Sheetla Mata Temple: पाली जिले में शीतला माता मंदिर है, जो जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर दूर गांव भाटूंड में बना हुआ है. यह बाली विधानसभा का क्षेत्र है. शीतला माता मंदिर प्रांगण में मंदिर के गर्भगृह में शीतला माता की प्रतिमा के आगे ही एक ओखली बनी हुई है. ओखली का ढक्कन साल में दो बार खोला जाता है, ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा और शीतला सप्तमी पर. श्रद्धालु कुएं से घड़े भरकर क्रमबद्ध रूप से ओखली में पानी डालते हैं. लेकिन, ओखली में डाले जाने वाला पानी कहा जाता है, ये आज भी रहस्य ही बना हुआ है. जबकि, ओखली का गड्ढा मात्र 1 फिट ही है. वो भी नीचे से पक्की बनी हुई है, उसके बाद भी ओखली में हजारों लीटर पानी समा जाता है.
ग्रामीणा निभा रहे हैं पुरानी परंपरा
मंदिर में बनी ओखली को लेकर जब NDTV की टीम भाटूण्ड गांव पहुंची तो ग्रामीणों ने प्रतिमा को लेकर पौराणिक कथा सुनाई. ग्रामीणों की मान्यता है कि गांव में बाबरा नाम का एक राक्षस था. उसने शादी के फेरे पूरे होने के पहले ही दुल्हन की हत्या करके खून से अपनी प्यास बुझाता था. इससे परेशान होकर ग्रामीणों ने शीतला माता की पूजा कर माता को प्रसन्न किया, जिसके बाद शीतला माता ने राक्षस का वध कर दिया, वध करने के बाद देवी राक्षस के ऊपर पैर रख कर वहीं विराजमान हो गईं. देवी ने कहा कि अब साल में दो बार इस राक्षस को पानी पिलाना होगा. तब से ग्रामीण साल में दो बार राक्षस को जल पिलाते आ रहे हैं, वहीं अपनी परपंरा का पूरा गांव निर्वहन कर रहा है.
घड़े से ओखल में भरते हैं पानी
साल में दो बार गांव में मेले सा माहौल नजर आता है, ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा और शीतला सप्तमी को मंदिर के गर्भ गृह में मौजूद ओखली का ढक्कन खोला जाता है, वहीं उस दिन गांव के प्रत्येक घर की महिलाएं और बालिकाएं अपने घरों से खाली घड़ा लेकर मंदिर पहुंचती हैं. पास ही बनी बावड़ी से अपने-अपने घड़ों में पानी भरकर मंदिर में प्रवेश कर उस ओखली में पानी डाल उसे भरने का प्रयास करती है.
ओखली में हजारों लीटर घड़ों से पानी भरकर डालते हैं
मात्र एक फुट गहरी इस ओखली ( गड्ढा), जिसमें से भी पानी कहीं बाहर जाने का रास्ता नहीं. उस ओखली (गड्ढे ) में हजारों लीटर घड़ों से पानी भरकर डालने पर भी नहीं भरता है, अंत में पुजारी उस ओखली की पूजा-अर्चना कर दूध के चंद छीटों से ओखली भर जाती है, वहीं, जिसके बाद ओखली का ढक्कन वापस बंद कर दिया जाता है.
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