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EXCLUSIVE: 5 हजार साल पुराना शिवलिंग, राजस्थान के इस मंदिर के कुंड में नहाने से ठीक हो जाते हैं चर्म रोग !

इतिहासकार बताते हैं कि कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पौत्र राजा जन्मजय द्वारा की गई थी. यहां पर राजा जन्मजय की प्रतिमा भी स्थापित है. एक पौराणिक कथा का हवाला देते हुए यहां के इतिहासकार बताते हैं कि राजा जन्मजय का कुष्ठ रोग यहां के मंदाकिनी कुंड में स्नान करने से ठीक हुआ था.

EXCLUSIVE: 5 हजार साल पुराना शिवलिंग, राजस्थान के इस मंदिर के कुंड में नहाने से ठीक हो जाते हैं चर्म रोग !
झालावाड़ का कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर

Kayavarneshwar Temple Jhalawar: झालावाड़ जिला मुख्यालय से लगभग 90 किलोमीटर दूर क्यासरा गांव के समीप पहाड़ियों के मध्य स्थित है एक प्राचीन शिवलिंग, जो महाभारत काल का बताया जाता है. शिवलिंग के ठीक नीचे पानी का एक कुंड बना है जिसके पानी से स्नान करने पर कुष्ठ रोग जैसे चर्म रोग भी दूर हो जाते हैं. यहां के इतिहासकार और इन मामलों के जानकार लोग बताते हैं कि यहां के लोग खेतों में खड़ी हुई फसलों में बीमारियां लगने पर भी यहां का पानी इस्तेमाल करके बीमारियों को दूर भगाते हैं.

इस कुंड के पानी को अपने साथ ले जाने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं और भगवान भोले शंकर के दरबार में मन्नत मांग कर जाते हैं. मुरादें पूरी होने पर वापस यहां आते हैं और भंडारे तथा विशेष पूजा अर्चना का आयोजन करते हैं. इस मंदिर केजानकार बताते हैं कि यहां के कुंड के पानी से स्नान करने पर असाध्य चर्म रोग दूर होने के कारण इस मंदिर को कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर का नाम मिला है. क्योंकि चर्म रोग दूर होने से मनुष्य की नई काया का निर्माण होता है.

कुंड में स्नान करने से ठीक हुआ था जन्मजय का कुष्ठ रोग 

इतिहासकार बताते हैं कि कायावर्णेश्वर महादेव मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना महाभारत काल में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु के पौत्र राजा जन्मजय द्वारा की गई थी. यहां पर राजा जन्मजय की प्रतिमा भी स्थापित है. एक पौराणिक कथा का हवाला देते हुए यहां के इतिहासकार बताते हैं कि राजा जन्मजय का कुष्ठ रोग यहां के मंदाकिनी कुंड में स्नान करने से ठीक हुआ था. स्नान के दौरान ही उन्हें मंदाकिनी कुंड में शिवलिंग मिला था जिसको राजा जन्मजय द्वारा यहां स्थापित किया गया.

मंदाकिनी कुंड

मंदाकिनी कुंड

यह इलाका जहां शिवलिंग स्थापित है पहले कोटा रियासत के अधीन आता था. यहां कोटा रियासत के राजाओं द्वारा कई निर्माण कार्य करवाए गए. उसके बाद यह इलाका झालावाड़ रियासत में शामिल हो गया. साल 1944 में झालावाड़ के तत्कालीन शासक राजेंद्र सिंह द्वारा भी यहां बड़े निर्माण कार्य करवाए गए जो आज भी मौजूद है.

पल-पल बढ़ता शिवलिंग

इतिहास का और यहां के पुजारी बताते हैं कि काय वर्णेश्वर महादेव में जो शिवलिंग स्थापित है लगातार बढ़ता रहता है. हालांकि वृद्धि बहुत सूक्ष्म होती है. किंतु हर 12 साल उसका आकार एक जो के दाने की बराबर बढ़ जाता है. बताते हैं कि जब राजा जन्मजय द्वारा इस शिवलिंग की स्थापना यहां की गई थी. तब इसका आकार अंगूठे के बराबर हुआ करता था.

काया वर्णेश्वर महादेव

काया वर्णेश्वर महादेव

महाभारत काल से लेकर अब तक के हजारों साल के अंतराल में यह लगातार बढ़ता रहा है और इसका आकार फिलहाल लगभग 3 फीट का है. प्रत्येक वर्ष इसको नापा जाता है तो इसके आकार में वृद्धि दिखाई देती है.

मिलते हैं कमल पूजा के प्रमाण

जानकारों से प्राप्त जानकारी के अनुसार विश्व मंदिर में दो बार कमल पूजा सन 1832 और सन 1916 में होने की बात सामने आती है इसके प्रमाण के तौर पर मंदिर में दो शिलालेख भी लगे हुए हैं. बताया जाता है की मंदिर में दो बार कमल पूजा हुई, जिसमें दो बार दो-दो युवकों ने स्वयं अपने शीश काट कर भगवान भोलेनाथ के चरणों में अर्पित किए. मंदिर के गर्भ गृह के पिछले हिस्से में दो शिलालेख लगे हैं जिन पर कमल पूजा का जिक्र है और कमल पूजा देने वाले लोगों के बारे में भी विवरण अंकित है.

कमल पूजा से संबंधित शिलालेख

कमल पूजा से संबंधित शिलालेख

आस्था का सैलाब

काय वर्णेश्वर महादेव मंदिर में पूरे वर्ष आस्था का सैलाब उमड़ता है, विशेष कर सावन और शिवरात्रि पर यहां लाखों लोग पहुंचते हैं, शिवरात्रि और सावन के सोमवारों पर यहां एक से सवा लाख लोग दर्शनों के लिए पहुंचते हैं. मंदिर का संचालन करने वाली समिति के सदस्य बताते हैं कि यहां विशेष अवसरों पर लाखों लोगों की भीड़ होती है. मुख्य मार्ग से लेकर मंदिर तक रास्ते पूरे भरे होते हैं, जहां पैर रखने की भी जगह नहीं होती. मंदिर में दर्शनों के लिए राजस्थान ही नहीं बल्कि संपूर्ण मध्य प्रदेश गुजरात एवं देश के अन्य हिस्सों से भी लोग पहुंचते हैं.

(अस्वीकरण : यहां चर्म रोगों के निदान की बात कही गई है. उसका आधार मंदिर में आने वाले भक्तों की आस्था और अनुभव हैं. NDTV इस दावे की वैज्ञानिकता का दावा नहीं करता.)

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