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कचरा बिनने वाला बच्चा बना सॉफ्टवेयर इंजीनियर, 6 साल की उम्र में छोड़ा घर... अब 15 साल बाद लौटा

6 साल की उम्र में कोटा के सातल खेड़ी गांव से लापता हुआ मेघराज 15 साल बाद जब 21 साल की उम्र में सॉफ्टवेयर इंजीनियर बनकर परिवार के लोगों से मिला.

कचरा बिनने वाला बच्चा बना सॉफ्टवेयर इंजीनियर, 6 साल की उम्र में छोड़ा घर... अब 15 साल बाद लौटा
15 साल बाद घर वापस लौटा युवक

Kota Boy Return After 15 Years: राजस्थान में 6 साल का अबोध लड़का जब 15 साल बाद एक साफ्टवेयर इंजीनियर के रुप में अपने परिजनों से मिला तो वह नजारा ही भावुक कर देने वाला था. दरअसल कोटा पुलिस के स्पेशल ऑपरेशन हर्ष के तहत सातल खेड़ी के मजदूर परिवार की खुशियां लौट आई हैं. सितंबर साल 2009 में मजदूर परिवार का बेटा मेघराज रेलवे स्टेशन रामगंज मंडी पर अपने भाई के साथ डिस्पोजल इकट्ठा कर रहा था. इस दौरान एक पुलिस कर्मी ने उसको डांट दिया तो वह डर के मारे रेलवे स्टेशन पर खड़ी ट्रेन में जा छिपा. यहीं से मेघराज की जिंदगी के बदलाव की शुरुआत हो गई. कोटा ग्रामीण एसपी सुजीत शंकर ने बताया कि साल मेघराज के लापता होने के 3 दिन बाद 12 सितंबर 2009 को परिवार जनों ने थाने में गुमशुदगी की सूचना दी, तब मेघराज की उम्र 6 साल थी. उस वक्त भी पुलिस ने मेघराज को तलाश किया लेकिन वह नहीं मिला.

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साल 2016 में मेघराज की गुमशुदगी का सुकेत थाने में मुकदमा दर्ज हुआ था. कोटा पुलिस के गुमशुदा लोगों को तलाशने के लिए चलाए गए विशेष अभियान ऑपरेशन हर्ष के तहत मेघराज से संपर्क हुआ और उसको 15 साल बाद परिवार को सुपर्द किया गया. 

ऐसे पहुंचा तेलंगाना मेघराज 

पुलिस से मिली जानकारी के मुताबिक मेघराज उर्फ राकेश अपने गांव सातलखेड़ी से खेलता हुआ रामगंजमंडी रेलवे स्टेशन पहुंच गया. और मेला देखने के चक्कर में ट्रेन में बैठ गया. जो ट्रेन बदलता हुआ रामगंजमंडी से मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र होता हुआ हैदराबाद तेलगांना पहुंच गया. वहां हैदराबाद के पास काचीगुडा स्टेशन चला गया. वहां पर 1-2 दिन बाद लोकल पुलिस ने बालक को अपने संरक्षण में लिया और नाम पता पूछा तो बालक अपने-अपने नाम और गांव सातलखेडी रामगंजमंडी के नाम के अलावा कुछ नहीं बता पाया. बालक को जिला का नाम और स्टेट का नाम याद नहीं था.  

तेलगु भाषा नहीं समझा तो वहीं रह गया: मेघराज 

सुकेत थाने के कांस्टेबल धीरेंद्र सिंह ने बताया कि मेघराज ने बताया तेलगांना में तेलुगू भाषा बोली जाती है. भाषा के अन्तर होने के कारण लोगों ने मुझे बिहार स्टेट का समझ लिया और वहां की पुलिस ने मेरे परिवार वालों की तलाश के लिए बिहार में सातलखेडी रामगंजमंडी नाम के गांवों की तलाश करवाई, लेकिन कोई पता नहीं चला. काफी दिनों बाद थक हार कर वहां की लोकल पुलिस ने मुझे बाला बंधु आश्रम कांचीगुडा में भेज दिया.

कुछ दिन बाद वहां से निकालकर क्रूशी होम गोडावेली पुलिस थाना मेडचल जिला केवी रंगारेडी तेलंगाना में भेज दिया. तब से लेकर आज तक में उसी एड्रेस पर क्रूशी होम गोडावेली रह रहा हूं. क्रूशी होम गोडावेली ने ही मेरा पालन पोषण और पढाई लिखाई कराई है. बालक ने वहीं से ग्रेजुएट और पढ़ाई पूरी की है और अभी मैं प्राईवेट कम्पनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हुं 60-70 हजार मेरी सैलरी है.

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साल 2017 में हो गया पिता का निधन

मेघराज के घर लौटने की खुशियों में पिता गंगाधर बैरवा शामिल नहीं हो सकें, पत्थर की खान में मजदूरी करने वाले पिता गंगाधर बैरवा का साल 2017 में निधन हो गया. मेघराज के 2 भाई मनोज और हरीश अभी भी मजदूरी का काम करते हैं. मां सुगना देवी भी मजदूरी करती हैं, लेकिन अब मेघराज के वापस आने के बाद परिवार की खुशियां लौट आईं है. मेघराज अपनी मां को तेलंगाना ले जाकर अपने साथ रखना चाहता है. दोनों भाइयों का यहां अपना परिवार है, दोनों भाई भी अपने बिछड़े हुए भाई को पाकर खुश हैं. 

परिवार से मिलाने में सोशल मीडिया बना बड़ा माध्यम

सुख थाने के कांस्टेबल धीरेंद्र सिंह बताते हैं कि मेघराज की गुमशुदगी की फाइल काफी मोटी हो गई थी. पुलिस लगातार तलाश जरूर कर रही थी, लेकिन सफलता नहीं मिली. सोशल मीडिया का जैसे-जैसे प्रचलन बढ़ने लगा पुलिस ने मेघराज की तलाश के लिए सोशल मीडिया की मदद ली. गुमशुद की के पोस्टर भी लगवाए, साइबर पुलिस टीम से अंतर राज्य स्तर पर संपर्क किया गया. वहीं महराज ने भी सोशल मीडिया के जरिए सातल खेड़ी गांव को तलाशने की कोशिश की और कड़ी से कड़ी जुड़ती गई मेघराज अपने घर लौट आया. 

हिंदी के साथ तेलुगू और अंग्रेजी भाषा बोलता है अब मेघराज

6 साल की उम्र में कोटा से तेलंगाना पहुंचा मेघराज 15 साल में अपनी पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ तेलंगाना की स्थानीय भाषा तेलुगू के और अंग्रेजी भाषा भी अच्छे से सीख गया है. पुलिस की पूछताछ में उसने अपने 15 साल के कई अनुभव साझा किए. अपने गांव सातल खेड़ी पहुंचते ही मेघराज गांव की गलियां और पुराने दोस्तों को पहचान गया. परिवार और गांव में खुशी का माहौल है.

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