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Rajasthan Politics: कांग्रेस के वो नेता जिसे किया 'देश निकाला', फिर 3 बार बने राजस्थान के मुख्यमंत्री

Rajasthan Former CM Haridev Joshi's Birth anniversary: मुख्यमंत्री बनने के बाद हरिदेव जोशी ने वागड़ क्षेत्र को माही बांध की सौगात दी. नतीजा यह रहा कि माही बांध आज आदिवासी अंचल की लाइफलाइन है.

Rajasthan Politics: कांग्रेस के वो नेता जिसे किया 'देश निकाला', फिर 3 बार बने राजस्थान के मुख्यमंत्री

Haridev Joshi: वागड़ के 'लाल' और 3 बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हरिदेव जोशी की आज (17 दिसंबर) जयंती है. बांसवाड़ा जिले के खांडू गांव में जन्मे जोशी स्वतंत्रता आंदोलन और सामाजिक सुधार आंदोलन में सक्रिय रहे थे. जिस गांव में जन्मे वह माही नदी के डूब क्षेत्र के चलते कई वर्षों तक काफी प्रभावित भी रहा. मुख्यमंत्री बनने के बाद हरिदेव जोशी (Haridev Joshi) ने इस क्षेत्र को माही बांध की सौगात दी. नतीजा यह रहा कि माही बांध आज आदिवासी अंचल की लाइफलाइन है. आज बात उसी नेता की, जो 3 बार सीएम बना; लेकिन एक भी मुख्यमंत्री पद का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया. 

बचपन में गंवा दिया था एक हाथ

पूर्व मुख्यमंत्री का जन्म 14 दिसंबर, 1921 को हुआ. वह महज 10 साल के थे, जब उनका बांया हाथ टूट गया. गांव के आस-पास चिकित्सकीय सुविधा नहीं होने के चलते उनका इलाज देशी तरीके से किया गया. हाथ में बांस लगाकर जुगाड़ की मदद से उनका हाथ सीधा करवा दिया. इससे परेशानी बढ़ती चली गई और हाथ में जहर फैल गया. जब परिजन उन्हें शहर में इलाज के लिए लेकर गए तो डॉक्टर ने हाथ काट दिया. एक हाथ वाले इस नेता ने कभी हौंसला नहीं खोया और लगातार संघर्ष किया. राजनीतिक विरोधियों के साथ पार्टी के भीतर भी कई चुनौतियों का सामना करते हुए वह राज्य की सत्ता पर काबिज हुए. 

गांधी-नेहरू के आह्वान पर आंदोलन का हिस्सा बने, डूंगरपुर प्रजामंडल का किया गठन

आजादी के आंदोलन के दौरान उन्हें देश निकाला भी मिला था. उन्होंने ब्रिटिश शासन के क्रूर अत्याचारों और सामंतशाही के उत्पीड़न के खिलाफ काफी संघर्ष किया. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के आह्वान पर वह आजादी की लड़ाई का हिस्सा बन गए. उन्होंने डूंगरपुर प्रजामंडल को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जब प्रजामंडल के बैनर तले उन्होंने रियासती अत्याचारों का पुरजोर विरोध किया तो उनके साथियों शेर कटारा और देवाराम शर्मा को डूंगरपुर राज्य द्वारा गिरफ्तार किया गया. इस कार्रवाई के विरोध में जोशी ने अन्य लोगों के साथ मैदान में उतर गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर डूंगरपुर के देवल किले में नजरबंद कर दिया गया. उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता से भाग लेते हुए आदिवासी समाज के बीच जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए.

उन्होंने डूंगरपुर प्रजामंडल को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. जब प्रजामंडल के बैनर तले उन्होंने रियासती अत्याचारों का पुरजोर विरोध किया तो उनके साथियों शेर कटारा और देवाराम शर्मा को डूंगरपुर राज्य द्वारा गिरफ्तार किया गया. इस कार्रवाई के विरोध में जोशी ने अन्य लोगों के साथ मैदान में उतर गए तो उन्हें भी गिरफ्तार कर डूंगरपुर के देवल किले में नजरबंद कर दिया गया.

साल 1942 से 47 तक कई आन्दोलनों में हिस्सा रहे जोशी की भूमिका को समझते हुए स्थानीय नेताओं भोगीलाल पंडया और श्री गौरी शंकर उपाध्याय की कोशिश रहती थी कि वह जेल से बाहर ही रहे. इतनी सतर्कता बरतने के बावजूद भी उन्हें देश निकाला दे दिया गया. इस घटनाक्रम के बाद उनकी धर्मपत्नी सुभद्रा देवी जोशी को अन्य महिलाओं के साथ जेल जाना पड़ा था.  

जब इंदिरा गांधी की नापसंद के बावजूद बने थे सीएम

हरिदेव जोशी पहली  बार 11 अक्टूबर 1973 से 29 अप्रैल 1977 तक ही राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे. उनका इस कुर्सी तक पहुंचना आसान नहीं था. तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी उन्हें सीएम नहीं बनने देना चाहती थीं. बल्कि उनकी पसंद दिग्गज जाट नेता और उनकी सरकार में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री रामनिवास मिर्धा थे. जब बारी आई राजस्थान के सीएम चुने जाने की तो इंदिरा गांधी ने कहा कि विधायक दल खुद ही अपना नेता चुनें. मिर्धा को भी उम्मीद थी कि सूबे के जाट नेता उन्हें वोट करेंगे. लेकिन मुख्यमंत्री चुनने के दौरान ऐसा नहीं हुआ. विधायक दल की वोटिंग में जाट नेताओं के एक बड़े खेमे में झटका दे डाला. जाट विधायकों का एक हिस्सा मिर्धा के पाले से खिसककर जोशी खेमे में चला गया. इसी निर्णायक मोड़ के चलते 13 वोटों के अंतर से जोशी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 

इंदिरा गांधी के खेमे को भी उम्मीद थी कि सूबे के जाट नेता उन्हें वोट करेंगे. लेकिन मुख्यमंत्री चुनने के दौरान ऐसा नहीं हुआ. विधायक दल की वोटिंग में जाट नेताओं के एक बड़े खेमे में झटका दे डाला. जाट विधायकों का एक हिस्सा मिर्धा के पाले से खिसककर जोशी खेमे में चला गया. इसी निर्णायक मोड़ के चलते 13 वोटों के अंतर से जोशी प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 
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सती कांड प्रकरण के चलते गंवानी पड़ी थी कुर्सी

ऐसा माना जाता है कि यह आखिरी बार था जब विधायक दल की वोटिंग से सीएम की ताजपोशी हुई. इसके बाद से विधायकों से एक लाइन का प्रस्ताव पारित कर आलाकमान की पसंद पर मुख्यमंत्री चुने जाने लगे. दूसरी बार 10 मार्च 1985 से 20 जनवरी 1988 तक और फिर 4 दिसम्बर 1989 से 4 मार्च 1990 तक उनका कार्यकाल रहा. जब सितंबर 1985 में अशोक गहलोत कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बने तो सत्ता-संगठन के बीच संघर्ष शुरू हुआ. प्रदेश में सती कांड प्रकरण सहित कई खामियों को प्रदेश के नेताओं ने दिल्ली तक पहुंचाया. इसी सत्ता संघर्ष के चलते राजीव गांधी ने हरिदेव जोशी को हटा कर शिवचरण माथुर को मुख्यमंत्री बना दिया.

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