अयोध्या में जब कारसेवकों पर चली थी अंधाधुंध गोलियां... चश्मदीद ने बताया पूरा घटनाक्रम, कहा- अब सच हो रहा सपना

Ram Mandir Pran Pratishtha: अरुण माथुर ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि सन 1990 के दौरान वह भी जोधपुर से अयोध्या कार सेवा करने के लिए अपने जोधपुर इकाई के नेता शारदा शरण सिंह के साथ ट्रेन से अयोध्या पहुंचे थे. उनके साथ जोधपुर के और भी कई लोग थे जो कार सेवा के लिए अयोध्या पहुंचे.

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विहिप के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल के साथ युवा कारसेवक अरुण माथुर.

Ram Mandir Pran Pratishtha: अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर को लेकर पूरे देश में उत्साह है. 1990 और 1992 की कार सेवा में जिन लोगों ने भाग लिया था, उनके लिए राम मंदिर का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह सपना सच होने जैसा है. 1990 और 1992 में हुई कारसेवा के दौरान देश भर से हजारों लोग अयोध्या पहुंचे थे. अब उन कारसेवकों और उनके परिजनों को राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा का निमंत्रण भेजा जा रहा है. राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा से पूर्व हमने बात की राजस्थान के जोधपुर जिले में रहने वाले उस समय के युवा कारसेवक अरुण माथुर से जिन्होंने अपनी जवानी में कदम रखते ही राम मंदिर के आंदोलन में हिस्सा लिया था. अरुण माथुर उस घटना से चश्मदीद है, जब अयोध्या में कारसेवकों पर अंधाधूंध गोलियां चलाई गई थी. अरुण ने उस समय की पूरा घटनाक्रम बताया. 

अरुण माथुर ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि सन 1990 के दौरान वह भी जोधपुर से अयोध्या कार सेवा करने के लिए अपने जोधपुर इकाई के नेता शारदा शरण सिंह  के साथ ट्रेन से अयोध्या पहुंचे थे. उनके साथ जोधपुर के और भी कई लोग थे जो कार सेवा के लिए अयोध्या पहुंचे.

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कार सेवा का प्लेटफार्म कब बना

अरुण माथुर ने बताया कि 27 और 28 जनवरी 1990 को इलाहाबाद के संगम तट पर विश्व हिंदू परिषद के नेताओं द्वारा एक सम्मेलन का आयोजन किया गया था जिसके अंदर कार सेवा का प्लेटफॉर्म तैयार किया गया. यह कार सेवा 14 फरवरी 1990 को होनी थी. लेकिन उस समय के प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह को इस बात की भनक लग गई थी.

तब उन्होंने विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल व महंत नृत्य गोपाल दास से बातचीत कर कार सेवा रोकने का निवेदन किया. लेकिन वे लोग उनकी बात से सहमत नहीं हुए, इसके बाद विश्वनाथ प्रताप सिंह ने महंत परमहंस रामचंद्र से मुलाकात कर विश्व हिंदू परिषद के नेताओं से बातचीत कर समझाइश करने का आग्रह किया। इस पर सहमति बन भी गई.

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तस्वीर उस समय की जब अरुण माथुर सहित अन्य कारसेवक अयोध्या के लिए रवाना हुए थे.


बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा से बना माहौल

लेकिन 25 सितंबर 1990 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक की रथ यात्रा की घोषणा कर दी. यह यात्रा 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में पहुंचनी थी. इस ऐलान के साथ ही देश भर के लाखों की संख्या में राम भक्त अयोध्या पहुंच गए.

जब अयोध्या में राम भक्तों का सैलाब उमड़ पड़ा तो उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. और मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे. मुलायम सिंह यादव यादव ने जब देखा कि अयोध्या में लाखों की संख्या में राम भक्त आ चुके हैं. तो उनके कान खड़े हो गए और उन्होंने विवादित ढांचे के आसपास सुरक्षा बढ़ा दी, कंटीले तारों की बाड़ लगा दी. ताकि कार सेवक राम मंदिर में नहीं जा पाए. 

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कार सेवकों पर कब हुई फायरिंग

2 नवंबर 1990 को जब कार सेवक  हनुमानगढ़ी होते हुए विवादित स्थल की ओर बढ़ने लगे तब यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने पुलिस को आदेश दिया और कार सेवकों को और राम भक्तों पर पुलिस ने अंधाधुंध गोलियां चलाई. अरुण माथुर ने बताया कि उस समय बड़ी संख्या में राम भक्तों की मौत हुई.कई घायल भी हुए. पूरी अयोध्या की सड़कें खून से लाल हो गई थी और सरयू नदी का पानी भी लाल हो चुका था. और वही सरयू तट पर लाशों के ढेर लग गये थे. हालांकि सरकारी आंकड़ों में 450 से 500 लोगों की मौत होने का दावा किया गया. जबकि वास्तविकता इससे परे थी.

विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष अशोक सिंघल के साथ कारसेवक अरुण माथुर.


जोधपुर के दो कार सेवक हुए थे शहीद

सन 1990 की इस कार सेवा में जोधपुर के प्रोफेसर महेन्द्र नाथ अरोड़ा और सेठाराम परिहार शहीद हो गए. अरुण माथुर ने कहा कि उनके दिए गए बलिदान का ही परिणाम था कि सन 1992 में बावरी विध्वंस से पहले जोधपुर से सैकड़ो की संख्या में राम भक्त अयोध्या पहुंचे और विवादित ढांचे को गिराने में उनकी भी सहभागिता रही.


जोधपुर के महेंद्र नाथ और सेठाराम परिहार को कैसे गोली लगी

यह बताते हुए कार सेवक अरुण माथुर भावुक हो गए. उस दिन का नजारा याद करते हुए उन्होंने बताया कि जब मुलायम सिंह की पुलिस ने राम भक्तों पर अंधाधुंध फायरिंग खोल दी थी तो उन लोगों को कहां जाना है कुछ रास्ता नहीं सूझ रहा था. वे लोग भागते-भागते एक संकड़ी गली में घुसे. उस गली का नाम लाल कोठी था.

जिसमें एक मकान में वे लोग अंदर घुसे. लेकिन महेंद्र नाथ अरोड़ा घर में घुसने से पहले बाहर गिर पड़े और अचानक ही पुलिस ने उन्हें गोली मार दी. उन्हें जब गोली लगी तो उनको सम्भालने के लिए राम भक्त सेठाराम परिहार बाहर निकले और उन्होंने जब महेंद्र नाथ अरोड़ा को संभालना शुरू किया ही था कि यूपी की पुलिस ने उन्हें नीचे गिरा कर उनके मुंह में  भी गोली मार दी. जिससे सेठाराम परिहार भी वहीं पर शहीद हो गए.

कार सेवकों का बन गया था आत्मीय सम्बन्ध

वह आज भी उस मंजर को याद करके भावुक होते हैं. क्योंकि उस समय जो कार सेवक उनकी टीम में  थे वह एक दूसरों से इतने जुड़ गये थे कि पूरे रास्ते में वह जब जोधपुर से रवाना हुए तो रामधुन की माला जपते हुए गए थे और एक साथ खाना खाना और वहां पर जिस तरह से विवादित ढांचे के पीछे जो खुले में टेंट लगाए गए थे उन टेंट में वह लगातार साथ रहे थे और उनका वहां का सफर करीब 4 दिन तक रहा था लेकिन चार दिन में उन लोगों का एक ऐसा संबंध बन गया जैसे सेठाराम परिहार डॉ महेंद्र नाथ अरोड़ा उनके परिवार के मुखिया हो.

आज मिल रही है कार सेवकों को सच्ची श्रद्धांजलि

अरुण माथुर ने कहा कि आज जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है तो लगता है कि आज वाकई डॉक्टर महेंद्र नाथ अरोड़ा और सेठाराम परिहार को सच्ची श्रद्धांजलि मिल रही है. कार सेवकों का सपना भी साकार हो रहा है जो उन्होंने मंदिर के निर्माण के लिए देखा था. वहीं उन्होंने अयोध्या वासियों का भी आज वह धन्यवाद कर रहे हैं क्योंकि 1990 के जो मंजर था उस समय वहां के लोगों ने राम भक्तों के लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दिए थे. जिसके लिए आज वह अयोध्या वासियों का भी धन्यवाद कर रहे हैं ।जिनकी वजह से काफी राम भक्तों की जान बची थी.

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