उदयपुर: भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा तिथि से सांझी उत्सव प्रारंभ होता है जो कि भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तक चलता है. राजस्थान के मंदिरों में इन दिनों भगवान के समुख सांझी बनाई जाती है. गांवों की बालिकाएं रंग बिरंगे पुष्प और रंगों की मदद से इसे बनाती हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लगती है. यह उत्सव श्री प्रिया जू से संबंधित है, इसलिए रसिकों का इस उत्सव पर अधिक महत्व है. कहा जाता है कि राधा रानी अपने पिता वृषभानु के आंगन में ऐसी ही सांझी सजाती थीं.
इस सांझी के रूप में राधे रानी संध्या देवी का पूजन करती हैं. सांझी की शुरुआत राधारानी द्वारा की गई थी. सर्वप्रथम भगवान कृष्ण के साथ वनों में उन्होंने ही अपनी सहचरियों के साथ सांझी बनाई थी. वन में आराध्य देव कृष्ण के साथ सांझी बनाना राधारानी को सर्वप्रिय था. तभी से यह परंपरा ब्रजवासियों ने अपना ली और राधाकृष्ण को रिझाने के लिए अपने घरों के आंगन में सांझी बनाने लगे.
राधा रानी कहती हैं, 'मैं सांझी बनाने के लिए यमुना के तट पर फूल बीनने के लिए गई और वहां पर मेरी साड़ी एक पेड़ में उलझ गई. तभी कोई अचानक वहां आ गया और उसने पेड़ में उलझी मेरी साड़ी को निकाल दिया. फिर वो मुझे लगातार निहारने लगा और मैं शरमा गई, लेकिन वो देखता रहा और उसने मेरे पैर पर अपना सिर रख दिया. ये बात कहने में मुझको लाज आ रही है, लेकिन वो मेरे वस्त्र सुलझा कर मेरा मन उलझा गया. मैं उसका नाम नहीं जानती पर वो पीला पीताम्बर पहने था और श्याम रंग का था. हे सखी अब मुझे वो याद आ रहा है, इसलिए मुझको उस वन में ही सांझी पूजन के लिए फूल बीनने को फिर से ले चलो.' इस पद में ठाकुर जी और राधा जी के प्रथम मिलन को समझाया गया है, इसलिये इसको सांझी के समय गाते हैं.
4 प्रकार की आती हैं सांझी
1. पुष्प फूल
पुष्प की सांझी कमल बेल और रंगबिरंगे फूलों से सजाई जाती है, जिस पर श्री प्रभु बिराजते हैं. फूल की सांझी स्वामिनी जी के भाव से सजाई जाती है.
2. केले के पत्ते से
इसमें ब्रज की 84 कोस की यात्रा की सुन्दर लीला कलात्मक ढंग से सजाई जाती है. यह चन्द्रावली से भाव से सजाई जाती है.
3. सफेद वस्त्र
सफेद वस्त्र के कपडे़ पर रंगबिरंगे रंगों से छापे के द्वारा वृजलीला एवम व्रज के स्थल छापते हैं. यह कुमारी के भाव से धरई जाती है.
4. जल की सांझी
जल के ऊपर, जल के अंदर रंगबिरंगी रंगोली बनाते हैं. यह यमुना के भाव से धराई जाती है.