
Rajasthan News: राजस्थान में प्रतापगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित पीपलखूंट एक आशान्वित ब्लॉक है. जिला प्रशासन द्वारा यहां की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और जनजाति कला को पुनर्जीवित करने के लिए एक अनूठी पहल की है. राजस्थान अपनी कला और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध है. हर जिले में अपनी एक अनूठी कला है. जिनमें से एक है मांडणा कला.
यह केवल दीवारों पर सजावट का माध्यम नहीं, बल्कि जनजातीय संस्कृति का एक जीवंत प्रतीक है. सदियों पुरानी इस कला को नया जीवन देने के लिए प्रतापगढ़ जिले के प्रशासन ने एक अनूठी पहल की है. इस पहल का उद्देश्य न केवल इस पारंपरिक कला को पुनर्जीवित करना है बल्कि ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना भी है.
मांडणा कला का एक संक्षिप्त परिचय
मांडणा कला राजस्थान और मध्य प्रदेश के जनजातीय समुदायों में प्रचलित एक पारंपरिक चित्रकला शैली है. इस कला में महिलाएं चावल के घोल, गेरू और सफेद मिट्टी से दीवारों और फर्शों पर ज्यामितीय और पारंपरिक डिजाइन बनाती हैं. यह न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि इसे शुभता, समृद्धि और रक्षात्मक शक्तियों का प्रतीक भी माना जाता है.

मांडणा कला दिखाती हुई महिलाएं.
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता कदम
जिले के पीपलखूंट क्षेत्र जो की एक आशान्वित ब्लॉक है के पावटीपाड़ा में जिला प्रशासन ने इस कला को पुनर्जीवित करने और इसे आजीविका का साधन बनाने के लिए एक अनूठा नवाचार किया. जिला कलक्टर डॉ. अंजलि राजोरिया के निर्देशानुसार राजीविका द्वारा इसी गांव की 30 ग्रामीण महिलाओं को इस कला में प्रशिक्षित किया गया.
यह प्रशिक्षण मांडणा आर्ट एक्सपर्ट राधा रविदास द्वारा दिया गया. आने वाले दिनों में इस क्षेत्र की आदिवासी महिलाओं के लिए यह कला आय का मुख्य स्रोत बनेगा इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता. प्रशिक्षण के बाद, इन महिलाओं ने अब तक 300 से अधिक घरों को मांडणा कला से सुसज्जित किया है.

मांडणा कला दिखाती हुई महिलाएं.
कलेक्टर डॉ अंजलि की बेहतरीन पहल
प्रतापगढ़ जिला कलेक्टर डॉ अंजलि राजोरिया और जिला प्रशासन द्वारा इस आर्ट मांडणा कला को देश के सामने पुनः जीवित रखने के कार्य की जमकर सराहना हो रही है, इस वर्ष महिला दिवस पर जिला कलेक्टर डॉ अंजलि राजोरिया ने भी खुद मांडणा कला से तैयार की गई एक विशेष साड़ी भी पहनी, समस्त जिलेवासियों की नज़र उस बेहतरीन मांडणा कला से तैयार की गई साड़ी पर रही और जमकर आज तक तारीफ व चर्चा की जा रही है.

मांडणा कला दिखाती हुई महिलाएं.
मांडणा कला का इतिहास क्या है ?
दक्षिण राजस्थान के प्रतापगढ़ जिले के पीपलखूंट क्षेत्र में जिला प्रशासन के प्रयासों से दीवार और फर्श पर पेंटिंग की पारंपरिक मांडणा कला शैली पहली बार सामने आई. इस कला शैली का इतिहास कई शताब्दियों तक फैला हुआ है और व्यापक है. "मांडणा" शब्द संस्कृत शब्द "मांडा" से लिया गया है, जिसका अर्थ है शुभ, और इस कला रूप को सौभाग्य और धन का प्रतीक माना जाता है.
अपने घरों को सुंदर बनाने और महत्वपूर्ण अवसरों को चिह्नित करने के तरीके के रूप में, ऐसा माना जाता है कि ग्रामीण राजस्थान में महिलाओं ने मूल रूप से इस कला रूप को विकसित किया था. इस कला की जिले के सबसे बैकवर्ड एरिया पीपलखूंट में चिन्हित जगह शुरुआत की गई है.
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