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किस्सा सियासत का, आज ही के दिन ठीक 31 साल पहले जब भैंरोसिंह शेखावत ने राजभवन के बाहर दिया था धरना

BJP Won 1993 election in Rajasthan: ठीक आज से 31 साल पहले 3 दिसंबर, 1993 के दिन राजस्थान की सियासत में ऐतिहासिक घटनाक्रम हुआ. उस दिन राज्यपाल से नाराज बीजेपी नेता और कार्यकर्ताओं ने राजभवन के बाहर नारेबाजी की थी.

किस्सा सियासत का, आज ही के दिन ठीक 31 साल पहले जब भैंरोसिंह शेखावत ने राजभवन के बाहर दिया था धरना

Rajasthan Siyasi Kisse: राजस्थान की सियासत में 1993 का साल खास वजह से चर्चित रहा. तारीख थी 3 दिसंबर, ठीक आज से 31 साल पहले जब राजस्थान के राज्यपाल और बीजेपी में तकरार हुई. तकरार भी ऐसी कि बाद में यह इतिहास बन गया. माहौल इस कदर गरमाया कि कुछ दिन बाद भैरोंसिंह शेखावत (Bhairon Singh Shekhawat) समेत बीजेपी के नेता राजभवन के बाहर धरने पर बैठ गए. यह पूरा मामला 28 नवंबर, 1993 को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद शुरू हुआ. उस दौरान बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और राजस्थान में 'बाबोसा' कहे जाने वाले शेखावत को अगले ही दिन बीजेपी (BJP) ने विधायक दल का नेता चुन लिया. राज्यपाल को बीजेपी की ओर से अनुरोध किए जाने के बावजूद जब सरकार बनाने का न्यौता नहीं मिला तो पार्टी के नेताओं ने राज्यपाल के खिलाफ बयानबाजी भी की. फिर जो कुछ हुआ, वह इतिहास है. आइए जानते हैं उस घटनाक्रम के बारे में. 

साल 1993 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 95 और कांग्रेस ने 76 सीटें जीतीं. इस चुनाव परिणाम की खास बात यह थी कि कांग्रेस के गढ़ समझे जाने वाले मेवाड़, मारवाड़ और बीकानेर संभागों में उसके पुराने कई किलों को बीजेपी ने पहली बार काफी अधिक संख्या में ढहा दिया था. साथ ही हाड़ौती (कोटा) क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखा. शेखावाटी में भी बीजेपी कांग्रेस के बराबर ही रही. मारवाड़ की 42 में से भाजपा ने कांग्रेस से दो अधिक 19 सीटें प्राप्त कर लीं, जबकि 1990 में उसके पास एक भी सीट नहीं थी. 

केंद्र में काबिज कांग्रेस राजस्थान में बहुमत से चूकी

दसवीं विधानसभा (1993-98) में भी 1967 के चुनाव परिणाम की तरह किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस बहुमत से काफी दूर थी. उस दौरान 21 निर्दलीय में से कई उसी पार्टी के बागी थे. बावजूद इन सबके, कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए पूरा जोर लगाया. दूसरी ओर, चुनाव परिणाम के बाद अगले ही दिन बीजेपी ने 29 नवम्बर को राष्ट्रीय नेता अटलबिहारी वाजपेयी की उपस्थिति में पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत को सर्वसम्मति से विधायक दल का नेता चुन लिया था. 

पत्रकार विजय भंडारी की किताब 'राजस्थान की राजनीति: सामंतवाद से जातिवाद तक' के मुताबिक इसकी लिखित सूचना भी बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष रामदास अग्रवाल ने राज्यपाल को पत्र के माध्यम से भेज दी. उन्होंने विधानसभा में सबसे बड़े दल के नेता शेखावत को सरकार गठित करने के लिए आमंत्रित करने का अनुरोध किया था. अग्रवाल ने राज्यपाल को जानकारी दी कि बीजेपी के निर्वाचित घोषित 95 विधायकों और 3 निर्दलियों का समर्थन प्राप्त है. उन्होंने स्पष्ट किया कि उक्त निर्दलीय भाजपा के समर्थन से निर्वाचित हुए हैं और चुनाव से पूर्व ही वे हमारी पार्टी के साथ रहने की घोषणा कर चुके थे. इन निर्दलियों के नाम बाड़मेर से गंगाराम चौधरी, चौहटन (बाड़मेर) से भगवानदास डोसी और डीग (भरतपुर) के कुंवर अरुणसिंह थे. धौलपुर जिले के राजाखेड़ा में चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीजेपी प्रत्याशी महेन्द्रसिंह की मृत्यु हो जाने से चुनाव स्थगित कर दिया गया था, जिसके चलते मतदान 199 सीटों पर ही हुआ था. 

उन्होंने स्पष्ट किया कि उक्त निर्दलीय भाजपा के समर्थन से निर्वाचित हुए हैं और चुनाव से पूर्व ही वे हमारी पार्टी के साथ रहने की घोषणा कर चुके थे. इन निर्दलियों के नाम बाड़मेर से गंगाराम चौधरी, चौहटन (बाड़मेर) से भगवानदास डोसी और डीग (भरतपुर) के कुंवर अरुणसिंह थे. धौलपुर जिले के राजाखेड़ा में चुनाव की प्रक्रिया शुरू होने के बाद बीजेपी प्रत्याशी महेन्द्रसिंह की मृत्यु हो जाने से चुनाव स्थगित कर दिया गया था, जिसके चलते मतदान 199 सीटों पर ही हुआ था. 

अगले दिन 30 नवम्बर को भेजे पत्र में अग्रवाल ने राज्यपाल को सूचित किया कि 5 और निर्दलीय विधायकों ने भैरोंसिंह को समर्थन दिया है. जिसमें सुजानसिंह यादव, रोहिताश्वकुमार, ज्ञानसिंह चौधरी, मंगलराम कोली और नरेन्द्रकंवर का नाम शामिल था. बीजेपी ने कुल 103 की संख्या का दावा किया. जबकि पार्टी में बिखराव और नेतृत्व की कमी के चलते कांग्रेस पार्टी अपने विधायक दल के नेता का चुनाव भी नहीं कर पाई थी. हालांकि रिजल्ट घोषित होने के तीन दिन बाद पूर्व मुख्यमंत्री हरिदेव जोशी नेता घोषित किए गए.

विधायक ने राज्यपाल से पूछा- 95+14 कितने होते हैं

इधर, राज्यपाल बलिराम भगत ने बीजेपी नेता भैरोंसिंह को सरकार बनाने के लिए 3 दिसम्बर, 1993 की शाम तक भी पत्र नहीं भेजा था. बीजेपी राज्यपाल की ईमानदारी पर ही सवाल खड़े करते हुए अखबारों में बयान देने लगी थी. प्रदेश की राजधानी जयपुर में भारी राजनीतिक सरगर्मी और 5 दिन तक जबर्दस्त अनिश्चितता की स्थिति बनी रही. केन्द्र में कांग्रेस के प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव की सरकार और पूर्व कांग्रेसी नेता बलिराम भगत के राज्यपाल होने से बीजेपी संदेह जताने लगी. इसी बीच बीजेपी ने अपने पाले के सभी विधायकों को प्रदेश पार्टी मुख्यालय में रखा. वहां जगह कम होने के चलते वहां पर एक तम्बू लगा दिया गया था.

तब तक कांग्रेस ने भी हरिदेव जोशी के नेता चुने जाने और विधानसभा में उन्हें स्पष्ट बहुमत का समर्थन होने का दावा राज्यपाल को प्रेषित कर दिया था. राज्यपाल ने दोनों पक्षों के नेताओं को एक साथ 3 दिसम्बर, 93 को राजभवन में आमंत्रित किया. अग्रवाल अपने साथ कुछ विधायकों को भी ले गए थे, जिसमें कुछ निर्दलीय विधायक शामिल थे. राज्यपाल के सामने निर्दलीय विधायक नरेन्द्रकंवर ने तो तंज भरे अंदाज में यहां तक कह दिया था कि “95+14 कितने होते हैं? क्या इनसे दो सौ में बहुमत नहीं बनता है ?". बाद में शेखावत सरकार में वह राज्यमंत्री भी बनीं.

राज्यपाल के सामने निर्दलीय विधायक नरेन्द्रकंवर ने तो तंज भरे अंदाज में यहां तक कह दिया था कि “95+14 कितने होते हैं? क्या इनसे दो सौ में बहुमत नहीं बनता है ?". बाद में शेखावत सरकार में वह राज्यमंत्री भी बनीं.

इस दौरान राजभवन के बाहर सैकड़ों लोग जमा हो गए और शेखावत को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की नारेबाजी करने लगे. तब शेखावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अग्रवाल भी राजभवन से बाहर जाने के बजाय उसके लॉन पर एक ओर जाकर बैठ गए. इस तनावपूर्ण माहौल में राज्यपाल अपने कक्ष से बाहर आए, उनके अनुरोध पर बीजेपी नेता राजभवन के गेस्ट हाउस में और फिर पार्टी के मुख्यालय में जाकर निमंत्रण पत्र की प्रतीक्षा करते रहे. दिन निकल गया, रात हो गई. दोनों ओर से फोन पर वार्ताएं हो रही थीं, लेकिन मगर निमंत्रण पत्र नहीं पहुंचा. पाली जिले के एक कांग्रेसी विधायक ने संगीन आरोप जड़ते हुए कहा कि 'भाजपा ने विधायकों को गुलामों की तरह कैद कर रखा है.'  हालांकि कुछ ही देर बाद में बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता भी मिल गया. 

राजभवन के बाहर सैकड़ों लोग जमा हो गए और शेखावत को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की नारेबाजी करने लगे. तब शेखावत और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अग्रवाल भी राजभवन से बाहर जाने के बजाय उसके लॉन पर एक ओर जाकर बैठ गए. इस तनावपूर्ण माहौल में राज्यपाल अपने कक्ष से बाहर आए, उनके अनुरोध पर बीजेपी नेता राजभवन के गेस्ट हाउस में और फिर पार्टी के मुख्यालय में जाकर निमंत्रण पत्र की प्रतीक्षा करते रहे.

पूर्व राज्यपाल ने कहा था- मैं संविधान के निर्माताओं में से, मैं गलत काम नहीं करूंगा

पत्रकार विजय भंडारी की पुस्तक के मुताबिक पूर्व राज्यपाल ने कहा, “मैंने पारदर्शिता के लिए दोनों पक्षों को एक साथ बुलवाया और सारी स्थिति स्पष्ट कर दी थी. चूंकि दोनों पक्ष निर्दलियों के समर्थन का दावा कर रहे थे. इसलिए मैंने सभी से लिखवाकर लेने का बता दिया. मैंने यह भी कह दिया था कि मैं गांधी-नेहरू युग का आदमी हूं और संविधान के निर्माताओं में से हूं. इसलिए कोई गलत काम नही करूंगा और संविधान की मर्यादा का पूर्ण पालन करूंगा. इसलिए मैंने सभी से लिखवाकर ले लिया, जिन पर उन विधायकों के चित्र भी लगे हुए हैं. मैंने सारा काम पारदर्शी ढंग से किया और भैरोंसिंह शेखावत को सरकार बनाने का निमंत्रण दिया था."

शेखावत सरकार में इन नेताओं को मिला जिम्मा

एक सप्ताह बाद 11 दिसम्बर, 1993 को मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल का निर्माण किया, जिसमें छह मंत्री, 14 राज्यमंत्री और दो उपमंत्री शामिल किए गए. भंवरलाल शर्मा, ललितकिशोर चतुर्वेदी, देवीसिंह भाटी, गुलाबचन्द कटारिया, दो निर्दलीय विधायक सुजानसिंह यादव और गंगाराम चौधरी शामिल थे. इसके अलावा राज्यमंत्रियों में नाथूसिंह गुर्जर, राजेन्द्रसिंह राठौड़, जसवंतसिंह विश्नोई, श्रीकिशन सोनगरा, नंदलाल मीणा, डॉ. रामप्रताप, अनंगकुमार जैन, मदन दिलावर, अचलाराम मेघवाल, प्रो. सांवरमल जाट, रोहिताश्वकुमार, ज्ञानसिंह चौधरी, नरेन्द्रकंवर और श्रीमती शशिदत्ता को भी शामिल किया गया. दो निर्दलीय विधायक गुरजंटसिंह और मंगलराम कोली उपमंत्री नियुक्त किए गए.ग्यारह दिनों के बाद 22 दिसम्बर को अर्जुनसिंह देवड़ा को राज्यमंत्री नियुक्त कर तीन विभागों का स्वतंत्र प्रभार भी दिया गया. 

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