
Rajasthan News: रेगिस्तान का 'जहाज' कहे जाने वाला ऊंट, राजस्थान की पहचान है. लेकिन पिछले ढाई दशक से धोरों की शान रहा राज्य पशु 'ऊंट' का आंकड़ा तेजी से घट रहा है. बावजूद इसके पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर में अब तक इसकी सबसे ज्यादा तादाद बची हुई है. अगर जैसलमेर के तर्ज पर प्रदेश भर में ऊंटों का संरक्षण किया जाए तो एक बार फिर राजस्थान की शान 'ऊंट' को बचाया जा सकता है. प्रदेशभर के आंकड़ों की बात करें तो 1997 में 6.69 लाख ऊंट थे. जिसके बाद 2019 में 20वीं पशुधन गणना में मात्र 2.12 लाख ऊंट रह गए. 21वीं गणना के आंकड़े अब तक आए नहीं हैं. लेकिन ऊंट पालकों का कहना है कि अब यह संख्या 1.75 लाख तक पहुंच सकती है.

जैसलमेर में सबसे ज्यादा ऊंट
राजस्थान में सबसे ज्यादा ऊंट जैसलमेर की धरा पर बचे हैं. करीब 50 हजार ऊंट गांवों में ऊंट पालकों के पास हैं तो वहीं करीब 10 हजार से अधिक ऊंट पर्यटन व्यवसाय को संबल प्रदान कर रहे हैं, जो कि एडवेंचर कैमल सफारी के माध्यम से पर्यटकों की पहली पसंद बने हुए हैं. यही कारण है कि जैसलमेर में अजा भी ऊंटों की तादात बची हुई है. जैसलमेर के देगराय, सांवता, अचला, मेघा, बिजोता, धोलिया, खेतोलाई, सांकड़ा, हरबा, तोगा सहित फतेहगढ़ व म्याजलार क्षेत्र के अन्य कई गांवों में ग्रामीणों के रोजमर्रा के जीवन का साथी ऊंट बना हुआ है. साथ ही जैसलमेर के सम सेंड ड्यूंस पर कैमल सफारी, खूहडी के धोरो पर ऊंट के जहाज की सेर व रेस होती है. वहीं डांगरी ड्यूंस पर भी अब कैमल रिलेटेड एडवेंचर एक्टिविटीज काफी बढ़ रही है, जिसके चलते पर्यटन के क्षेत्र में भी करीब 10 हजार ऊंट जुड़े हुए हैं.
ऊंटों की तादाद कम होने के कारण
राजस्थान में ऊंटों की तादात कम होने के कई कारण हैं. उनमें से एक कारण इसे राज्य पशु घोषित करने के साथ-साथ इसकी बिक्री पर रोक भी है, जिसके चलते ऊंट पालकों की आमदनी नहीं हो पा रही है. वहीं कैमल मिल्क को स्टोर करने व इसके प्रोडेक्ट के लिए उचित मार्केट नहीं है. अगर ऊंट से आमदनी होगी तो ऊंट का संरक्षण हो पाएगा. जैसलमेर में कैमल प्रोडेक्ट का चलन भी है और पर्यटन से जुड़ाव भी है. लेकिन अभी भी जैसलमेर साहित प्रदेश भर में कैमल प्रोडेक्ट व कैमल एडवेंचर टूरिजम की अपार संभावनाए हैं, जिससे ऊंट का संरक्षण होगा व लोगों को रोजगार भी मिलेगा.

मिस्टर डेजर्ट ने क्या कहा?
ऊंट संरक्षण के लिए प्रचार प्रसार करने वाले 'मिस्टर डेजर्ट' रह चुके विजय बल्लानी बताते हैं कि जैसलमेर में ऊंट की तादाद बरकरार रहने के कई कारण हैं. ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले वाशिंदो के जीवन का ऊंट हमसफर बन चुका है, जिसके चलते ऊंट के संरक्षण के लिए वो लोग प्रयासरत हैं. आरंग क्षेत्र की बात करें तो वहां हजारों की तादाद में ऊंट आपको घूमते हुए नजर आ जाएंगे. कैमल मिल्क प्रोडक्ट पर काम हो रहा है, यह भी एक मुख्य वजह है. बलानी कहते हैं कि जहां अर्थव्यवस्था को बल मिलता है तो वहां पशु का संरक्षण खुद ही हो जाता है.

जीव प्रेमी व ऊंट-ओरण संरक्षण पर काम करने वाले पार्थ जगाणी बताते हैं कि जैसलमेर में ऊंटों की संख्या लंबे संमय स स्थिर बनी हुई है. जैसलमेर एक अच्छा मॉडल बनाकर सामने आया और ऐसे प्रयास पूरे राजस्थान भर में होने चाहिए. इसमें कैमल डिजीज खोली जाए और ऊंटों को टूरिज्म से जोड़ा जाए तो ऊंटो की संख्या में बढ़ोतरी हो सकती है. उन्होंने कहा कि अब अगर जैसलमेर के तर्ज पर ऊंटो का संरक्षण नहीं हुआ तो राजस्थान में ऊंटों का अस्तित्व पर्यटन विभाग के लोगों तक सिमटकर रह जाएगा. या फिर हम इन्हें केवल किस्से, कहानियों व तस्वीरों में देख पाएंगे. जरूरत है कि सरकार के साथ मिलकर प्रशासन, पर्यटन विभाग व राजस्थान के पशु पालक ऊंटो को बचाने के लिए प्रयास करे, ताकि राजस्थान की शान के कहे जाने वाले राज्य पशु ऊंट को बचाया जा सके.
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