
Rajasthan News: राजस्थान के ब्यावर से भाजपा विधायक शंकर सिंह रावत (Shankar Singh Rawat) की बेटी कंचन चौहान (Kanchan Chauhan) के दिव्यांगता प्रमाण पत्र को लेकर विवाद (Disability Certificate Controversy) बढ़ता जा रहा है. उन पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी सर्टिफिकेट बनवाकर नायब तहसीलदार (Naib Tehsildar) के पद पर नियुक्ति हासिल की. NDTV से फोन पर हुई बातचीत में विधायक रावत ने इस पूरे मामले पर कोई भी प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया.
'ये सरकारी प्रक्रिया, कैमरे पर कुछ नहीं कहूंगा'
NDTV राजस्थान के पूछने पर विधायक शंकर सिंह रावत ने कहा, 'मुझे इस मामले में कोई प्रतिक्रिया नहीं देनी है.' उन्होंने आगे कहा कि यह एक सरकारी प्रक्रिया का हिस्सा है और दिव्यांग प्रमाण पत्रों की जांच तथा री-मेडिकल की प्रक्रिया सरकार द्वारा की जा रही है. इस पर वह कोई टिप्पणी नहीं करेंगे. रावत ने इस संवेदनशील मुद्दे पर 'नो-कमेंट' कहकर कैमरे पर भी कुछ कहने से मना कर दिया.
सीधा मुख्यमंत्री भजनलाल से की गई थी शिकायत
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब ब्यावर विधायक शंकर सिंह रावत की बेटी कंचन चौहान पर फर्जी दिव्यांगता प्रमाणपत्र बनवाकर नायब तहसीलदार के पद पर नियुक्ति लेने का आरोप लगा. शिकायतकर्ता फनीश ने सीधे मुख्यमंत्री को इस मामले की शिकायत की है. बताया गया है कि कंचन चौहान ने राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) की परीक्षा में विशेष योग्यता वर्ग के तहत चयन पाया था. शिकायत में यह दावा किया गया है कि कंचन चौहान ने 2024 की परीक्षा में 40 प्रतिशत से अधिक की दिव्यांगता दर्शाकर विशेष कोटे का लाभ उठाया, जबकि उनकी वास्तविक स्थिति अलग है. इस आरोप के बाद से राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है.
डॉक्यूमेंट्स की जांच के बनाई गई स्पेशल टीम
मामला सामने आने के बाद प्रशासनिक हलकों में भी जांच शुरू हो गई है. सूत्रों के मुताबिक, एक जांच टीम गठित की गई है जो सभी संबंधित दस्तावेजों की पड़ताल कर रही है. विशेष रूप से राजस्व बोर्ड अजमेर से जुड़े अभिलेखों को खंगाला जा रहा है. शिकायतकर्ता का आरोप है कि प्रमाणपत्र पर लगी मेडिकल बोर्ड की मुहर और साइन भी संदिग्ध हैं.
विपक्षी दलों ने उठाए सवाल, साख पर सवाल
इस मामले पर विपक्षी दलों ने भी सरकार से सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए सवाल उठाए हैं. उनका कहना है कि यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की नियुक्ति का नहीं है, बल्कि यह भर्ती प्रक्रिया की पारदर्शिता और साख पर भी सवाल खड़े करता है. विधायक शंकर सिंह रावत ने भले ही इस मामले पर चुप्पी साध ली हो, लेकिन अब सबकी निगाहें राज्य सरकार और संबंधित विभागों पर टिकी हैं.
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