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This Article is From Oct 01, 2023

NDTV Rajasthan Conclave: 'हेल्थ के मामले में राजस्थान का गोल्डन युग चल रहा है', NDTV के मंच पर बोले सुधीर भंडारी

रविवार को जयपुर में आयोजित एनडीटीवी राजस्थान कॉन्क्लेव के पहले सत्र में हेल्थ सेक्टर पर एक्सपर्ट से बातचीत की गई. 

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NDTV Rajasthan Conclave: 'हेल्थ के मामले में राजस्थान का गोल्डन युग चल रहा है', NDTV के मंच पर बोले सुधीर भंडारी

राजस्थान को 2030 तक अग्रणी राज्य बनाने के लिए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने 'राजस्थान मिशन 2030' शुरू किया है. इसके तहत प्रदेश की जनता से सुझाव मांगे गए हैं ताकि लोगों की जरूरत को ध्यान में रखते हुए आगामी नीतियां तय की जा सकें. गहलोत सरकार की इस महत्वकांक्षी स्कीम पर एनडीटीवी राजस्थान प्रदेश के अलग-अलग जिलों में कॉन्क्लेव का आयोजन कर रहा है, जिसमें सरकार के मंत्री के साथ-साथ अलग-अलग विषय के एक्सपर्ट शामिल हो रहे हैं. रविवार को जयपुर में एनडीटीवी राजस्थान कॉन्क्लेव के पहले सत्र में हेल्थ सेक्टर पर एक्सपर्ट से बातचीत की गई. 

'विदेशों में भी नहीं मिल रहीं ऐसी सुविधाएं'

इस दौरान जब एक्सपर्ट्स से पूछा गया कि राजस्थान किस तरह से हेल्थ पॉलिसी में पॉयनर बन पाया है और मिशन 2023 के लिए आप किस तरह के मॉडल को एक्सपेक्ट कर रहे हैं. इस पर प्रोफेसर सुधीर भंडारी ने जवाब देते हुए कहा, 'हर टर्म में सीएम अशोक गहलोत का स्वास्थ्य सेक्टर के प्रति कॉन्ट्रिब्यूशन बढ़ता चला गया है. आज राजस्थान हेल्थ के मामले में एक मॉडल स्टेट बन गया है. सबसे पहले टर्म में सीएम गहलोत ने फ्री मेडिकेशन शुरू किया गया था, वो आम जनता के लिए सबसे बड़ा लाभ था. सभी को इससे काफी राहत मिली थी. इसके बाद मुख्यमंत्री दवा योजना और मुख्यमंत्री निशुल्क जांच योजना लेकर आए. लेकिन कुछ समय पहले लॉन्च हुई चिरंजीवी योजना ने पूरे हेल्थ सिस्टम में रिवॉल्यूशन ला दिया है. मुझे ऐसा लग रहा है कि ये दुनिया की सबसे बेहतरीन स्कीम है. इस तरह की हेल्थ सिक्योरिटी जो आपको चिरंजीवी योजना के तहत मिली है, ये अद्वितीय है. विदेशों में भी ऐसी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं. इस योजना के कारण सीएम का जो सपना है 'निरोगी राजस्थान' का, ये हर उनके टेन्योर में बढ़ता ही चला गया है.'

महामारी के दौरान राजस्थान ने क्या सीखा?

कोविड का पूरा प्रोटोकोल सीएम गहलोत के द्वारा निर्देशित था. जब पहली बार मार्च 2020 में कोविड के मरीज आए थे तो हमनें इनोवेटिव के तौर पर हाईड्रोक्सिक क्लोरोफिन नामक दवाई शुरू की. इससे हमें सक्सेस मिली. शुरुआत में सभी कोविड मरीज ठीक हो गए. इसके बाद सीएम ने टेकओवर किया. उन्होंने पूरे कोविड के दौरान 500 से ज्यादा वर्चुअल मीटिंग की. हम रेमडेसिवीर के सानिध्य से मिला. सीएम ने अपनी पहल पर हमें अनलिमिटेड रेमडेसिवीर उपलब्ध कराया. कम से कम समय में जितनी टॉप की मेडिकल सुविधाएं उपलब्ध कराई जा सकती थीं, उन्होंने की. सेकेंड वेव के वक्त भी जब हमारे पास दवाईयां कम पड़ने लगी थीं, तब सीएम ने दूसरे राज्यों में प्लेन भेजकर वहां से दवाईयों मंगवाई थीं. बेस्ट इंन्फ्रास्ट्रक्चर हमें मिला, बेस्ट लीडरशीप हमें मिली. और आज मैं ये कह सकता हूं कि हमारा कोविड मैनेजमेंट देश में ही नहीं, वर्ल्ड में सबसे ज्यादा सहारा गया. इसका सबसे बड़ा उदाहरण हमें सेकेंड वेव के वक्त ही देखने को मिला था, जब देश में सबसे ज्यादा डेथ रेट थी, उस वक्त राजस्थान में सबसे नीचे था. 

मिशन 2030 के लिए क्या मॉडल होना चाहिए?

राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंस के डायरेक्टर ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा कि किसी भी महामारी की जो व्यू रचना होती है उसे हम तीन लेवल पर मैनेज करते हैं. इसमें सबसे पहले इन्फ्रास्ट्रक्चर, दूसरा डॉक्टर या मैनपॉवर, तीसरा होता है फाइनेंसियल मैनेजमेंट. इन तीनों लेवल पर बेहतर तरह से काम करने के कारण ही राजस्थान मॉडल को नेशनल और इंटरनेशनल लेवल पर जगह मिली. उस वक्त हम आधा घंटे के अंदर ट्रीटमेंट कंप्लीट कर दिया करते थे. RUHS के अंदर हमनें कलर कोडिंग के जरिए ट्रेंड किया. वॉर्ड बॉय और गार्ड तक को हमनें फस्ट एड देना सिखाया, ताकि एमरजेंसी के वक्त वो किसी भी मरीज की मदद कर सकें. ऑक्सीजन की कमी को भी हमनें कंट्रोल किया. बेड कैपेसिटी भी हमनें 2000 तक बढ़ा दी थी. 

हेल्थ पैरामीटर पर राजस्थान इस वक्त कहां खड़ा है?

UNICEF से जुड़े डॉ अनिल अग्रवाल ने इस सवाल का जवाब देते हुए कहा, पिछले कुछ वर्ष में राजस्थान को बीमार राज्य वाली कैटेगरी वाले राज्य में रखा जाता था. लेकिन जिस तेजी के साथ राजस्थान में पिछले के कुछ वर्षों में प्रगति हुई है वो वास्तव में सराहनीय है. अगर मैं आपको कुछ उदाहरण देना चाहूं तो राजस्थान इम्यूनाइजेशन कवर पहले देश की कवरेज से 14 परसेंट कम हुआ करता था, लेकिन 2020 में हुए लेटेस्ट सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार, राजस्थान नेशनल कवरेज से 4 परसेंट आगे है. इसी तरह इंस्टीट्यूशनल डिलीवरी एक समय में 70% भी एक सपना लगता था. लेकिन आज ये 90 परसेंट पर है. ये नेशनल एवरेज से बहुत ज्यादा है. वहीं पहले 7 दिनों में होने वाली मृत्य दर उसमें जो प्रगति की गति है वो 'वन ऑफ द बेस्ट' है. इस तरह से पिछले कुछ वर्षों में परिवर्तन आया है. राजस्थान के साथ चैलेंज है कि ये सबसे बड़ा राज्य है. यहां रेगिस्तान भी है, यहां पहाड़ भी हैं, यहां ट्राइबल भी हैं, यहां डूंगरियां भी हैं, जहां सभी चीजें उपलब्ध कराना काफी चैलेंजिंग है. जो कि राजस्थान ने बड़ा मुकाम हासिल हुआ है. पहले हम बाड़मेर में जाया करते थे तो पूरे जिले में 35-40 डॉक्टर मिलते थे, अब इतने ब्लॉक में मिलते हैं. पहले 4-5 पीएचसी खाली मिलती थीं, लेकिन अब एक ही पीएचसी में दो-दो डॉक्टर मिलते हैं. मैं इसे गोल्डन ऐरा करना चाहूंगा हेल्थ का.

'खुशी बेबी' से लोगों तक कैसे मदद पहुंची?

इस सवाल का जवाब देते हुए खुशी बेबी ऐप के सह संस्थापक मोहम्मद शाहनवाज ने बताया कि फ्रंट लाइन वर्कर्स पेपर्स पर ज्यादा काम करते हैं. मल्टीपल हैंडस पर डेटा डिफर करता था. उसके बाद ऐप्स आ गए. ऐसे में किसी भी हेल्थ वर्कर्स के लिए उसके अंदर कितनी आबादी को वो सर्व कर रहा है, उनको कैसे ट्रेक करना है, ये सभी कुछ पेपर्स पर करना या मल्टीपल ऐप्स पर करना बहुत मुश्किल काम हुआ करता था. अक्सर ऐसा होता था कि जो काम हम कर रहे हैं वो भी हम नहीं दिखा पाते थे. अंडर रिपोर्टिंग इश्यू भी होते थे. इन्हीं सब समस्याओं को ध्यान में रखते हुए हमनें 'वन स्टॉप सॉल्यूशन' पर काम किया. डिजिटल प्लेटफॉर्म हो, लेकिन सभी हेल्थ प्रोग्राम्स के लिए एक ही एप्लीकेशन हो. इस सोच के साथ हमनें इस पर काम किया, और 'निरोगी राजस्थान' प्रोग्राम के तहत हमनें कोविड के वक्त 'मिशन लिजा' का इस्तेमाल किया ताकि प्रदेश की 1.5 करोड़ जनता की हेल्थ को मॉनिटर किया जा सके. आज की डेट में 4 करोड़ 20 लाख लोगों का हेल्थ डेटा इस प्लेटफॉर्म पर है. 70 हजार फ्रंटलाइन वर्कर्स इसे इस्तेमाल कर रहे हैं. मिशन 2030 के लिए हमारा मकसद सबकुछ पेपरलेस करना है. यूजर का डेटे का उनके पास एक्सेस हो. दूसरा- सेंट्रल और स्टेट के एप्लीकेशन को इंटीग्रेट करना है, और तीसरा सबसे जरूरी, सभी फ्रंट लाइन वर्कर्स को पेपर से डिजिटल पर शिफ्ट करना है.

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