा. इस दिन होली के दूसरे दिन से प्रारंभ हुआ गवर पूजन का समापन किया जाएगा. इससे पहले तीज की पूर्व संध्या पर शहर भर में तीजणियों ने लोटियों के मेले की धूम रही गवर पूजने वाली तीजणियां विभिन्न क्षेत्रों से पूरे एक पखवाड़े बाद गवर माता को पानी पिलाने के लिए विभिन्न धातुओं के पात्र लेकर पवित्र जलाशयों के तट से लोटियों को जल से भरने के बाद समूह के रूप में शीश पर गाजे-बाजों संग गवर पूजन स्थल पर गवर माता को पानी पिलाने की रस्म पूरी की राजस्थान की सांस्कृतिक राजधानी जोधपुर अपने इसी संस्कृत रंग से पूरे विश्व में अपनी पौराणिक कला और सांस्कृतिक को लेकर पहचान जाता है.

गणगौर पर्व पर आयोजित होने वाली विभिन्न कार्यक्रम की जानकारी देते हुए गणगौर पर समिति की सदस्य छवि ने बताया कि यह हमारी मारवाड़ का कलर है जिसमें गणगौर का त्यौहार मनाया जाता है. होली दहन से इसकी शुरुआत होती है और 16 दिनों तक विवाहित महिलाएं और कन्याएं गवर माता की पूजा करती है और 16 दिन बाद चैत्र शुक्ल तीज को गणगौर पर्व ऊपर इसका उद्यापन की रस्म के साथ ही समापन भी होता है इस पर्व में सभी महिलाएं सामूहिक रूप से पूजन करने के साथ ही गणगौर के गीत और नृत्य भी करती है और इन 16 दिनों तक अलग-अलग महिलाएं अपने घर पर विशेष भोग प्रसादी का भी आयोजन करती है.

घुड़ले खाँ का सिर धड़ से किया था अलग तब से मारवाड़ में चल रही यह परंपरा

गणगौर पूजन के आठवें दिन तीजणियों की ओर से घुड़ला पूजन किया जाता है शीतलाष्टमी पर्व पर तीजणियां ढोल-थाली के साथ पवित्र मिट्टी से निर्मित घुड़ला लाकर उसको पूजती है. जिसके 15 दिवस तक पार्वती (गौरी) पूजन करने वाली तीजणियां छिद्रयुक्त घुड़ले में आत्म दर्शन के प्रतीक दीप जलाकर उसे गवर पूजन स्थल पर स्थापित करती है. जिसके बाद गणगौर तीज तक अपने परिचितों के आवास पर घुड़ला लेजाकर मां पार्वती से जुड़े गणगौर गीत गाये जाते है. बताया जाता है की वर्षों पूर्व गवर पूजन के दौरान तीजणियों को उठाकर ले जाने वाले घुड़ले खां का पीछा करते हुए राव सातल ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया था. उसी घुड़ले खां के सिर को लेकर आक्रोशित तीजणियां घर-घर घूमी थी मारवाड़ में गणगौर पूजन के दौरान चैत्र वदी अष्टमी के दिन इतिहास आज भी स्मृति में है.

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