
Khinvsar By-election: खींवसर विधानसभा उपचुनाव के नतीजों से जाटलैंड की राजनीति की दिशा भी तय होगी. चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी, कांग्रेस और आरएलपी ने जाट समाज के वोट बैंक को साधने की भरपूर कोशिश की. वहीं, सबसे बड़ी चुनौती आरएलपी के सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) के सामने है. उनकी पत्नी कनिका बेनीवाल के मैदान में उतरने से ना सिर्फ पार्टी, बल्कि बेनीवाल के परिवार की प्रतिष्ठा भी दांव पर है. नागौर सांसद चुने जाने के बाद मौजूदा स्थिति में बेनीवाल की पार्टी से एक भी विधानसभा सदस्य नहीं है. ऐसे में खींवसर की हार का असर उनकी पार्टी पर भी होगा.
चुनाव प्रचार के दौरान बेनीवाल के कही थी बड़ी बात
नागौर सांसद चुनाव प्रचार के दौरान वोट की अपील करते हुए कह चुके हैं, 'यदि हम यह चुनाव हार गए तो आरएलपी का एक भी सदस्य विधानसभा में नहीं होगा और लोग कहेंगे आरएलपी साफ हो गई.' दूसरी ओर, उनका खेल बिगाड़ने के लिए कभी उन्हीं के खास रहे रेवंत राम डांगा ने भी पूरा जोर लगाया. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी डॉ. रतन चौधरी के मैदान में आने से मुकाबला त्रिकोणीय बन गया था.
पिछले चुनाव में रेवंतराम ने बेनीवाल को दी थी कड़ी टक्कर
खींवसर को गढ़ बना चुके हनुमान बेनीवाल ने वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी का गठन किया था. उन दिनों उसके साथ रेवंत राम डांगा भी थे. डांगा तीन बार सरपंच रह चुके हैं और उनकी पत्नी वर्तमान में मूंडवा पंचायत समिति की प्रधान हैं, आरएलपी ने हाल ही में उन्हें निष्कासित कर भी दिया. साल 2023 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले रेवंत राम डांगा आरएलपी छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. साल 2023 में बीजेपी की ओर से मैदान में उतरने के बाद डांगा ने बेनीवाल को कड़ी टक्कर दी. बेनीवाल जीत जरूर गए, लेकिन अंतर महज 2059 वोटों का ही रहा. अब रेवंतराम डांगा कनिका बेनीवाल को चुनाव हराकर पहली बार सदन पहुंचने की उम्मीद कर रहे हैं.
पारपंरिक सीट बचाने की चुनौती, 47 साल पुराना है परिवार का नाता
हनुमान बेनीवाल राजनीतिक घराने से आते हैं और उनकी यह विरासत 47 साल पुरानी है. बेनीवाल के पिता रामदेव बेनीवाल दो बार विधायक रहे हैं. 1977 में रामदेव बेनीवाल ने मुंडावा सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीता और बाद में 1985 में वो लोकदल से विधायक रहे. 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट को खींवसर विधानसभा सीट बना दिया गया और बेनीवाल भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीत कर पहले बार विधानसभा पहुंचे थे.
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